Motivational Story: कर्तव्यहीनता
बहुत पहले की बात है, एक गांव में एक संत रहते थे। उनके बारे में सब लोग यही मानते थे कि वह अत्यंत विद्वान तथा त्यागी तपस्वी थे। वह सुबह उठते तो नहा-धोकर तपस्या करने बैठ जाते। शाम होती तो भगवान की उपासना होती।
बहुत पहले की बात है, एक गांव में एक संत रहते थे। उनके बारे में सब लोग यही मानते थे कि वह अत्यंत विद्वान तथा त्यागी तपस्वी थे। वह सुबह उठते तो नहा-धोकर तपस्या करने बैठ जाते। शाम होती तो भगवान की उपासना होती।
एक आम के पेड़ पर एक मैना अपने परिवार के साथ रहती थी, उसी पेड़ पर एक सुंदर सफेद बगुला भी अपने परिवार के साथ रहता था। लेकिन वो बहुत घमंडी था, उसे अपने उजले सफेद रंग रूप पर बड़ा गर्व था।
एक गुरूजी गुरूकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। वहां बड़े-छोटे सभी घरों के बच्चे पढ़ते थे। शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी। सभी घर लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी गुरू जी वहां आ गए।
हर व्यक्ति को अपने आप पर गर्व होना ही चाहिए, वे अक्सर कहा करते थे। वे ईश्वर चन्द्र विद्या सागर थे। उन दिनों वे संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। चूंकि कॉलेज के प्रधान थे।
एक शहर में दो चोर रहते थे। छोटी-मोटी चोरी करके अपना गुज़ारा चलाते थे। वे दोनों बचपन के दोस्त थे? साथ साथ रहते थे खेलते कूदते थे। जब बड़े हुए तो उन दोनों का ध्यान चोरी की तरफ गया।
एक राजा ब्राह्मणों को महल के आँगन में भोजन करा रहा था। राजा का रसोइयां खुले आँगन में भोजन पका रहा था।उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के ऊपर से गुजरी।
हर वर्ष दशहरे से पूर्व काशी की नाटक मंडली विजयनगर आती थी। सामान्यतः वे राजा कृष्णदेव राय तथा विजयनगर की प्रजा के लिए रामलीला किया करते थे। परंतु एक बार राजा को सूचना मिली कि नाटक मंडली विजयनगर नहीं आ रही है।