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बाल कहानी (Hindi Kids Stories) :प्रजा का सुख-दुख- हुजूर, आपकी शान बुलंद रहे। महाराज, आपकी बहादुरी के किस्से कभी भूले नहीं जा सकते। अन्न दाता, आप जैसा न्यायकारी राजा हमने कहीं नहीं देखा। महाराज, अपकी ख्याति चारों दिशाओं में फैली हुई है। जनता आपकी जय जयकार कर रही है। इस तरह कई खुशामद करने वाले प्राणी सुंदर वन के राजा शेर सिंह को घेरे रहते थे और रात दिन उसकी झूठी प्रशंसा करते रहते थे।
शेर सिंह को भी अपनी प्रशंसा सुनने की चाह थी। वह ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत कर रहा था। सुंदर वन की प्रजा की सुध लेना वह भूल ही गया। अपने राजा का यह आचरण देख कर मंत्री , सेनापति और अन्य कर्मचारी भी अपने कत्र्तव्य से विमुख होेते गए। इस कारण अनुशासन घटता गया और सुंदर वन के प्राणियों की समस्या दिनों दिन बढ़ती गई। पड़ोसी वनों के आतंक वादियों ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए, संुदर वन में उत्पात, लूटपाट और मार काट मचाना शुरू कर दिया। प्रजा त्राहि त्राहि करने लगी। सुन्दर वन के सिपाही कामचोर और अनुशासनहीन हो गए। उन्हें प्रजा की सुरक्षा की कोई चिन्ता नहीं रही।
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एक दिन आतंकवादियों ने सुंदर वन के एक बड़े विद्वान और समाज सेवी चन्द्र भाल भालू की दिन दहाड़े सब के सामने, गोली मार कर हत्या कर दी। वह हमेशा प्रजा के दुख सुख में काम आता था। जब भी किसी प्राणी पर कोई संकट आता था तो वह आगे बढ़ कर उसकी हर संभव सहायता करता था।
प्रजा तो पहले से ही पीड़ित थी। उस पर भालचन्द्र भालू की मृत्यु ने आग में घी का काम किया और प्रजा में रोष फैल गया।
सभी राजा शेर सिंह के खिलाफ नारे लगाने लगे। लूमा लोमड़ी तो राज दरबार में जा पहुँची और साहस बटोर
कर शेर सिंह को भरे दरबार में फटकारने लगी, राजा का फर्ज होता है प्रजा की सेवा करना, लेकिन आपको तो अपनी प्रशंसा सुनने और ऐशो आराम का जीवन व्यतीत करने से समय नहीं मिलता।
वह आगे बोली, आपके देखा-देखी, राज्य के कर्मचारी भी कर्त्तव्यहीन हो गए हैं। आज शत्रु-वनों द्वारा भेजे गए आतंकवादी हमारी सीमा में प्रवेश कर निडरता से आपकी प्रजा को लूटते हैं, हत्याएं करते हैं, किन्तु रक्षा करने वाला कोई भी नहीं हैं।
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लूमा लोमड़ी का यह साहस देख कर शेर सिंह अवाक् रह गया। मंत्री गेंडाराम ने, राजा का अपमान करने के अपराध में, सिपाहियों को उसे बंदी बनाने का आदेश दिया। किन्तु शेर सिंह ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया।
लूमा लोमड़ी ने राजा शेर सिंह की आँखे खोल दीं। दूसरे दिन ही वह स्वयं अपने सेनापति और सिपाहियों को साथ मैदान में कूद पड़ा। उसने घेरा डाल कर सभी आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया और फिर उनको सूली पर चढ़वा दिया।
इसी बीच लूमा लोमड़ी ने चतुर सीरू सियार की सहायता से शत्रु-वन के दो जासूसों को पकड़ लिया और उन्हें राजा शेर सिंह के सामने प्रस्तुत कर दिया।
जब उन जासूसों को मार डालने की धमकी दी गई तो उन्होंने सच्ची बात उगल दी कि राजा के अंग रक्षक टोली के दो सिपाहियों को धन का लालच देकर आज रात राजा शेर सिंह की हत्या करने का षड्यंत्र रचा गया था।
उन दोनों गद्दार सिपाहियों को तत्काल ही पकड़ लिया गया और जासूसों सहित चारों को सख्त सजा दी गई।
राजा शेर सिंह रात भर सोचता रहा। मैं इतने दिन केवल ऐशो-आराम के जीवन और खुशामद करने वालों के चक्कर में प्रजा की सुध लेना ही भूल गया। मेरा यह हाल देख कर मेरे दरबारी और कर्मचारी भी अपना कत्र्तव्य भूल गए। मैंने यह क्या किया?
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राजा शेर सिंह को बहुत पछतावा हुआ। उसके पश्चात् उसमें बड़ा परिवर्तन आया। उसका साहस, उसकी बुद्धिमानी फिर से निखरने लगी।
अब कोई उसकी खुशामद करता तो उसे तुरंत ही कैद की सजा दी जाती। अगर कोई कर्मचारी अपने कत्र्तव्य से विमुख होता तो उसे उसी समय ही नौकरी से हटा दिया जाता। वह रात के समय भेष बदल कर प्रजा के सुख-दुख की जानकारी लेने लगा। अगर कोई प्राणी संकट में होता तो उसकी तुरन्त सहायता की जाती।
इस प्रकार सुंदर वन के प्राणियों के कष्ट दूर हो गए और वे आनंद मंगल के साथ रहने लगे। अब प्रजा सच्चे मन से राजा की जय जयकार करने लगी।