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बच्चो, क्या आपने कभी सोचा है कि फूल, पेड़, सूरज और नदी — ये सब हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं?
जी हाँ! ये प्रकृति के दोस्त हर दिन बिना कुछ कहे हमें जिंदगी जीने का सही तरीका बताते हैं।
यह सुंदर कविता हमें सिखाती है कि हम भी प्रकृति की तरह विनम्र, मददगार और खुशमिजाज बन सकते हैं।
आओ, इस कविता को पढ़ते हैं और सीखते हैं — फूलों की मुस्कान, दीपक की रोशनी और हवा की नर्मी से!
प्रकृति से सीखो
फूलों से नित हँसना सीखो,
भौंरों से नित गाना।
तरु की झुकी डालियों से नित,
सीखो शीश झुकाना।
सीख हवा के झोंकों से लो,
कोमल भाव बहाना।
दूध तथा पानी से सीखो,
मिलना और मिलाना।
सूरज की किरणों से सीखो,
जगना और जगाना।
लता और पेड़ों से सीखो,
सबको गले लगाना।
दीपक से सीखो जितना,
हो सके अँधेरा हरना।
पृथ्वी से सीखो प्राणी की,
सच्ची सेवा करना।
जलधारा से सीखो आगे,
जीवन-पथ में बढ़ना।
और धुएँ से सीखो हरदम,
ऊँचे ही पर चढ़ना।
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