Moral Story: माँ का ऋण किसी नगर में एक विधवा रहती थी। उसका बारह वर्ष का एक लड़का था। बड़ा ही होनहार और कुशाग्र बुद्धि मां चाहती थी 'मेरा बेटा पढ़-लिखकर खूब नाम कमाये।' इसलिए उसे एक अच्छी पाठशाला में पढ़ने के लिए भेज दिया। By Lotpot 15 Mar 2024 in Stories Moral Stories New Update माँ का ऋण Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Moral Story माँ का ऋण:- किसी नगर में एक विधवा रहती थी। उसका बारह वर्ष का एक लड़का था। बड़ा ही होनहार और कुशाग्र बुद्धि मां चाहती थी 'मेरा बेटा पढ़-लिखकर खूब नाम कमाये।' इसलिए उसे एक अच्छी पाठशाला में पढ़ने के लिए भेज दिया। पाठशाला के आचार्य उस लड़के के पिता के सहपाठी रह चुके थे। लड़के के पिताजी बहुत विद्वान और सदाचारी पुरुष थे शहर में उनका नाम आदर से लिया जाता था। (Moral Stories | Stories) आचार्य बालक से उसके पिता का ध्यान रखते हुए बहुत स्नेह करते थे। बालक भी लगन से पढ़ता उसकी विलक्षण स्मृति थी। उसके आचार्य को लगता, यह लड़का बड़ा होकर पिता से भी ज्यादा ज्ञान और यश का भागी बनेगा। घर में ज्यादा धन संपत्ति नहीं थी। फिर भी लड़के के पिता इतना पैसा छोड़ गए थे की जिससे मां-बेटे का गुजारा मजे से चल रहा था। बेटे को पढ़ाने के लिए मां अपने ऊपर कम से कम खर्च करती थी। वह हर तरह से बेटे कोसुख सुविधा पहुंचाने में लगी रहती थी। समय अपनी गति से चलता रहा। विधवा का बेटा सोलह साल का हो गया। वह पाठशाला के अच्छे छात्रों में था। मां अपने बेटे की प्रशंसा सुनती, तो आंखों में खुशी के आंसू छलछला आते। आचार्य को भी शिष्य पर गर्व था। उन्हें लग रहा था, उनकी विद्या से एक तेजस्वी प्रतिभा का निर्माण हो रहा है। (Moral Stories | Stories) एक दिन की बात है। दोपहर का समय था। मां घर के काम-काज में लगी हुई थी। तभी किसी ने द्वार खटखटाया। मां ने उठकर दरवाजा खोला देखा, बेटा सामने खड़ा था। बेटे को देख, मां अंदर से कांप सी गई। यह समय तो उसके पढ़ने का था। वह शाम को ही पाठशाला से लौटकर आता था। आज असमय क्यों लौट आया? पता नहीं क्या हुआ। बेटा अनमना सा घर के अंदर आ गया। मां ने प्रश्नों की झड़ी सी लगा दी, “उदास क्यों हो? आज इतनी जल्दी पाठशाला से क्यों लौट आये? क्या गुरूजी कहीं बाहर गये हैं या और कोई बात है?" कुछ क्षण बेटा चुप रहा। फिर बोला, ''मां, आज मैं धर्म शास्त्र पढ़ रहा था। उसमें लिखा था- 'अपने माता-पिता और ईश्वर की पूजा करो। उनसे बढ़कर... कुछ क्षण बेटा चुप रहा। फिर बोला, ''मां, आज मैं धर्म शास्त्र पढ़ रहा था। उसमें लिखा था- 'अपने माता-पिता और ईश्वर की पूजा करो। उनसे बढ़कर न कोई तीर्थ है, न मंदिर।' यही बात पढ़कर मैं घर चला आया। मां, अब तुम बताओ, एक समय में एक की ही पूजा हो सकती है। दो की पूजा मुझे कठिन लगती है। समझ नहीं आता, मां की पूजा करूं या ईश्वर की। मां तुम एक काम करो। तुम ईश्वर से मुझे मांग लो या मुझे ईश्वर को सौंप दो।' बेटे की बात सुन कर मां ठगी सी रह गई। उसे लगा- 'मेरा बेटा सिर्फ बेटा नहीं यह युवा अवस्था में ही महान संत का बाना भी धारण किये है। इसे बांध कर नहीं रखा जा सकता।' मां ने अपनी गीली आंखों से बेटे की ओर देखा। फिर उसके सिर पर स्नेह का हाथ फेरते हुए कहा “जाओ बेटे, मैंने अपना अधिकार छोड़ दिया। आज मैंने तुम्हें ईश्वर को अर्पण कर दिया।" (Moral Stories | Stories) माँ से आज्ञा ले बेटा तुरंत घर छोड़कर चला गया। शास्त्रों का विधिपूर्वक अध्ययन समाप्त कर भगवान की भक्ति में