Moral Story ईर्ष्या का फल:- गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल फिर से खुल गये थे। राम जो कि अपनी कक्षा में हमेशा सर्व प्रथम आता था। हर साल की तरह इस बार भी सर्व प्रथम आकर अगली कक्षा में चला गया था, जैसा की हर साल होता है, हर साल कक्षा में नये लड़के आते हैं और कुछ छोड़ कर चले जाते हैं। (Moral Stories | Stories)
इस बार दिनेश नाम का एक नया लड़का कक्षा में आया था। दिनेश स्वभाव से घमंडी और ईष्र्यालू था। हालांकि वह भी पढ़ने में काफी तेज़ था। समय धीरे-धीरे बीतने लगा।
छमाही परीक्षायें हुईं। इन परीक्षाओं को साधारण लड़के अधिक गंभीरता से नहीं लेते थे। लेकिन कुछ अन्य मेघावी लड़के इसमें पूरी तैयारी के साथ बैठते थे। (Moral Stories | Stories)
राम कक्षा में प्रथम आया और दिनेश द्वितीय आया। दिनेश से यह बर्दाश्त नहीं हुआ...
राम कक्षा में प्रथम आया और दिनेश द्वितीय आया। दिनेश से यह बर्दाश्त नहीं हुआ। वह सोचने लगा कि यदि मैं प्रथम आ जाऊं तो मेरा नाम होगा, कि एक नये विद्यार्थी ने आकर स्कूल के पुराने लड़कों को पछाड़ दिया जबकि राम भी नहीं चाहता था। कि वह किसी नये लड़के पर अधिक ध्यान न देकर हमेशा की तरह अपनी पढ़ाई में जुटकर वार्षिक परीक्षा की तैयारी करने लगा। (Moral Stories | Stories)
दिनेश सोचता कि सिर्फ पढ़कर वह चाहे तो राम से बाजी नहीं मार पायेगा। इसलिये उसने राम से अपनी घनिष्टता बढ़ानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे उन दोनों में किताब-कापियों का लेन-देन शुरू हो गया।
राम हमेशा, जैसा कि अब तक करता आया था। वह कुछ नोट्स और अन्य प्रकार की सामग्री किताबों में से उतारता था और परीक्षा के समय संक्षिप्त रूप से उनका अध्ययन करता था। इससे इसे काफी सहायता मिलती थी। लेकिन यह सब सामग्रियाँ अधूरी रहती थीं और बिना किताबों को पूर्णरूप से पढ़े इनका उपयोग करना लाभकर नहीं था। (Moral Stories | Stories)
दिनेश को जब पता चला राम ने ऐसे नोट्स तैयार नहीं किये हैं तो उसने उस दिन राम से वह सामग्री माँग ली। परीक्षायें बहुत नजदीक थीं इसलिये राम दिनेश को देते हुये बोला, ‘मुझे जल्दी से लौटा देना। बिना किताब पढे़ इनका महत्व नहीं है।’
दिनेश ने सोचा कि राम उसे बहका रहा है। (Moral Stories | Stories)
कई दिन बीत गये। दिनेश ने नोट्स तैयार नहीं किये और न ही राम को लौटाये। राम के बार- बार माँगने पर वह बहाना बना देता था। और एक दिन दिनेश ने कबूला कि वह नोट्स और अन्य सामग्री कहीं खो गये हैं।
राम को इससे बड़ा दुःख हुआ लेकिन वह इस बात को भूलकर अच्छी तरह किताब-कापियों का अध्ययन करने लगा। (Moral Stories | Stories)
वार्षिक परीक्षा अपने समय पर हुई और राम हमेशा की तरह अपनी कक्षा में सर्वप्रथम आया। जबकि दिनेश इस बार अनुतीर्ण हो गया।
अपना-अपना रिजल्ट लेकर कुछ लड़के खुशी से कुछ निराश होकर कक्षा से बाहर निकलने लगे।
स्कूल से बाहर जब राम निकला तो दिनेश भी उसके साथ हो लिया। (Moral Stories | Stories)
राम ने कहा, ‘दिनेश! तुम्हरे फेल होन पर आश्चर्य हुआ।’
दिनेश से यह सब बर्दाशत नहीं हो सका। वह रूआँसे स्वर में बोला-’मुझे अपने पापों का फल मिल गया है। मैं अपने स्वार्थ में अन्धा हो गया था। मैंने सोचा था। कि मुख्य रूप से तुम उन्हीं नोट्स के आधार पर रहते हो। इसलिए मैंने जानबूझकर कहा था कि वे कहीं खो गये हैं। मैं उन्ही को पढ़ता था और किताब-कापियां पढ़नी छोड़ दी थीं।
राम को यह सब जानकर दुःख हुआ। लेकिन दिनेश ने अपने सच्चे दिल से अपना झूठ स्वीकार कर लिया था इसलिये वह उसे आश्वासन देने लगा। अगले वर्ष दिनेश ने मेहनत कर के पढ़ाई की और क्लास में फर्स्ट आया। (Moral Stories | Stories)
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