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हिसाब बराबर
हिंदी जंगल कहानी: हिसाब बराबर:- हाथी दादा की दुकान पर जिराफ काका पहुंचे। "यह बाल्टी कितने की है?" जिराफ काका ने एक बड़ी बाल्टी को उलट पुलट कर पूछा "दो सौ रूपये की है"। हाथी दादा ने कहा, बहुत मजबूत है। बस, यही एक बची है। (Jungle Stories | Stories)
लेकिन मैं इसके सौ रूपये दूंगा।
और मैं पूरे दो सौ लूंगा। एक पैसा भी कम नहीं लूंगा।
"सौ ले लोगे तो क्या दुबले हो जाओगे?" जिराफ काका ने हंसकर पूछा।
हाथी दादा ने नहले पर दहला मारते हुए पूछा, "तुम दो सौ दे दोगे तो मर जाओगे क्या?"
"कुछ भी हो, मैं सौ ही दूंगा"।
"ऐसा करो" हाथी दादा ने कहा, "तुम बाल्टी मुफ्त में ले जाओ मेरी तरफ से उपहार समझ लो"।
"बहुत बहुत धन्यवाद!" कह कर जिराफ काका ने बाल्टी उठाई और चल पड़े। (Jungle Stories | Stories)
हाथी दादा को ऐसी उम्मीद न थी, उसने तो यह सोचकर उपहार में देने की बात कही थी कि उससे...
हाथी दादा को ऐसी उम्मीद न थी, उसने तो यह सोचकर उपहार में देने की बात कही थी कि उससे जिराफ काका को शर्म आएगी और वह पूरे पैसे देकर बाल्टी ले जाएगा और वह बाल्टी दो सौ रूपये में महंगी भी नहीं थी। वह बहुत सुंदर, बड़ी और मजबूत थी।
अचानक जिराफ काका ठिठका और पीछे मुड़ा। उसने वापस आकर कहा, "इतना बढ़िया उपहार तो कोई सच्चा मित्र ही देता है
न?"
"वह तो है!" हाथी दादा ने कहा।
"मुझे मित्र ही मानो"। (Jungle Stories | Stories)
"तब तो मेरा भी कुछ फर्ज है मैं तुम्हें उपहार में कुछ देना चाहूं तो मना तो न करोगे?"
हाथी दादा ने झुंझलाकर कहा, "चलो नहीं करूंगा मना"।
बस, यह सुनते ही जिराफ ने उसके हाथ में सौ का नोट रखा और चलता बना। हाथी दादा बड़बड़ाया, "तो इसने बाल्टी सौ रूपये में ले ही ली"।
एक सप्ताह बीत गया। दोपहर का समय था हाथी दादा दुकान में बैठा ऊंघ रहा था। "नमस्ते, हाथी दादा"। किसी ने कहा तो हाथी दादा ने चौंक कर देखा। सामने जिराफ काकी खड़ी हुई थीं।
"हमने आपसे जो बाल्टी खरीदी थी, वह बहुत मजबूत निकली"। हाथी दादा ने पूछा, जिराफ काका कैसे हैं? अच्छे हैं। "मुझे दस किलो चीनी चाहिए। कितने की आएगी?" (Jungle Stories | Stories)
"चार सौ रूपये की"।
"पर मैं तो दो सौ ही दूंगी"।
आप दो सौ भी रहने दीजिए। लाइए थैला, कहकर हाथी दादा ने भीतर जाकर थैला भरा और कस कर बांध दिया।
जिराफ काकी आज उसी तरह रूपऐ बचाना चाहती थीं, जिस तरह उस दिन जिराफ काका ने बचाए थे। थैला लेकर वह चल पड़ीं तो हाथी दादा ने कहा, "मैंने भीतर से मोटी और बढ़िया चीनी दी है। मेरी तरफ से उपहार समझें"।
जिराफ काकी मुड़ीं और दो सौ रूपये पकड़ा कर बोलीं, "मेरी तरफ से आपको भी उपहार"। हाथी दादा ने दो सौ रूपये लिए और मंदमंद मुस्कुराने लगे। जिराफ काकी खुश होकर चली गईं।
घर पहुंचते ही उसने जिराफ काका से कहा, "तुमने बाल्टी में सौ रूपये बचाए थे, मैंने पूरे दो सौ बचाए। यह हाथी दादा सचमुच मूर्ख है"।
"चलो, अब गर्मागर्म चाय पिलाओ, जिराफ काका ने कहा तो काकी थैला लेकर रसोई में चली गई। उसने जैसे ही थैला खोला, उसमें सबसे ऊपर एक चिट रखी मिली। उस पर लिखा था मेरी ओर से खास उपहार! आशा है आप लोग इसे कभी नहीं भूलेंगे।
जिराफ काकी ने थैले में झांका तो हाय हाय करके चिल्लाई। जिराफ काका भीतर दौड़ा। जिराफ काकी ने उसे पहले चिट दी फिर थैले में झांकने का इशारा किया। थैले में नमक भरा था। जिराफ काका ने माथा पीट कर कहा, "हिसाब बराबर"। (Jungle Stories | Stories)
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