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यह कहानी "अहंकार का सबक-Story Lesson of Ego" एक व्यवसायी की है जिसने अपने कारोबार में खूब सफलता पाई और धन-संपत्ति अर्जित की। जैसे-जैसे उसका व्यापार बढ़ता गया, उसके नौकर-चाकर भी बढ़ते गए। लेकिन, सफलता के साथ-साथ उसमें घमंड भी बढ़ने लगा।
एक दिन उसका एक संबंधी उससे मिलने आया। वह खुद एक अच्छे पद पर कार्यरत था और उसे सम्मानजनक वेतन भी मिलता था। बातचीत के दौरान व्यवसायी ने संबंधी को उपेक्षा की नजर से देखा और अहंकार में कह दिया, "तुम जैसे पाँच नौकर तो मैं आसानी से रख सकता हूँ!"
संबंधी ने यह बात सुनकर थोड़ा असहज महसूस किया, लेकिन उसने शांत रहते हुए जवाब दिया, "अच्छा, वैसे आपके यहाँ कितने नौकर हैं?"
व्यवसायी ने घमंड से उत्तर दिया, "सात नौकर हैं।"
संबंधी ने फिर पूछा, "और हर एक को कितनी तनख्वाह देते हैं?"
व्यवसायी ने जवाब दिया, "तीन नौकरों को पाँच-पाँच सौ रुपये, दो को चार-चार सौ रुपये, और एक को तीन सौ रुपये हर रोज देता हूँ।"
संबंधी ने थोड़ी सोचकर कहा, "तो इसका मतलब है कि सात नौकरों को आप कुल 2600 रुपये देते हैं?"
व्यवसायी ने गर्व से 'हां' में उत्तर दिया।
अब संबंधी ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं एक अच्छे कॉलेज में प्रोफेसर हूँ और मुझे 2500 रुपये प्रति रोज मिलते हैं। मैं केवल ढाई घंटे की तीन क्लासेज लेता हूँ। यदि मैं आपके बच्चे को ढाई घंटे रोज पढ़ा दूं तो क्या आप मुझे 2500 रुपये प्रतिदिन देकर नौकर रख सकते हैं?"
व्यवसायी की यह सुनकर बोलती बंद हो गई। उसने तुरंत समझ लिया कि उसने बिना सोचे-समझे जो घमंड में कहा था, वह गलत था।
इस कहानी का संदेश:
अहंकार इंसान को अंधा बना देता है। रिश्तों में घमंड नहीं, बल्कि सम्मान और आदर का होना जरूरी है। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी की मेहनत का मूल्य आंकने से पहले खुद को उस स्थिति में रखना चाहिए।
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