लग गया। उसके त्याग और तपस्या को देखकर दुनिया उसके सामने सिर झुकाने लगी। वह एक बड़ा संत बन गया। एक दिन तीर्थ यात्रा से लौटने पर बेटे को स्वप्न आया भगवान कह रहे थे- ''मां ने अपना काम पूरा किया। अब तू भी अपना काम पूरा कर। मैं तुझे मिल गया। अब मां को भी तो पा। बिना उसकी सेवा किये तेरे जीवन का सारा त्याग और तपस्या अधूरी है।” संत की आंखें खुल गयीं। उसी दिन अपनी मां से मिलने चल पड़े। घर के दरवाजे से झांक कर देखा। बूढी मां भगवान की मूर्ति के आगे बैठी थी। हाथ जोड़कर कह रही थी 'भगवान, मेरे संत बेटे की रक्षा करना। वह दिन-रात तीर्थों की पैदल यात्रा करता है। जंगल-जंगल घूमता है। आप हमेशा उसके साथ रहना।” (Moral Stories | Stories) मां की प्रार्थना सुन संत बेटे ने दरवाजा खटखटाया। मां आयी तो चरणों में लोट गया। बोला, “मां, अब भगवान ने मुझे तुम्हारी सेवा करने का आदेश दिया है। मै जीवन का बाकी समय तुम्हारी सेवा में बिताऊंगा।" संत मां की सेवा करने लगे। एक बार मां कुछ बीमार थी। सर्दी का मौसम था। रात को मां ने पानी मांगा। संत पानी लेकर आये, मगर इसी बीच मां को फिर नींद आ गयी। बेटे ने मन में सोचा की मां को जगाना ठीक नहीं। बस वह पानी भरा लोटा ले मां की चारपाई के पास खड़े हो गये। देख रहे थे कि मां उठे तो पानी पिलायें, मगर मां गहरी नींद में सोई थी। दिन निकला मां की आंखे खुली। देखा, बेटा पानी लिए चारपाई के पास खड़ा है। पूछा तो पूरी बात सुनकर मां चकित रह गयी। सोचने लगी- 'मुझे पानी पिलाने के लिए मेरा बेटा रात भर खड़ा रहा।' बेटे की भक्ति से द्रवित हो, माँ उसे दुआएं देने लगी। बेटे ने कहा, “मां, तुम्हारे पास मेरे लिये दुआएं ही दुआएं है। मैं यह ऋण इस जन्म में कैसे चुकाऊंगा? लो, आज मैं अपनी सारी तपस्या, भक्ति और अपने ईश्वर को तुम्हें अर्पित करता हूं। तुम से बड़ा आराध्य और कौन होगा?” कहते हुए बेटे ने मां के चरण पकड़ लिये। बेटे की श्रध्दा और भक्ति के आगे सूरज का फ़ूटता उजाला भी फीका पड़ गया। (Moral Stories | Stories) lotpot | lotpot E-Comics | bal kahani | Hindi Bal Kahaniyan | Hindi Bal Kahani | Bal Kahaniyan | kids hindi short stories | short moral stories | short stories | Short Hindi Stories | hindi short Stories | Kids Hindi Moral Stories | kids hindi stories | Kids Moral Stories | Kids Stories | Moral Stories | hindi stories | Hindi Moral Stories | लोटपोट | लोटपोट ई-कॉमिक्स | बाल कहानियां | हिंदी बाल कहानियाँ | हिंदी बाल कहानी | बाल कहानी | हिंदी कहानी | हिंदी कहानियाँ | छोटी कहानी | छोटी कहानियाँ | छोटी हिंदी कहानी | बच्चों की नैतिक कहानियाँ यह भी पढ़ें:- Moral Story: विश्वासघात Moral Story: आलस्य करने का फल Moral Story: अंध विश्वास Moral Story: तीन गुड़िया #बाल कहानी #लोटपोट #हिंदी कहानी #Lotpot #Bal kahani #Bal Kahaniyan #Hindi Moral Stories #Kids Moral Stories #Moral Stories #Hindi Bal Kahani #Kids Stories #बच्चों की नैतिक कहानियाँ #lotpot E-Comics #हिंदी बाल कहानी #छोटी हिंदी कहानी #hindi stories #Kids Hindi Moral Stories #hindi short Stories #Short Hindi Stories #short stories #हिंदी कहानियाँ #kids hindi stories #छोटी कहानियाँ #छोटी कहानी #short moral stories #Hindi Bal Kahaniyan #बाल कहानियां #kids hindi short stories #लोटपोट ई-कॉमिक्स #हिंदी बाल कहानियाँ You May Also like Read the Next Article