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बाल कहानी : नये साल का अमूल्य उपहार- रोमिका जंगल का शासक ‘राॅकी शेर’ प्रति वर्ष नये साल पर खूब खुशियाँ मनाया करता। नये साल की नूतन बेला में वह जंगल के समस्त प्राणियों को दावत देता और विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ भी आयोजित करवाता। इससे जंगल के सभी प्राणी बड़े खुश रहते। और उन्हें नये साल के आगमन का हर साल बेसब्री से इंतजार रहता। एक साल-नूतन वर्ष के दिन संत मीन्टू भालू पधारे। उन्होंने अपना पड़ाव जंगल की सीमा पर ही जमाया।
प्रसिद्धि सुनकर राॅकी शेर भी पहुंचे
उनकी प्रसिद्धि की शौहरत सुनकर खुद ‘राॅकी शेर’ उनके दर्शनार्थ पहुँचा और बोला। आज नूतन वर्ष का शुभ दिन है। इस दिन आप हमारी राजधानी में पधारे हैं। मैं आपको जंगल की ओर से हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ फिर ‘राॅकी शेर’ ने संत भालू से कहा। भेंट के तौर पर यह अशर्फियों भरी थैली आपके चरणों में रख रहा हूँ। मेरी भेंट सहर्ष स्वीकारें तथा नूतन वर्ष की खुशियों में भाग लेने आप भी हमारे साथ पधारें।
सुनकर संत भालू पल के लिए खामोश हुए। फिर अपने थैले से एक मक्का की रूखी रोटी निकाल कर बोले। शासक जी आप इसे खाइये। राॅकी शेर ने अपनी मोटी आँखों से उस रोटी को घूर कर देखा और फिर मुँह में रख ली। लेकिन उसे गले से नीचे न उतारी। संत भालू शेर की तरफ एक नजर से देखे जा रहे थे।
जब उन्होंने देखा कि वो रोटी मुँह से बाहर निकाल दी है तो वे बोले, सुनो वनराज! जिस तरह मेरी दी हुई चीज तुम्हारे गले से नीचे न उतर सकी, उसी तरह तुम्हारी दी हुई चीज मेरे गले से कैसे उतर सकती है? इसलिए प्रिय वनराज तुम अपनी ये अशर्फियाँ वापस ले जाओ। संत भालू के ये वचन सुनकर शेर की गर्दन झुक गई और उसकी आँखों से टपाटप आँसू गिरने लगे। फिर वह चुपचाप उठा और लौटने के लिए संत से इजाजत माँगी।
वनराज को हुई बड़ी हैरत
इस पर संत भालू खड़े हो गये। उन्हें खड़े देख कर वनराज को बड़ी हैरत हुई। पूछा- महात्मा जी! जब मैं यहाँ आया था तो आप अपनी जगह से हिले तक नहीं और अब जब मैं जा रहा हूँ तो आप मेरे सम्मान में उठ कर खड़े क्यों हो गये? आखिर क्या वजह है?
संत भालू यह सुनकर पहले तो मुस्कराये फिर बोले। सुनो शासक जी, जब तुम आये थे तो तुम्हारे साथ अशर्फियों की थैली थी, तुम्हारे सिर पर उसके अहंकार का भूत सवार था। लेकिन अब जब तुम जा रहे हो तो तुम्हारे सिर से वह अहंकार का भूत उतर चुका है। इसलिए अब तुम इज्जत करने के काबिल हो। समझ गये ना! यही वजह है मेरे उठकर खड़े हो जाने की।
संत भालू के मुख से यह सुनकर शेर कुछ सोच में पड़ गया। फिर प्रणाम कर बोला। महात्माजी यह सच है जिस वक्त मैं आपको यह थैली भेंट स्वरूप देने आया था तब मेरे सिर पर अहंकार का भूत सवार था लेकिन अब मेरा घमंड चूर-चूर हो गया है। बात अब समझ में आई। प्रजा के शोषण का पैसा भेंट देने योग्य नहीं होता। बल्कि मेहनत से कमाया पैसा ही भेंट देना चाहिए।
आज नये साल पर आपने मुझे अच्छा सबक दिया। मैं आज से कसम लेता हूँ। मैं अपनी प्रजा का शोषण नहीं करूँगा और न ही धन को यों ही व्यर्थ की खुशियाँ मनाकर बर्बाद करूँगा, बल्कि उसका उपयोग सही जगह करूँगा, और आपका यह उपदेश मेरे लिए नूतन वर्ष का तोहफा है जिसे मैं जिंदगी भर तक अपने पास रखूँगा और इसे कभी भूला न पाऊँगा।