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धन का मोल
हिंदी नैतिक कहानी: धन का मोल:- एक सेठ था वह बड़ा ही कंजूस था जीवन में उसने बहुत धन कमाया पर कौड़ी-कौड़ी दांत में दबाकर रखी। कभी किसी को एक भी पैसा नहीं दिया। यहां तक कि अपने बीवी बच्चों को भी पैसे को हाथ न लगाने दिया। नतीजा ये निकला कि उसकी पत्नी और बच्चे उससे कटे कटे रहने लगे। पत्नी तो उससे बहुत कम बात करती थी। दोनों बेटों के साथ भी पैसे की झिकझिक लगी रहती थी। दोनों बेटे जवान हो गये थे पर सेठ ने अब भी सारा व्यापार अपने ही हाथों में रखा हुआ था। लड़के पैसे पैसे को तरसते।मजबूर होकर वे बही खाते में गड़बड़ करके या दुकान का माल गुपचुप बेचकर पैसे हासिल करते थे। सेठ तो सारा धन तिजोरी में बंद रखता। उसे जब बेटों की बेईमानी का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया और वह उनसे हिसाब मांगने लग गया। जवाब में बेटे उसे ही उल्टी सीधी सुनाकर चले जाते। (Moral Stories | Stories)
एक दिन सेठ अकेला दुकान पर बैठा था कि एक गरीब सा दिखने वाला आदमी उसकी दुकान...
एक दिन सेठ अकेला दुकान पर बैठा था कि एक गरीब सा दिखने वाला आदमी उसकी दुकान पर आया। उसके कपड़े भी फटे थे वह सेठ से बोला- "सेठ जी सुना है आप नगर के सबसे अमीर आदमी हो। मैं बहुत गरीब हूं मुझे कुछ खरीदना है। क्या आप कुछ पैसे देंगे? बदले में मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि वह आपका धन दुगना कर दे"। सेठ ने इससे पहले कभी दान पुण्य में पैसा खर्च नहीं किया था पर आज धन दुगना होने की बात सुनकर उसे लगा थोड़े पैसे मंगल को देने में कोई नुकसान नहीं है। वह बोला.. "ठीक है बताओ कितने पैसे चाहिए तुम्हे?"
"कुछ ज्यादा नहीं, असल में मेरी पत्नी मुझसे नफरत करती है सीधे मुंह बात तक नहीं करती। बस आप मुझे इतने पैसे दे दीजिए जिससे मैं पत्नी का प्यार और विश्वास खरीद सकूँ। (Moral Stories | Stories)
"धन से और चाहे जो कुछ खरीद लो पर पत्नी का सुख नहीं खरीदा जा सकता ये मेरा अनुभव है। मेरी पत्नी भी तुम्हारी पत्नी जैसी है। कुछ और खरीदना हो तो मांगो पैसे"।
"मेरे तो बेटे भी नालायक और कपूत हैं। मेरा सम्मान नहीं करते हैं बस मुझे इतने पैसे दे दीजिये जिससे मैं बेटों का प्यार खरीद सकूं"।
"बेटों का प्यार खरीदा जा सकता तो क्या मैं न खरीद लेता। इतना धन है मेरे पास। मेरे बेटे भी तुम्हारे बेटों की तरह नीरस रूखे और कपूत हैं"। सेठ ने निःश्वास भरा। (Moral Stories | Stories)
"चलिये वो भी न सही पर नींद तो खरीद सकूंगा, मुझे रात भर नींद नहीं आती। बस कुछ धन दे दीजिये मैं आज ही नींद खरीदूंगा"।
पागल तो नहीं हो गए सेठ हंसता हुआ बोला- "भला नींद भी पैसों से खरीदी जा सकती है? मैं खुद अनिद्रा का रोगी हूं रात भर बिस्तर में करवटें बदलता रहता हूं पर नींद पास भी नहीं फटकती"। सेठ गरीब के पागलपन पर हंसा- "मेरा मन कितना अशांत है तुम नहीं जानते पर फिर भी मैं मानसिक शान्ति आज तक नहीं खरीद पाया"।
"फिर तो आपके रूपये पैसे पत्थरों जैसे ही हैं जिन पैसों से पत्नी और बच्चों का प्यार, नींद मानसिक शान्ति कुछ नही खरीदा जा सकता, वो धन, धन नहीं कचरा है। उसे फिर तिजोरी में बंद करके सांप की तरह कुंडली मारकर उसकी रक्षा में क्यों दिन रात लगे हो? मैं तो आपको अमीर समझता था पर आप तो मुझसे भी ज्यादा गरीब हो"।
और झूमता झामता गरीब वहां से चला गया। सेठ हक्का बक्का बैठा रहा। गरीब की बातें उसे परेशान कर रही थीं। गरीब सच तो कह रहा था। जीवन में उसे इतना धन होते हुये भी कोई सुख नहीं मिला। वह कितना दुखी और अकेला है। सेठ के मन में वैराग सा जाग गया। यह बदलाव देखकर पत्नी भी पति का ध्यान रखने लगी। उसने सारा व्यापार बेटों को सौंप दिया और शेष जीवन धर्मकार्य और पूजा पाठ में बिताया। (Moral Stories | Stories)
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