Moral Story: वृद्ध दम्पत्ति की चतुराई

किसी गांव में जमुना प्रसाद और रूकमणी देवी नामक एक वृद्ध दम्पत्ति रहते थे। उनका एकलौता पुत्र बिरजू शहर में नौकरी करता था। बिरजू बार-बार उन दोनों को गांव की जमीन बेच कर शहर आ जाने के लिए कहता रहता।

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वृद्ध दम्पत्ति की चतुराई

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Moral Story वृद्ध दम्पत्ति की चतुराई:- किसी गांव में जमुना प्रसाद और रूकमणी देवी नामक एक वृद्ध दम्पत्ति रहते थे। उनका एकलौता पुत्र बिरजू शहर में नौकरी करता था। बिरजू बार-बार उन दोनों को गांव की जमीन बेच कर शहर आ जाने के लिए कहता रहता। किन्तु वे अपना गांव नहीं छोड़ना चाहते थे। (Moral Stories | Stories)

पिछले कुछ दिनों से गांव में एक चोर ने आंतक मचा रखा था। गांव वाले रात-रात भर जागकर पहरा देते थे फिर भी प्रत्येक रात किसी न किसी कं घर में चोरी हो जाती। उस चोर के कारण गांव का माहौल खराब हो गया था। ऐसे मे वृद्ध दम्तत्ति ने गांव छोड़ देने का निर्णय कर लिया। उन्होंने एक दिन अपनी जमीन 75 हजार में बेच दी और रूपए लेकर अपने बेटे के पास चल दिए।

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शहर जाने वाली बस उनके गांव से दो किलोमीटर की दूरी से मिलती थी। देर हो जाने के कारण उनकी आखिरी बस भी...

शहर जाने वाली बस उनके गांव से दो किलोमीटर की दूरी से मिलती थी। देर हो जाने के कारण उनकी आखिरी बस भी छूट गई। अत: मजबूरन रात गुजारने के लिए वे दोनों गांव वापस लौट आए। उन्हें काफी लोगों ने वापस आते देख लिया था। इसलिए वे मन ही मन आशंकित थे। रात में सोने से पहले उन्होंने घर के सभी दरवाजों को अच्छी तरह से बंद कर लिया था फिर भी नींद उनसे कोसों दूर थी। (Moral Stories | Stories)

आधी रात के आसपास कुछ आहट सी हुई। जमुना प्रसाद समझ गए कि घर में चोर घुस आया है। उन्होंने बेचैनी से चारपाई में करवट बदली तो चारपाई चरमरा उठी। “क्या बात है। नींद नहीं आ रही क्या?" पति को करवट बदलते देख रूकमणी देवी ने पूछा।

“अरी भाग्यवान, जिसके घर में 75 हजार की रकम हो उसे नींद भला कैसे आ सकती है?” जमुना प्रसाद ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया। (Moral Stories | Stories)

“तुम बेकार की चिंता मत करो, मुंह ढक कर सो जाओ।" रूकमणी देवी ने राय दी।

“अरे चिंता कैसे न करूं? 75 हजार की रकम कोई मामूली थोड़ी ही होती है। अगर कहीं उसे चोर उड़ा ले गए तो हम बर्बाद हो जाएंगे।" जमुना प्रसाद बड़बड़ाए।

“मैंने कह दिया तुम चिंता मत करो, तो मत करो।" रूकमणी देवी हंसी, फिर बोली “तुमने मुझे रूपयों का जो बंडल दिया था उसे मैंने ऐसी जगह छुपा कर रख दिया है कि चोर तो क्या उसके फरिश्ते भी नहीं ढूंढ पांएगे।"

“तुम सच कह रही हो?'' जमुना प्रसाद ने आश्वस्त होना चाहा।

“बिल्कुल सच। अब तुम आराम से सो जाओ।" रूकमणी देवी बोली।

“ठीक है, तुम कह रही हो तो मैं सो जाता हूं।" जमुना प्रसाद ने राहत भरे स्वर में कहा और मुंह ढककर सो गया। (Moral Stories | Stories)

उन दोनों की बातें सुनकर बगल में बैठा चोर सोच में पड़ गया। वह सोचने लगा कि आखिर कौन सी ऐसी जगह होगी जहां बुढ़िया ने रूपए छिपाए होंगे। बह अभी अपना दिमाग दौड़ा ही रहा था कि दूसरे कमरे में जमुना प्रसाद फिर उठकर बैठ गए।

“अरी भाग्यवान, ये बताओ कि तुमने रूपए कहां छुपाए हैं।” जमुना प्रसाद ने रूकमणी देवी को हिलाते हुए पूछा।

"जब तुमसे मैंने कह दिया कि मैंने रूपए संभालकर छुपा दिए हैं तो फिर क्यूं तंग कर रहे हो। चुपचाप सो जाओ और मुझे भी सोने दो।" रूकमणी देवी झल्ला उठी।

“पहले तुम मुझे यह बताओ कि रूपए कहां छुपाई हो।” जमुना प्रसाद ने जिद पकड़ ली।

“क्यों?”

