बाल कहानी : राजा विक्रमध्वज और उत्तराधिकारी का चयन महाराजाधिराज विक्रमध्वज वृद्ध हो चले थे। अतः वे चाहते थे कि उनके तीन युवा पुत्रों वीरध्वज, शूरध्वज तथा धीरध्वज में से कोई एक यथाशीघ्र राज्य की सत्ता संभाल ले। By Lotpot 21 Nov 2024 in Moral Stories New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 बाल कहानी : राजा विक्रमध्वज और उत्तराधिकारी का चयन : महाराजाधिराज विक्रमध्वज वृद्ध हो चले थे। अतः वे चाहते थे कि उनके तीन युवा पुत्रों वीरध्वज, शूरध्वज तथा धीरध्वज में से कोई एक यथाशीघ्र राज्य की सत्ता संभाल ले। महाराज विक्रमध्वज के तीनों पुत्र महातेजस्वी और पराक्रमी थे। परंतु राजा का विचार था कि वे अपनी योग्यता का उचित प्रदर्शन कर, श्रेष्ठता क्रम अनुसार ही गद्दी के वारिस बनें। एतेव, महाराज विक्रमध्वज ने एक अवसर उचित जानकर महामंत्री सुकर्णनल को अपने विचार से अवगत कराते हुए कहा, "मंत्रीवर, हम चाहते हैं कि जल्द ही बिना किसी पक्षपात के हमारी गद्दी के सुयोग्य वारिस का चयन हो जाए। परंतु समझ में नहीं आता है कि यह फैसला हो तो कैसे?" विवेकशील मंत्री ने थोड़े विचार के बाद कहा, "महाराज, तीनों ही राजकुमार समान वीर एवं प्रतिभाशाली प्रतीत होते हैं। अतः ऐसे में किसी एक को गद्दी का वारिस ठहराना कठिन प्रतीत होता है। फिर भी, कोशिश करने में हर्ज ही क्या है? आप तीनों राजकुमारों को अपनी-अपनी कौशलता का प्रदर्शन कर स्वयं को सुयोग्य वारिस सिद्ध करने का आदेश दीजिए। इस प्रदर्शन के उपरांत हम सुयोग्य वारिस का चयन कर पाने में सक्षम हो सकेंगे।" महाराज विक्रमध्वज ने महामंत्री के कथनानुसार ही किया। दूसरे दिन सुबह ही महल के राजकीय उद्यान में एक खुली प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। उस वक़्त महाराज विक्रमध्वज, महामंत्री सुकर्णनल तथा अन्य सभी प्रमुख सभासद वहां दर्शक के रूप में उपस्थित थे। तीनों राजकुमार प्रतियोगियों के रूप में अपनी योग्यता का परिचय देने के लिए तैयार खड़े थे। तभी, महामंत्री ने उठकर उन्हें संबोधित किया, "प्रिय राजकुमारों, यह प्रतियोगिता इसलिए आयोजित की गई है कि आप सभी अपने विवेकपूर्ण प्रदर्शन द्वारा स्वयं को राज्य के सबसे सुयोग्य उत्तराधिकारी सिद्ध कर सकें। आप सभी अपने कौशल प्रदर्शन के लिए तैयार हैं न?" राजकुमारों ने सहमति में सिर हिलाया। तब महाराज के इशारे पर एक चारण ने डंका बजाकर प्रतियोगिता प्रारंभ होने की घोषणा की। उपस्थित लोग राजकुमारों का रोमांचकारी प्रदर्शन देखने के लिए बेचैन थे। सबसे पहले बड़ा राजकुमार आगे बढ़ा। उसने सर्वप्रथम पिता को प्रणाम किया, तत्पश्चात अपने विराट धनुष की प्रत्यंचा कानों तक खींचकर 'टंकार' ध्वनि उत्पन्न कर विजयनाद किया। फिर, बिजली की तरह बाण का संचालन करने लगा। देखते ही देखते भयंकर विषधर उसके बाणों से बिंधा और 'धम्म' से नीचे आ गिरा। युवराज वीरध्वज का पराक्रम देख उपस्थित जन हर्षनाद कर उठे। मंत्री ने राजा से कहा, "महाराज, युवराज वीरध्वज अनोखी प्रतिभा रखने वाले हैं। वे दूरंदेशी, कुशल तीरंदाज तथा अदृश्य शत्रु को भी ताड़ लेने में सक्षम हैं।" इसके उपरांत मंझला राजकुमार शूरध्वज अपने प्रदर्शन को तत्पर हुआ। उसने भीषण वेग से बाण चलाए। प्रत्येक बाण के साथ आकाश मार्ग से गुजरने वाले एक हंस का एक-एक पंख कटकर गिरता चला गया। अंत में पंखहीन हंस स्वयं भी नीचे आ गिरा। ऐसा अद्भुत प्रदर्शन देखकर सभी चकित रह गए। महामंत्री ने महाराज विक्रमध्वज से कहा, "महाराज, युवराज शूरध्वज का प्रदर्शन लाजवाब है। उन्होंने उड़ते हुए एक पक्षीराज को खरोंच तक लगाए बिना उसके सारे पंख कतर डाले। वे तो 'उड़ती चिड़िया के पर गिन लेने' की क्षमता रखते हैं।" धीरध्वज का प्रदर्शन इस प्रकार, अंत में छोटे राजकुमार धीरध्वज की बारी आई। धीरध्वज ने अपने स्थान से उठकर सर्वप्रथम अपने पिता तथा वहां उपस्थित तमाम बुजुर्ग जनों का अभिवादन किया। फिर, आश्चर्यजनक ढंग से एक