हिंदी नैतिक कहानी: सहानुभूति और समझ की सीख दीपू, सोनू की खिंचाई करने में आनंद लेता है क्योंकि सोनू बैसाखी का सहारा लेता है। पिकनिक के दौरान दीपू का पैर टूट जाता है और उसे भी बैसाखी की जरूरत पड़ती है। दीपू को सोनू की पीड़ा का एहसास होता है और वह भविष्य में किसी को नहीं चिढ़ाने का संकल्प करता है। By Lotpot 10 Aug 2024 in Stories Moral Stories New Update सहानुभूति और समझ की सीख Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 हिंदी नैतिक कहानी: सहानुभूति और समझ की सीख:- दीपू और सोनू साथ ही पढ़ते थे। पोलियो के कारण बहुत छुटपन में ही सोनू की एक टांग खराब हो गई थी, जिसकी वजह से उसे बैसाखी का सहारा लेना पड़ता था। दीपू जब भी सोनू को देखता, उसे हंसी आ आ जाती और वह भी उसके सामने उसी तरह उचक-उचक कर चलने लगता। सोनू नजरें नीची करके क्लास रूम में चला जाता और डेस्क पर मुंह रखकर सिसकने लगता। टीचर के पूछने पर वह कोई बहाना बना देता। दीपू की सोनू को चिढ़ाने की आदत एक दिन सोनू अपनी मां के साथ बाजार जा रहा था तो रास्ते में ही उसे दीपू दिख गया। फिर क्या था, वह सोनू की मां की नज़र बचाकर लंगड़ा कर चलने लगा, जिससे सोनू चिढ़े। पर अचानक मां की नजर दीपू पर पड़ गई तो उन्हें उसकी यह हरकत बहुत बुरी लगी। उन्होंने दीपू को अपने पास बुलाया और प्यार से समझाते हुए कहा, "बेटा दीपू! लंगड़ा तो कोई भी हो सकता है। यह सोनू का दुर्भाग्य है कि उसे बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है। तुम्हें तो उसकी मदद करनी चाहिए और यह प्रयास करना चाहिए कि उसमें हीन भावना न आए उल्टे तुम उसे चिढ़ाते हो"। सोनू के साथ दीपू की शैतानी और दुर्घटना पर दीपू ने आंटी की हिदायत को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया। अभी भी उसने सोनू को चिढ़ाना नहीं छोड़ा। जब भी मौका लगता, वह सोनू की नकल जरूर उतारता। इसी बीच एक दिन स्कूल की ओर से पिकनिक का कार्यक्रम बना। सोनू भी अन्य बच्चों के साथ सिरिस्का गया। यह एक बड़ा ही सुरम्य स्थल था, जहां ऊपर से बहता झरना और चारों ओर स्थित पहाडियां, हरियाली मन को मोह लेती थी। बच्चों ने वहां पहुंचते ही धमा-चौकड़ी मचानी शुरू कर दी। सोनू एक कोने में बैठा सबको हंसता-खेलता देख रहा था। इसी बीच दीपू को शैतानी सूझी और वह सोनू के सामने आकर ऊपर की पहाड़ी से नीचे कूदने लगा। सोनू ने उसे मना भी किया कि वह इतनी ऊंचाई से न कूदे। पर भला दीपू कहां मानने वाला था। सोनू को चिढ़ा कर बोला, "अरे तुम कूद नहीं सकते तो मुझे क्यों मना कर रहे हो, तुम्हें तो भगवान ने सही टांग नहीं दी है, भला तुम मेरी तरह कैसे दौड़-भाग सकते हो"। यह कह कर दीपू ने ऊपरी पहाड़ी से छलांग लगाई। पर तभी उसका पैर मुड़ा और दीपू दर्द से कराह उठा। उसके पैर में भयंकर दर्द था। और वह काफी सूज गया था। दीपू को तुरंत ही पास स्थित प्राथमिक चिकित्सा केंद्र ले जाया गया जहां एक्स-रे के बाद पता लगा कि उसके पैर की हड्डी टूट गई है। सोनू की सहायता और दीपू की समझ दीपू के पैर पर प्लास्टर चढ़ गया। अब वह चल-फिर भी नहीं सकता था। सारे समय बिस्तर पर पड़ा रहता। लेटे-लेटे उसके सामने लंगड़ा कर चलते सोनू का चेहरा घूमने लगता। उसे लगता, कहीं वह भी सोनू की तरह लंगड़ा न हो जाए। तरह-तरह के डरावने ख्याल मन में आते। बिस्तर पर पड़े-पड़े वह बोर हो उठता। दो दिन बीते थे कि सोनू, दीपू के घर आ पहुंचा। वह उसके लिए ढेर सारे कॉमिक्स और पत्रिकाएं लाया था। दीपू की आंखों में आंसू छलक उठे, क्योंकि बीमारी में उसका कोई दोस्त उसके घर नही आया था। सोनू, जिसे वह खूब चिढ़ाता था, घंटों बैठकर उससे बातें करता, कहानी सुनाता और ढांढस बंधाता कि देखते-देखते एक माह बीत जाएगा और उसका प्लास्टर कट जाएगा। वह फिर पहले की तरह दौड़ने-भागने लगेगा। दीपू का नया दृष्टिकोण और उसकी बदलती सोच आखिर एक माह भी बीत गया और दीपू का प्लास्टर कट गया। पर अभी उसके पैरों में कमजोरी थी, इसलिए वह धीरे-धीरे लंगड़ा कर चलता था। स्कूल में सब बच्चे उसे चिढाने लगे, "सोनू की तरह दीपू भी लंगड़ा हो गया"। यह सुनकर दीपू तिलमिला उठता। अब उसे इस बात का एहसास हो गया था कि सोनू को जब वह चिढ़ाता था तो उसे कितना कष्ट होता होगा। उसी क्षण दीपू ने तय किया, कि अब वह कभी सोनू या उस जैसे लड़के को नहीं चिढ़ाएगा। कहानी से सीख:- हमें दूसरों की कठिनाइयों को समझना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए, बजाय उनकी स्थिति का मजाक उड़ाने के। सहानुभूति और मदद से ही हम सच्चे दोस्त बन सकते हैं और जीवन में बेहतर इंसान बन सकते हैं। यह भी पढ़ें:- हिंदी नैतिक कहानी: मासूम चोर हिंदी नैतिक कहानी: किताबें और ज्ञान हिंदी नैतिक कहानी: राज्य का चुनाव Moral Story: नासमझ चुन्नू #दो दोस्तों की कहानी #हिंदी नैतिक कहानी #hindi story of two friends #kids hindi moral story You May Also like Read the Next Article