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कविता “गुड़िया की आंखों में सपने” मासूमियत और कल्पना की दुनिया को खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। इसमें एक नन्ही गुड़िया की आंखों में बसे सपनों का चित्रण है, जो कभी हंसी-खुशी से भरे होते हैं और कभी गहरी सोच जगाते हैं। कुछ सपने इतने सरल और बचपन जैसे होते हैं कि तुरंत चेहरे पर मुस्कान ला देते हैं, जबकि कुछ सपने इतने बड़े और गंभीर होते हैं कि जीवन की सच्चाइयों का एहसास कराते हैं।
यह कविता बच्चों को यह सिखाती है कि सपने सिर्फ सोते समय आने वाली कल्पनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे हमारी आशाएँ, इच्छाएँ और भविष्य की योजनाएँ भी होते हैं। कुछ सपने किताबों के पन्नों में छिप जाते हैं, तो कुछ हमारे सिरहाने हर रात नए रूप में उभर आते हैं। सपनों का यही सफर हमें जीने की प्रेरणा और आगे बढ़ने की हिम्मत देता है।
गुड़िया की आंखों में झांकते हुए हमें अपने बचपन की झलक मिलती है, जब हर छोटी बात भी एक सपना लगती थी। यह कविता बच्चों को अपने सपनों को संजोने और उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करने की प्रेरणा देती है। यह बताती है कि सपनों की उम्र नहीं होती, वे हमेशा नए और पुराने रूप में हमारे जीवन का हिस्सा बने रहते हैं।
गुड़िया की आंखों में सपने
नन्ही गुड़िया की आंखों में
सपने नए पुराने हैं,
कुछ रखे किताबों में
कुछ रखे सिरहाने हैं।
शोर मचाते देखो सपने,
दौड़ लगाते देखो सपने,
कुछ के चेहरे भूल गई हूं
पर कुछ तो पहचाने हैं।
नन्ही गुड़िया की आंखों में,
सपने नए पुराने हैं।
सपने भीतर झांक रहे हैं,
मूल्य अपना आंक रहे हैं,
कुछ सपने हैं बिल्कुल बच्चे,
पर कुछ बड़े सयाने हैं।
नन्ही गुड़िया की आंखों में,
सपने नए पुराने हैं।
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