बाण सिंहासन पर बैठे अपने ही पिताश्री को लक्ष्य बनाकर छोड़ दिया। घातक सर्पिला बाण 'वर्षाकालीन मेघों के मध्य तड़कने वाली बिजली' जैसी चपलता से हवा में सनसनाता महाराज विक्रमध्वज के सीने के आर-पार हो जाना चाहता था, कि तभी, एकदम अद्भुत फुर्ती से युवराज धीरध्वज ने एक अन्य बाण चलाकर अपने पहले बाण के हवा में ही टुकड़े-टुकड़े कर दिए। युवराज धीरध्वज के इस उपक्रम ने वहां उपस्थित लोगों को 'सनन्' कर दिया। महाराज विक्रमध्वज को लगा कि वे महज भाग्यवश बच गए हैं, अन्यथा छोटे युवराज ने उनका प्राणांत करने में कोई कसर न छोड़ी थी। अतः वे अत्यंत क्रोध के साथ अपने आसन से उठ खड़े हुए और सैनिकों को आदेश दे डाला कि तत्काल युवराज को इस धृष्टता के एवज में बंदी बना लिया जाए। किन्तु तभी, महामंत्री सुकर्णनल ने उन्हें समझाया, "महाराज, कृपित न हों। हमें जिस सुयोग्य वारिस की तलाश थी, वह मिल गया है।" उत्तराधिकारी की घोषणा "मिल गया है?" महाराज चौक उठे। "कौन है वह?" "वह कोई और नहीं, छोटे युवराज धीरध्वज ही हैं," महामंत्री ने मंद मुस्कान के साथ कहा। "दरअसल, दोनों बड़े राजकुमार प्रतिभाशाली तथा कुशल धनुर्धर हैं। परंतु एक योग्य शासक के लिए इतना पर्याप्त नहीं है। गद्दी का सच्चा वारिस तो वही हो सकता है, जो गहरे आत्मविश्वास और दूरदृष्टि के साथ बड़े से बड़ा जोखिम उठाने की क्षमता रखता हो।" महामंत्री ने समझाया, "युवराज धीरध्वज ने व्यर्थ का प्रदर्शन न कर वास्तविक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने जोखिम उठाकर यह सिद्ध कर दिया कि वे आत्मविश्वासी और निर्णायक हैं। यही गुण उन्हें गद्दी का सच्चा हकदार बनाते हैं।" महाराज ने यह सुनकर धीरध्वज को गले से लगा लिया और उसे उत्तराधिकारी घोषित किया। एक शुभ मुहूर्त पर युवराज धीरध्वज का राज्याभिषेक बड़े धूमधाम के साथ संपन्न हुआ। कहानी की सीख: सच्चा नेतृत्व कौशल और आत्मविश्वास मांगता है:एक योग्य नेता केवल अपनी प्रतिभा या कौशल के बल पर नहीं, बल्कि अपने आत्मविश्वास, दूरदृष्टि और सही निर्णय लेने की क्षमता के आधार पर चुना जाता है। धीरध्वज ने यह साबित किया कि सच्चा शासक वही है जो कठिन परिस्थितियों में भी सही निर्णय ले सके। जोखिम उठाने की हिम्मत सफलता का रास्ता बनाती है:धीरध्वज ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए बड़ा जोखिम उठाया, लेकिन यह भी दिखाया कि उनके पास अपने कार्यों को नियंत्रित करने की क्षमता और आत्मविश्वास है। जीवन में जोखिम उठाने वाले ही अक्सर बड़ी सफलताएं हासिल करते हैं। योग्यता का मूल्यांकन विवेकपूर्ण तरीके से होना चाहिए:राजा विक्रमध्वज और महामंत्री सुकर्णनल ने यह सुनिश्चित किया कि उत्तराधिकारी का चयन केवल कौशल प्रदर्शन के आधार पर नहीं, बल्कि शासक बनने की सभी आवश्यक योग्यताओं को ध्यान में रखकर हो। सही निर्णय लेना नेतृत्व का सबसे महत्वपूर्ण गुण है:धीरध्वज का प्रदर्शन दिखाता है कि एक सच्चे नेता को केवल कौशलवान नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण और निर्णायक भी होना चाहिए। अहमियत दिखावे में नहीं, सार्थकता में है:दोनों बड़े राजकुमारों ने अपनी प्रतिभा का प्रभावशाली प्रदर्शन किया, लेकिन धीरध्वज ने दिखावे के बजाय गहरे अर्थ वाले कार्य को प्राथमिकता दी, जो उन्हें गद्दी का असली हकदार बनाता है। इस कहानी से हमें यह समझने को मिलता है कि नेतृत्व केवल शक्ति, कौशल या दिखावे का नाम नहीं है, बल्कि इसमें आत्मविश्वास, विवेक और सही निर्णय लेने की क्षमता का होना अत्यंत आवश्यक है। बाल कहानी यहाँ और भी हैं :- बाल कहानी : आँख की बाती: सच्चे उजाले की कहानीबाल कहानी : गौतम बुद्ध और नीरव का अनमोल उपहारबाल कहानी : रोनक और उसका ड्रोनबाल कहानी : ईमानदारी का हकदार #Hindi Bal Kahani #Bal Kahania Lotpot #Bal Kahania #Bal Kahaniyan #Bal Kahani Lotpot #Best Hindi Bal kahani #Bal kahani You May Also like Read the Next Article