Moral Story: सोनिया का संकोच एक लड़की थी, जिसका नाम था सोनिया। वह बहुत कम बोलती थी, लड़ाई-झगड़ा तो दूर की बात थी। वह अपनी कक्षा में अध्यापक से भी कोई प्रश्न नहीं करती थी। इसीलिए सभी उसे संकोची लड़की के नाम से जानते थे। By Lotpot 15 Jan 2024 in Stories Moral Stories New Update सोनिया का संकोच Moral Story सोनिया का संकोच:- एक लड़की थी, जिसका नाम था सोनिया। वह बहुत कम बोलती थी, लड़ाई-झगड़ा तो दूर की बात थी। वह अपनी कक्षा में अध्यापक से भी कोई प्रश्न नहीं करती थी। इसीलिए सभी उसे संकोची लड़की के नाम से जानते थे। वैसे तो उसकी कक्षा में अन्य संकोची लड़कियां भी थीं, लेकिन बिल्कुल शांत रहने के कारण संकोची कहते जिसकी तस्वीर उभरती वह सोनिया ही थी। उसके माता पिता भी उसके इस स्वभाव से चिंतित रहते। (Moral Stories | Stories) सोनिया के पिता सरकारी महकमे में अफसर थे। उनका सिर्फ दफ्तर में ही नहीं, समाज में भी दबदबा था। वह सोनिया के स्वभाव को लेकर चिंतित तो थे, लेकिन वह सोचते थे कि शायद यह उसका पैतृक गुण हो। क्योंकि वह खुद भी शुरू में बहुत संकोची थे, और बाद में ही मुखर हो सके थे। जब छटी कक्षा तक संकोच ने सोनिया का पीछा नहीं छोड़ा तो उसकी मां की चिंता बढ़ गई। क्योंकि लोग सोनिया को सीधी-सादी लड़की कहते, तो मां समझ जाती कि वे उसे दब्बू व मूर्ख कहना चाहते हैं। एक दिन काजल की माँ ने व्यंग भरे लहज़े में सोनिया की माँ से कहा, ‘सोनिया की मम्मी, इस बात को गंभीरता से लो। लड़की का संकोची होना अच्छी बात नहीं है। आज की दुनिया तो ऐसी भोली लड़की को चैन से नहीं जीने देती। आप इसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाएं। जिनके घर मे विचार-विमर्श, लिखने-पढ़ने का माहौल न हो, उनके बच्चे ऐसे हों तो कोई बात नहीं, लेकिन आपके घर में....।’ (Moral Stories | Stories) ‘नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बच्चों का अपना-अपना स्वभाव होता है। आगे चलकर यह भी तेज़ हो जाएगी।’ कहकर सोनिया की मां ने काजल की मां को टालना चाहा। उन्हें काजल की माँ की बात अच्छी नहीं लगी थी। सोनिया अपनी कक्षा में बोलने में जितनी संकोची थी, उतनी ही पढ़ाई-लिखाई में होशियार थी... सोनिया अपनी कक्षा में बोलने में जितनी संकोची थी, उतनी ही पढ़ाई-लिखाई में होशियार थी। यह बात उसके घर वालों के साथ-साथ अध्यापकों को भी पता थी। कक्षा की अधिकांश लड़कियों का ध्यान पढ़ने में कम, दूसरी बातों में अधिक रहता था। कक्षा में भी वे पढ़ाई की कम और इधर-उधर की बातें ज़्यादा करती थी। वे अपने अध्यापक-अध्यापिकाओं की नकल उतारती रहतीं। इन्हीं लड़कियों में से नीरू, सीमा और पर्णिका सोनिया की सहेलियां बन गईं। (Moral Stories | Stories) अध्यापक जब ब्लैक बोर्ड पर सवाल लिखने खड़े होते तो सीमा व नीरू अपने-अपने बस्तों से कागज़ की लंबी पूंछ निकालने लग जातीं। जब बच्चे अध्यापक के प्रश्न का उतर देने खड़े होते तो उनके पीछे कागज़ की पूंछ देखकर पूरी कक्षा में ठहाके लगते। सोनिया को यह बुरा तो लगता, लेकिन अपने संकोची स्वभाव के कारण उनकी शिकायत नहीं कर पाती थी। वैसे वो अध्यापक भी सोनिया की इन सहेलियों को मुँह नहीं लगाना चाहते थे। वे जब-तब अध्यापकों को भी भला-बुरा कहने में न हिचकिचाती थीं। इसलिए कोई भी अध्यापक उनसे कुछ भी न पूछता था। इससे निर्भय होकर उनकी शरारतें और भी बढ़ गई थीं। (Moral Stories | Stories) एक दिन सोनिया की माँ को कहीं नीरू और पर्णिका मिल गईं। वे दोनों लड़कियां सोनिया की बुराई करने लगीं, ‘आंटी, सोनिया बिल्कुल नहीं पढ़ती। जब सर उससे कुछ पूछते हैं तो वह जवाब भी नहीं देती। बस रोने बैठ जाती है। वह स्कूल का काम भी पूरा नहीं करती, टेस्ट में ‘सी’ आता है। डर के मारे वह ठीक से चल भी नहीं पाती। वह इतना धीरे चलती है कि चलने में भी संकोच लगता है। वह बहुत डरपोक है, आंटी।’ सोनिया की माँ ने उसके पिता से उसकी सहेलियों की बात बताई। सोनिया भी वहीं थीं, लेकिन उसने कोई प्रतिवाद नहीं किया। पिता ने जब सोनिया की रिपोर्ट बुक देखी तो उसे किसी भी विष्य में ‘सी’ ग्रेड नहीं मिला था। वह हर विष्य में अच्छे नंबर लाई थी। (Moral Stories | Stories) आखिरकार सोनिया के पिता ने सोनिया को अपने पास बुलाया और कहा, ‘देखो बेटी, तुम पढ़ने में तेज हो, तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा है, तुम किसी से कम नहीं हो, फिर तुम इन लड़कियों की बकवास बातों का प्रतिरोध क्यों नहीं करती? इनके सामने चुप मत रहो, इन्हें समझाओ कि वे गलत कर रही हैं, अगर नहीं मानती तो इनसे किनारा कर लो। सबसे अच्छी मित्र तो किताबें ही होती हैं, जो आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती हैं। जबकि तुम्हारी ऐसी सहेलियां नहीं चाहेंगी कि तुम अपना नाम रोशन करो। डरती तुम नहीं, डरती तो वे हैं। उन्हें इस बात का डर है कि तुम्हारे अगर अच्छे नंबर आएंगे तो उनकी पोल खुलेगी। तुम्हें किस बात का डर? न तो तुमने कोई चोरी की है, न किसी से उधार लिया है। तुम क्यों डरोगी? बस तुम्हें मुखर होना है, अपनी इन सहेलियों से पढ़ाई का कोई न कोई प्रश्न करती रहोगी तो वे या तो पढ़ने में रूचि लेंगी या फिर खुद तुमसे दूर हो जाएंगी। कोई गलत बात कहना है तो तर्कों का सहारा लो। तुम्हारे पास ज्ञान का भंडार है, फिर संकोच कैसा?’ पिता की बात का सोनिया पर गहरा असर हुआ था। वह बोली, ‘पापा, आप यह समझिए कि मेरे डर और संकोच का आखिरी दिन है। अब अगर कोई मेरे बारे में ऐसी बात करेगा तो मैं उसे देख लूंगी। पढ़ाई-लिखाई में मैं उन लड़कियों से ज़्यादा तेज़ हूँ, मुझे उनसे ज़्यादा बोलना आता है। एक दिन मैं आपको कुछ बनकर दिखाऊँगी।’ सोनिया के चेहरे से आत्मविश्वास फूट रहा था। सोनिया की माँ ने उसे सीने से लगा लिया। (Moral Stories | Stories) lotpot-e-comics | hindi-bal-kahania | bal kahani | short-stories | short-hindi-stories | hindi-short-stories | moral-stories | hindi-stories | kids-hindi-stories | kids-moral-stories | hindi-moral-stories | short-moral-stories-in-hindi | लोटपोट | lottpott-i-konmiks | hindii-baal-khaanii | baal-khaanii | bccon-kii-naitik-khaaniyaan | chottii-khaaniyaan | chottii-hindii-khaanii | हिंदी कहानी यह भी पढ़ें:- Moral Story: अंधा पहरेदार Moral Story: आदमी का मूल्य Moral Story: गुरूकर्म Moral Story: इर्षा का बदला #बाल कहानी #लोटपोट #हिंदी कहानी #Lotpot #Short moral stories in hindi #Bal kahani #Hindi Moral Stories #Kids Moral Stories #Moral Stories #Hindi Bal kahania #Kids Stories #बच्चों की नैतिक कहानियाँ #लोटपोट इ-कॉमिक्स #lotpot E-Comics #हिंदी बाल कहानी #छोटी हिंदी कहानी #hindi stories #hindi short Stories #Short Hindi Stories #short stories #kids hindi stories #छोटी कहानियाँ You May Also like Read the Next Article