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एकता
एकता एक ऐसा जीवन-मूल्य है जो न केवल समाज को जोड़कर रखता है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को शक्ति और सहारा भी देता है। द्वारिकाप्रसाद माहे की कविता “एकता” इसी महत्वपूर्ण मूल्य को सहज और सरल ढंग से बच्चों तक पहुँचाती है। कविता की शुरुआत वर्षा की बूँदों से होती है, जो अलग-अलग गिरती हैं लेकिन जब मिलती हैं तो तालाब, नदी और झरनों का रूप ले लेती हैं। यह चित्रण हमें सिखाता है कि अकेले हम चाहे जितने भी छोटे क्यों न हों, लेकिन जब सब मिलकर कार्य करते हैं तो बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
कविता में यह भी दिखाया गया है कि एकता केवल सकारात्मक कामों के लिए नहीं, बल्कि नकारात्मक परिणाम भी ला सकती है। जैसे वर्षा की बूँदें मिलकर धरती को हरा-भरा करती हैं, लेकिन कभी-कभी यही बूँदें बाढ़ का रूप लेकर बस्तियों को डुबो भी देती हैं। यह उदाहरण बच्चों को यह समझाने के लिए दिया गया है कि एकता में अपार बल तो है, लेकिन इस बल का सही दिशा में प्रयोग होना चाहिए।
लेखक अंत में यही संदेश देते हैं कि असली एकता वही है, जो सबके हित का साधन बने, किसी का नुकसान न करे। इस प्रकार यह कविता बच्चों को न केवल प्रकृति की सुंदरता से परिचित कराती है, बल्कि जीवन के एक बड़े सत्य से भी अवगत कराती है। पढ़ाई-लिखाई और सामाजिक जीवन में बच्चों के लिए यह सीख बेहद महत्वपूर्ण है कि सच्ची एकता हमेशा भलाई और सहयोग का आधार बननी चाहिए।
एकता
आती हैं वर्षा की बूँदें,
अलग-अलग, पर वे सब मिलकर
भर देती हैं ताल-तलैया,
बहती धार नदी की बनकर।
पेड़-पेड़, पत्ते-पत्ते को
जी भर-भर नहला देती हैं,
गरमी की मारी धरती का
हरा-भरा मन कर देती हैं।
लेकिन कभी-कभी मिलकर वे
रूप बाढ़ का भी ले जातीं,
बस्ती की बस्तियाँ डुबोकर
अपने संग बहा ले जातीं।
बल है बहुत एकता में वह,
हित-अनहित दोनों कर सकती;
किंतु एकता वही भली, जो
सबके हित का साधन बनती।
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