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बाल कहानी : आत्मनिर्भरता की सीख- सोहन के पिता गाँव के सबसे बड़े ज़मींदार थे। सोहन उनका इकलौता पुत्र था। घर में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं थी। नौकरों की संख्या इतनी थी कि कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं थी। सोहन का ध्यान रखने के लिए घर में कई लोग मौजूद थे। जब भी वह खेलने जाता, उसके जूतों के फीते तक नौकर बाँध देते थे, और जब वह बल्ला उठाने जाता, तो उसके साथ उसका नौकर भी होता था।
गाँव में सिर्फ आठवीं कक्षा तक का ही स्कूल था, इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए सोहन को शहर जाकर पढ़ाई करनी पड़ी। काफी छानबीन के बाद, सोहन को शहर के सबसे अच्छे विद्यालय में दाखिला मिल गया। यहाँ उसे होस्टल में रहना पड़ा। गाँव में घर पर तो नौकरों के भरोसे सोहन के सारे काम होते थे, पर यहाँ होस्टल में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। होस्टल में नौकर साथ रखने की अनुमति नहीं थी।
हालाँकि कपड़े धोने का काम धोबी कर देता था, पर छोटे-मोटे कामों के लिए सोहन को कोई नहीं मिला। उसका सामान इधर-उधर बिखरा रहता, किताबें और कॉपियाँ बेतरतीब ढंग से पड़ी रहती थीं, और उनके पन्ने तक इधर-उधर बिखरे पड़े होते। कमरे में धूल और मिट्टी जमने लगी थी, और अलमारी में मकड़ियों के जाले लग गए थे। लेकिन, सोहन ने कभी भी सफाई करने की कोशिश नहीं की। वह सोचता था कि इतने बड़े ज़मींदार का बेटा भला अपने हाथ से सफाई कैसे कर सकता है? वह तो बस अपनी किताबें उठाकर कक्षा में चला जाता, यही बहुत था। उसने कभी कोई काम अपने हाथ से किया ही नहीं था, क्योंकि वह इसे अपनी शान के खिलाफ मानता था।
कई दिनों तक इसी तरह चलता रहा। एक दिन सोहन जब कक्षा से लौटा, तो उसने अपने कमरे का नज़ारा देखकर हैरानी से देखा। पूरा कमरा बहुत अच्छे से साफ-सुथरा था। कपड़े सही जगह पर टंगे हुए थे, और फर्श भी शीशे की तरह चमक रहा था। सोहन को समझ नहीं आया कि यह सब किसने किया है।
अगले दिन जब वह कक्षा से लौटा, तो फिर से कमरा उसी तरह व्यवस्थित मिला। अब सोहन के मन में जिज्ञासा हुई कि यह कौन है जो उसके कमरे की सफाई कर जाता है। उसने निश्चय किया कि वह इस रहस्यमयी व्यक्ति का पता लगाकर ही रहेगा।
तीसरे दिन, सोहन कक्षा का समय समाप्त होने से पहले ही अपने कमरे की ओर बढ़ चला। जैसे ही वह दरवाजे के पास पहुँचा, उसने देखा कि उसके कमरे में प्रधानाचार्य जी झाड़ू लगा रहे थे। यह दृश्य देखकर सोहन स्तब्ध रह गया। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने बड़े विद्यालय के प्रधानाचार्य एक विद्यार्थी के कमरे में झाड़ू लगा सकते हैं।
सोहन हक्का-बक्का होकर प्रधानाचार्य को देखता रहा। प्रधानाचार्य जी ने उसे देखते हुए मुस्कराते हुए कहा, "क्या हुआ बेटा? इस तरह आश्चर्य से क्यों देख रहे हो?"
सोहन ने झिझकते हुए पूछा, "गुरुजी, आप मेरे कमरे में झाड़ू क्यों लगा रहे हैं? यह तो नौकर का काम है।"
प्रधानाचार्य जी ने कहा, "बेटा, हम इस विद्यालय में केवल पुस्तकों तक सीमित शिक्षा नहीं देते। यह विद्यालय आपके जीवन के हर पहलू को सँवारने का प्रयास करता है। मेरा कर्तव्य है कि मैं हर छात्र के सर्वांगीण विकास में सहायता करूँ। मुझे पता चला कि तुम्हें अपने काम खुद करने की आदत नहीं है, और गंदगी में रहना तुम्हारे स्वास्थ्य और मानसिक विकास पर बुरा असर डाल सकता है। इसलिए मैंने सोचा कि जब तक तुम इसे नहीं समझते, मैं ही तुम्हारे कमरे की सफाई कर दिया करूँगा।"
यह सुनकर सोहन के मन में आत्मग्लानि पैदा हो गई। उसने प्रधानाचार्य जी के पांव पकड़ लिए और कहा, "नहीं गुरुजी, मुझे क्षमा कर दें। मैं अपनी झूठी शान में पड़ा हुआ था। आज के बाद मैं अपना काम स्वयं करूँगा। आपने मेरी आंखों से अज्ञानता का पर्दा हटा दिया है।"
यह कहते-कहते सोहन की आँखों में आँसू आ गए। प्रधानाचार्य जी ने उसे उठाकर गले लगाया और कहा, "तुमने जो सीखा है, उसे जीवनभर याद रखना। यही शिक्षा का असली उद्देश्य है।"
उस दिन के बाद सोहन ने अपना हर काम स्वयं करना शुरू कर दिया। उसने समझ लिया कि आत्मनिर्भरता ही सच्ची शान है, और काम करने से किसी की इज़्ज़त कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती है।
कहानी से सीख:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में आत्मनिर्भरता और अपने काम खुद करने की आदत ही सच्ची महानता है। भले ही आप कितने भी ऊँचे स्थान पर क्यों न हों, काम करने से कोई छोटा या बड़ा नहीं बनता। काम को शान और अभिमान से जोड़कर देखना गलत है। अपने काम खुद करने से व्यक्ति में अनुशासन, आत्मसम्मान और जिम्मेदारी की भावना आती है, जो उसे जीवन में महानता की ओर ले जाती है।
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