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तेनालीराम की बुद्धि और हास्य
प्यारे बच्चों, क्या आप जानते हैं कि विजयनगर साम्राज्य के
आज हम तेनालीराम की एक ऐसी ही मज़ेदार कहानी पढ़ेंगे, जिसमें उन्होंने अपनी अक्ल से एक चोर को सबक सिखाया और अपने धन की रक्षा भी की।
चोर का इरादा और तेनालीराम का डर
एक बार की बात है, विजयनगर राज्य में
एक रात, जब पूरा नगर सो रहा था, चोर चुपके से तेनालीराम के घर के पीछे जा पहुँचा और दीवार फांदने लगा। तभी उसने घर के अंदर से तेनालीराम और उनकी पत्नी के फुसफुसाने की आवाज़ सुनी। चोर वहीं छिपकर उनकी बातें सुनने लगा।
तेनालीराम की 'गोपनीय' योजना
तेनालीराम अपनी पत्नी से कह रहे थे, "सुनो प्रिया, आजकल चोरी का खतरा बहुत बढ़ गया है। मैंने सुना है कि चोर हमारे घर पर भी नज़र रखे हुए हैं।"
चोर कान लगाकर सुनने लगा।
पत्नी: "तो अब हम क्या करेंगे? कहीं चोर हमारा सारा धन न ले जाएँ?"
तेनालीराम: (आवाज़ धीमी करते हुए) "मैंने सब सोच लिया है। हमारे सारे हीरे-जवाहरात और सोने के सिक्के... हमें उन्हें किसी सुरक्षित जगह पर छिपा देना चाहिए। मेरे दिमाग में एक शानदार जगह है, जहाँ चोर कभी नहीं पहुँच पाएगा।"
पत्नी: (उत्साह से) "जल्दी बताओ, कहाँ?"
तेनालीराम: "वो देखो, हमारे आँगन में जो
कुआँ है? वह आजकल खाली पड़ा है। चोर कभी नहीं सोचेगा कि हम इतना कीमती सामान पानी के कुएँ में छिपाएँगे। चलो, जल्दी से इन संदूकों को कपड़े में लपेटकर कुएँ में डाल देते हैं। जब खतरा टल जाएगा, तब निकाल लेंगे।"
चोर यह सुनकर बहुत खुश हुआ। 'वाह! यह तो मेरा काम और आसान हो गया,' उसने सोचा।
चोर का श्रम और तेनालीराम का आराम
तेनालीराम और उनकी पत्नी ने मिलकर दो बड़े, भारी संदूकों को उठाया और उन्हें आवाज़ करते हुए कुएँ के अंदर डाल दिया। संदूकों के गिरने की 'धम्म' की आवाज़ चोर ने साफ सुनी।
चोर ने सोचा, 'अब मुझे रात भर रुकने की क्या ज़रूरत है? ये दोनों तो अपने संदूकों को सुरक्षित समझकर सो जाएँगे। मैं बस इंतज़ार करूँगा और फिर चुपचाप कुएँ से सारा धन निकाल लूँगा।'
चोर कुछ देर इंतज़ार करने के बाद, आधी रात को कुएँ के पास पहुँचा। उसने कुएँ में झाँका और फिर खुशी से हँस पड़ा।
चोर ने बाल्टी और रस्सी उठाई और कुएँ से संदूकों को निकालने के लिए पानी खींचना शुरू किया। लेकिन क्योंकि कुआँ सूखा था, इसलिए उसे संदूकों तक पहुँचने के लिए पहले उन पर पानी डालना था ताकि वह गीली मिट्टी नरम हो जाए।
चोर ने पूरी रात मेहनत की। वह गाँव के दूसरे कुओं से पानी भरता, उसे लाकर तेनालीराम के कुएँ में डालता, फिर थोड़ी देर इंतज़ार करता, और फिर संदूकों को खींचने की कोशिश करता।
वह पसीने से लथपथ हो गया था। पूरी रात उसने इतनी मेहनत की जितनी उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी में नहीं की थी।
मूर्खता का एहसास और हास्य का अंत
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सुबह होने लगी, और सूरज की पहली किरणें निकलीं। चोर किसी तरह बाल्टी से खींचकर दोनों संदूकों को बाहर निकालने में कामयाब रहा। वह थककर चूर हो चुका था, लेकिन हीरे-जवाहरात देखने की लालच में उसने तुरंत संदूकों के ढक्कन खोले।
और यह क्या! दोनों संदूकों के अंदर सिर्फ पत्थर और मिट्टी भरी थी, कोई हीरा-जवाहरात नहीं!
ठीक उसी समय, तेनालीराम अपनी पत्नी के साथ टहलते हुए वहाँ आए। उन्होंने चोर को देखा, जो हताश होकर संदूकों के पास बैठा था।
तेनालीराम मुस्कुराए और चोर से कहा, "अरे भाई! तुम यहाँ इतनी सुबह-सुबह क्या कर रहे हो? और यह तुमने कुएँ में इतना पानी कहाँ से भर दिया? मेरा कुआँ तो कई महीनों से सूखा पड़ा था।"
चोर समझ गया कि उसे तेनालीराम ने अपनी चतुराई से फंसाया है। वह शर्मिंदा होकर बोला, "तेनालीराम जी, आपकी बुद्धि को मेरा सलाम! आपने मुझे मेहनत करना सिखा दिया। आज मैंने अपनी मूर्खता की कीमत चुकाई है।"
तेनालीराम ने हँसते हुए कहा, "चोरी करना छोड़ो भाई। जो मेहनत तुमने रात भर कुएँ को भरने में की है, अगर वही मेहनत तुम कोई अच्छा काम करने में लगाते, तो आज तुम राजा के खजांची बन सकते थे!"
चोर को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह माफी मांगकर वहाँ से भाग गया। तेनालीराम ने अपनी बुद्धि से चोर को सबक सिखाया और गाँव के कुएँ को भी पानी से भर दिया।
सीख (Moral of the Story)
इस तेनालीराम की मजेदार कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बुद्धि हमेशा बल से बड़ी होती है। अपनी अक्ल का सही इस्तेमाल करके हम बड़ी से बड़ी मुश्किल को आसानी से हल कर सकते हैं और बुरी आदतों पर भी जीत हासिल कर सकते हैं। मेहनत और ईमानदारी से काम करना चोरी से कहीं बेहतर है।
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