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the courtyard of the earth flaunts (Hindi Poem)
धरती का आँगन इठलाता- यह कविता धरती के अद्भुत सौंदर्य और उसके असीमित वैभव का गुणगान करती है। इसमें शस्य-श्यामला भूमि, स्वर्णिम फसलें, और वैभवशाली अंचल को श्रद्धांजलि दी गई है। कवि मानव और धरती के चिरकालिक संबंधों को दर्शाते हुए यह संदेश देता है कि श्रम, आस्था, और त्याग से ही जीवन की सच्ची सार्थकता प्राप्त की जा सकती है।
कविता हमें प्रेरित करती है कि हम पुराने बंधनों को छोड़कर नए बीज बोएँ और एक नया युग निर्मित करें। इसमें "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना पर जोर दिया गया है, जो मानवता को एक परिवार मानने की भारतीय सोच को उजागर करती है।
कुल मिलाकर, यह कविता धरती के प्रति कृतज्ञता और नव निर्माण के संदेश को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है।
धरती का आँगन इठलाता!
शस्य श्यामला भू का यौवन
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता!
धरती का आँगन इठलाता!
जौ-गेहूँ की स्वर्णिम वाली
भू का अंचल वैभवशाली
इस अंचल से चिर अनादि से
अंतरंग मानव का नाता!
धरती का आँगन इठलाता!
आओ नए बीज हम बोएँ
विगत युगों के बंधन खोएँ
भारत की आत्मा का गौरव
स्वर्गलोक में भी न समाता!
धरती का आँगन इठलाता!
भारत जन रे धरती की निधि
न्यौछावर उन पर सहृदय विधि
दाता वे सर्वस्व दान कर
उनका अंतर नहीं अघाता!
धरती का आँगन इठलाता!
किया उन्होंने त्याग तप वरण
जन स्वभाव का स्नेह संचरण
आस्था ईश्वर के प्रति अक्षय
श्रम ही उनका भाग्य विधाता!
धरती का आँगन इठलाता!
सृजन स्वभाव से हो उर प्रेरित
नव श्री शोभा से उन्मेषित
हम वसुधैव कुटुंब ध्येय रख
बनें नए युग के निर्माता!
धरती का आँगन इठलाता!