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आलस्य करने का फल
Moral Story आलस्य करने का फल:- बहुत समय पहले की बात है। बगदाद में एक चरवाहा रहता था। उसका नाम अबू था। उसके पास कई भेड़ बकरियां थीं, जिन्हें वह रोज़ाना पास की पहाड़ियों पर चराने ले जाता था। वैसे तो अबू एक अच्छा इंसान था, पर उसकी एक बुरी आदत उसके सारे गुणों को ढक देती थी। वह बहुत ही आलसी था और काम से जी चुराता था। कई बार तो वह पहाड़ पर ही सो जाता था। ऐसे में उसकी 1-2 भेड़ बकरियां इधर-उधर हो जाती थीं। उसका नुकसान अबू को उठाना पड़ता था। (Moral Stories | Stories)
सर्दियों में तो वह आलस्य की वजह से महीनों घर में ही सोया रहता था। ढोर अपने बाड़ों में बंद रहते थे। ऐसे में भोजन न मिलने की वजह से वे काफी कमज़ोर भी हो जाते थे। "एक दिन तुम्हारी यह आदत तुम्हें ले डुबेगी।'' उसके हितैषी उसे समझाते, पर अबू पर कोई असर नहीं होता था।
एक दिन अबू पहाड़ियों पर ढोर चरा रहा था। उस दिन आसमान साफ था, ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे में अबू को नींद आने लगी। वह एक चिकने पत्थर पर लेटने ही जा रहा था कि उसकी नजर एक भेड़िये पर पड़ी जो उसी ओर आ रहा था। (Moral Stories | Stories)
वह सचेत हो गया और अपने डंडे को कस कर पकड़ लिया ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस भेड़िये से मुकाबला कर सके।' यदि उसने मेरे जानवरों पर...
वह सचेत हो गया और अपने डंडे को कस कर पकड़ लिया ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस भेड़िये से मुकाबला कर सके।' यदि उसने मेरे जानवरों पर हमला करना चाहा तो मैं इस डंडे से पीटूँगा और आवाज दे कर अपने साथियों को यहां बुला लूंगा।' अबू मन में योजनाएं बना रहा था। (Moral Stories | Stories)
भेड़िया जानवरों के झुंड से कुछ दूर पर बैठ कर सुस्ताने लगा। अब अबू चक्कर में पड़ गया। उसे जोरों की नींद आ रही थी, परन्तु भेड़िये के डर से वह सो नहीं पा रहा था। कहीं मैं लेटा तो ये जरूर मेरे भेड़ बकरियों को चट कर जायेगा। यह सोच कर अबू खड़ा हो कर वहीं पहरा देने लगा।
दोपहर बीती, सांझ घिर आई। पर भेड़िये ने एक बार भी जानवरों पर हमला नहीं किया। अबू बहुत हैरान था। उसने लौट कर यह बात अपने साथियों को बताई। (Moral Stories | Stories)
“तुम सावधान रहना, भेड़िये का क्या भरोसा? कहीं मौका पाकर वह तुम्हारे जानवरों को न मार खाए।'' एक बुजुर्ग चरवाहे ने उसे सलाह दी।
दूसरे दिन भी यही हुआ। भेड़िया चुपचाप वहीं बैठा भेड़ बकरियों को देखता रहा। इस से अबू का डर कम हो गया। “मै व्यर्थ ही चिंता कर रहा हूं- 'उसने सोचा धीरे-धीरे, भेड़िये पर अबू का विश्वास बढ़ता गया। अब भेड़िया जानवरों के बीच बैठा रहता था। उनके साथ खेलता-कूदता। अबू को और क्या चाहिए था? वह भेड़िये पर भरोसा कर 2-4 झपकियां मार लेता था। इस तरह कुछ दिन बीत गए। (Moral Stories | Stories)
एक दिन अबू ने सोचा- 'अब मुझे भला पहाड़ियों में जाने की क्या जरूरत है? यह काम तो भेड़िया ही कर लेगा। मैं उसे ही भेड़ बकरियों की पहरेदारी करने के लिए छोड़ जाता हूं और घर जा कर आराम करता हूं।' इस तरह वह जानवरों की निगरानी के लिए जानवरों को छोड़ कर अपने घर लौट आया।
वह दिन भर घर में खर्राटे भरता रहा। शाम को उसने पहाड़ पर जा कर देखा कि उसके ढोर सही सलामत हैं। भेड़िया उनकी रखवाली कर रहा था। अबू की खुशी का ठिकाना न रहा। परन्तु जल्द ही उसका यह भ्रम टूट गया।
अगले दिन, जब शाम को वह पहाड़ी पर पहुंचा तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। वहां उसके कई भेड़ बकरियां मरे हुए थे, अन्य घायल थे। भेड़िये ने उन्हें मार डाला था। अबू उसकी तलाश में दूर-दूर तक भटका, परन्तु वह नहीं मिला। अब अबू के पास आंसू बहाने के अलावा कोई और चारा न था। (Moral Stories | Stories)
“अगर उस दिन तुमने मेरा कहा माना होता तो आज ये दिन न देखने पड़ते।” उस बुजुर्ग चरवाहे ने उससे कहा।
अबू को अब समझ आ चुकी थी। अब वह आलस्य त्याग कर, दूसरे व्यवसाय में अपना ध्यान लगाने लगा। (Moral Stories | Stories)
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