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शिष्टाचार का सबक
Motivational Story शिष्टाचार का सबक:- हर व्यक्ति को अपने आप पर गर्व होना ही चाहिए, वे अक्सर कहा करते थे। वे ईश्वर चन्द्र विद्या सागर थे। उन दिनों वे संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। चूंकि कॉलेज के प्रधान थे। इसलिए दफ्तर के काम से सरों के यहाँ आना जाना लगा रहता था। (Motivational Stories | Stories)
एक बार वे किसी काम से प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रिसिपल मिस्टर कैट से मिलने के लिए...
एक बार वे किसी काम से प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रिसिपल मिस्टर कैट से मिलने के लिए गये। जब वे उनके कमरे में मुलाकात के लिए पहुँचे तो उन्हें बड़ा ही अजीब लगा, अजीब लगना भी चाहिए था, क्योंकि मिस्टर कैट दोनों पैरो को टेबल पर फैलाये आराम से बैठे थे। विद्या सागर जी जब उनके सामने चले गये तब भी वे उसी तरह बैठे रहे। उन्होने विद्या सागर जी को बैठने तक के लिए नहीं कहा। नमस्कार गुड मॉर्निंग या कोई आदर सूचक शब्द कहने को उनका मुँह नहीं खुला विद्या सागर जी आश्चर्य चकित रह गए। वे खडे-खड़े ही दफ्तर के काम की बातें करते रहे। बात पूरी होने पर चुपचाप चले आए। परन्तु मन ही मन मिस्टर कैट का यह व्यवहार उन्हें बहुत ही अजीब लगा। उन्होने इसे भारतीय नागरिकों का, भारत की उदार सांस्कृतिक परंम्पराओं का, शिष्ट व्यवहार का घोर अपमान माना। मन ही मन निश्चय किया कि उचित वक्त आने पर वे मिस्टर कैट को अच्छा सबक सिखलाएंगे। उन्होने सोचा शायद इसने शिष्टाचार का ‘क. ख .ग’ भी नहीं सीखा है। (Motivational Stories | Stories)
खैर कुछ ही दिनों के बाद किसी समस्या को निपटाने के लिए मिस्टर कैट को विद्या सागर जी की सलाह लेने की जरूरत आ पड़ी। मिस्टर कैट खुद उन्हें उनके कॉलेज में ही मिलने चले गए। गरज उनकी थी इसलिए क्या करते?
विद्या सागर जी ने उस वक्त चट्टियाँ (बंगाली ढंग की चप्पलें) पहन रखी थी। उन्होंने मिस्टर कैट को सुना तो फौरन पैर ऊपर उठा के मेज पर उसी तरह से फैला दिये जैसे कि उस दिन मिस्टर कैट ने फैला रखे थे। उन्होंने भी उस दिन मिस्टर कैट को न तो नमस्कार किया। न बैठने के लिए कुर्सी दी। वैसे ही बातचीत करते रहे। (Motivational Stories | Stories)
मिस्टर कैट इस व्यवहार से अन्दर ही अन्दर उबल उठा। उसे एक हिन्दुस्तानी संस्कृत कॉलेज के पंडित का यह बर्ताव बड़ा ही अखरा। उसने इसे विद्या सागर जी की बद्तमीजी कहते हुए शिक्षा परिषद (काउन्सिल ऑफ एजूकेशन) के सचिव को एक शिकायती खत लिखा। चाहा कि विद्या सागर जी से जवाब मांगा जाए दण्ड दिया जाए अफसर की इस तरह तौहीन करने का।
सचिव विद्या सागर जी को बहुत ही नजदीक से जानता था। इसलिए उसने सारी स्थिति भाँप ली। रस्मी तौर पर उसने उससे सारी बात पूछी। फिर उन्होंने एक ऑफिशियल चिट्ठी भेज दी। (Motivational Stories | Stories)
ईश्वर चन्द्र विद्या सागर चुप रहने वाले जीव कहाँ थे। वे तो इस प्रसंग को छेड़ने का, चर्चित करने का अवसर तलाश ही रहे थे। उन्होंने चट से सचिव डॉ. मुआट, को कहा!
‘मैं ठहरा एक अदना-सा हिन्दुस्तानी पडिंत। यूरोप के रस्मों रिवाजों, तौर तरीकों आदि को भला मैं क्या जानूँ? कुछ दिन पहले मैं मिस्टर कैट से मिलने उनके कार्यालय में गया था। वहाँ पर मैने मिस्टर कैट को हुबहु उसी ढंग से बैठा पाया था। उन्होंने मुझे बैठने के लिए भी कहने का कष्ट नहीं किया। मैं उसी तरह से खड़ा-खडा बात चीत करता रहा। पहले तो मुझे भी हैरत हुई थी। लेकिन फिर सोचा कि शायद यूरोप में शिष्टाचार का यही ढंग हो। इस लिए मैंने सोचा कि हम अर्ध सभ्य हिन्दुस्तानियों को ठाठ से नकल करना सीख कर आदर बना लेना चाहिए। अतः जब वे मेरे यहां तशरीफ लाए तो मैंने भी उनके साथ शिष्टता के उसी यूरोपीय तौर तरीके को अपनाया।’ (Motivational Stories | Stories)
डॉ. मुआट ने मिस्टर कैट को सारी बात अच्छी तरह समझाई। उसने आगे से भारतीय नागरिकों के स्वाभिमान पर चोट न करने की कसम खाई (तब बात खत्म हुई)। (Motivational Stories | Stories)
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