क्योंकि मुझे तुम औरतों की बुद्धि पर विश्वास नहीं है। कहीं उल्टी-सीधी जगह रूपए रख दिए होंगे तो मुसीबत हो जाएगी।" (Moral Stories | Stories)

“अरे, तुम चिंता मत करो। रूपए मैंने बहुत संभाल कर आंगन वाले कुएं में डाल दिए हैं। सुबह उन्हें निकाल लेंगे।" रूकमणी देवी ने अत्यंत मासूमियत भरे स्वर में बताया।

यह सुनकर जमुना प्रसाद ने अपना माथा पीट लिया और चीखते हुए बोले "अरी करमजली, ये तूने क्या किया? रात भर में तो सारे रूपए पानी में गल जांएगे।”

रूकमणी देवी हंस पड़ीं, फिर बोलीं "तुमने मुझे क्‍या अपनी तरह मूर्ख समझ रखा है जो रूपए यूं ही पानी में फेंक दूंगी।”

“तो फिर क्‍या किया है?”

“मैने रूपयों के बंडल को पहले अच्छी तरह से मोटी पोलीथीन में लपेटा फिर उन्हें घी के चार किलो वाले प्लास्टिक के डिब्बे के भीतर रखा और डिब्बे को कुएं के भीतर डाल दिया है। वह डिब्बा रात भर पानी में तैरता रहेगा। सुबह पड़ोस के किसी लड़के को बुलवाकर निकलवा लेना।" रूकमणी देवी ने समझाया।

“अरे वाह, तू तो बहुत समझदार निकली। चोर को तो सपने में भी ख्याल नहीं आ सकता कि रूपए कुएं में तैर रहे होंगे।" जमुना प्रसाद ने अपनी पत्नी को प्रशंसात्मक दृष्टि से देखते हुए कहा और लम्बी तानकर सो गए। (Moral Stories | Stories)

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उधर दूसरे कमरे में बैठा चोर पूरी बात सुन रहा था। रूपयों का राज़ जानकर उसका दिल बिल्लियों जैसा उछलने लगा था। वह कुछ देर वहीं रूकमणी देवी के सो जाने का इंतजार करता रहा। लगभग आधे घंटे बाद वह चुपचाप आंगन में बने कुएं के पास आया। उसने लपककर रस्सी उठाई। उसका एक सिरा कुएं की घिरनी से बांधा और झटपट कुएं में उतरने लगा। पानी के भीतर पहुंचकर उसने एक हाथ से डिब्बे को उठाकर हिलाया। ठक..ठक की आवाज सुन उसका दिल झूम उठा। रूपयों का बंडल अंदर ही मौजूद था।

चोर अभी कुएं के बाहर आने की सोच ही रहा था कि भरभरा कर रस्सी उसके ऊपर आ गिरी। संतुलन बिगड़ जाने के कारण चोर पानी के भीतर गोते खाने लगा। काफी पानी उसके पेट के भीतर चला गया था। किसी तरह अपने को संभालते हुए चोर ने जब ऊपर देखा तो दंग रह गया। कुएं की मुंडेर के पास जमुना प्रसाद और रूकमणी देवी खड़े मुस्कुरा रहे थे।

इससे पहले कि चोर कुछ समझ पाता उन दोनों ने चोर चोर का शोर मचाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में गांव वाले लाठी-डंडा लेकर एकत्रित हो गए।

जमुना प्रेसाद ने बताया कि उन्‍हें शक था कि आज रात चोर उनके घर घुस सकता है इसलिए अपनी पत्नी के साथ योजना बनाकर पहले से ही एक खाली डिब्बे में कागज का बंडल भरकर उन्होंने कुएं में फेंक दिया था। |

गांव वालों ने जब चोर को कुएं से बाहर निकालकर पिटाई की तो उसने पिछली सारी चोरियों की बात कबूल कर ली। उसकी निशानदेही पर सारा सामान भी बरामद कर लिया गया।

जिस शातिर चोर को पकड़ने का काम पूरे गांव वाले मिलकर भी न कर सके उसे इस वृद्ध दम्पत्ति ने अपनी बुद्धि से कर दिया था।

गांव में एक बार फिर अमन-चैन लौट आया था। (Moral Stories | Stories)

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