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साधु
Moral Story साधु:- अकबर ने अपना शासन तेरह साल की उम्र में संभाला था। अपने शासन में अकबर ने कई बड़े अंपायर बनाए। वह अकल्पनीय चमक में रहते थे। उनके आसपास ढेरों सेवक रहते थे और उनके सेवक उनके हर शब्द को मानते थे। अकबर के सेवक अकबर को भगवान की तरह मानते थे। वैसे राजा अकबर कभी कभी घमंडी हो जाते थे और सोचते थे कि पूरा विश्व उन्हीं का है। एक दिन बीरबल ने अकबर को अपने बारे में छोड़कर ज़िंदगी के बारे में उनकी सोच बदलने का फैसला किया। उस शाम जब अकबर अपने महल में जा रहे थे, तो उन्होंने अपने महल के बगीचे के बीच में एक साधू को लेटे हुए देखा। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। साधु ने फटे हुए कपड़े पहने हुए थे और वह बगीचे के बीच में लेटा हुआ था। साधु को देखकर अकबर को गुस्सा आ गया और उसने सुरक्षाकर्मियों को डांटने का फैसला किया। अकबर ने बगीचे में जाकर साधु के आसपास चक्कर लगाए और उसे अपने चप्पल की नोंक से सीधा किया। राजा ने कहा, ‘सुनो! तुम यहां पर क्या कर रहे हो। एक बार में खड़े हो जाओ।’ उस साधु ने अपनी आँखें खोलीं। और फिर वह नींद में धीरे से खड़ा हुआ और बोला, ‘हुज़ूर, क्या यह आपका बगीचा है?’ बादशाह अकबर ने कहा, ‘हाँ, यह मेरा बगीचा है। यह बगीचा, वह फूल, वह फव्वारा, वह महल और यह पूरा राज्य मेरा है।’ धीरे धीरे वह साधु खड़ा हुआ और उसने बोला ‘हुजूर, वह नदी? यह शहर और यह देश?’ (Moral Stories | Stories)
‘हां, हां, यह सब मेरा है।’, बादशाह ने कहा, ‘अब यहां से निकल जाओ।’ (Moral Stories | Stories)
‘अच्छा!’ साधु ने कहा, ‘हुजूर, आपसे पहले यह बगीचा, राज्य और यह...
‘अच्छा!’ साधु ने कहा, ‘हुजूर, आपसे पहले यह बगीचा, राज्य और यह शहर किसका था?’ ‘मेरे से पहले यह सब मेरे पिता का था’, बादशाह अकबर ने कहा। साधु की बेकार की बातों से गुस्सा होने के बावजूद अकबर साधु के प्रश्नों में दिलचस्पी लेने लगा। उन्हें उससे बातें करने में मज़ा आने लगा। साधु की बातों से उसे लग रहा था कि साधु ज्ञानी है। (Moral Stories | Stories)
साधु ने फिर पूछा, ‘अच्छा, फिर उनसे पहले यह सब किसका था?’
उनके पिता का, मेरे पिता के पिता का’, अकबर ने कहा। (Moral Stories | Stories)
साधु ने कहा, ‘अच्छा’ तो यह बगीचा, यह फूल, यह किला, यह राज्य आपके जीवनकाल के लिए आपका है। इससे पहले यह आपके पिता का था। मैंने सही कहा ना। और आपके बाद यह आपके बेटे का होगा और उसके बाद आपके बेटे के बेटे का होगा?’ (Moral Stories | Stories)
अकबर ने सोचते हुए कहा, ‘हाँ’। ‘हर कोई एक समय के लिए रहता है और फिर अपने अगले रास्ते पर निकल जाता है?’ ‘हां’
‘जैसे की धर्मशाला’ साधु ने पूछा। ‘धर्मशाला किसी की नहीं होती और सड़क पर पड़ने वाली पेड़ की छांव भी किसी की नहीं होती। हम कुछ देर रुकते हैं और फिर आराम करके आगे बढ़ जाते हैं। और उस जगह पर हमसे पहले हमेशा कोई न कोई होता है और फिर हमारे जाने के बाद कोई न कोई आता है। यही होता है ना?’ (Moral Stories | Stories)
‘हां यही होता है।’ अकबर ने शांति से कहा।
‘तो तुम्हारा यह बगीचा, तुम्हारा महल, तुम्हारा राज्य....यह सब तुम्हारी तब तक है, जब तक तुम जीवित हो। तुम्हारे जीवनकाल तक यह सब चीजें तुम्हारी हैं। जब तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तो यह सब चीज़ें तुम्हारी नहीं रहेंगी। तुम चले जाओगे और यह सब चीज़ें किसी न किसी के नाम कर जाओगे। जैसे तुम्हारे पिता ने किया था, और तुम्हारे पिता के पिता ने किया था।’ (Moral Stories | Stories)
अकबर ने सभी बातें सुनकर अपना सिर हिलाया फिर धीरे से कहा, ‘यह पूरा विश्व धर्मशाला है।’ ‘हम इस धर्मशाला में कुछ देर तक आराम करते हैं। आप मुझे यही बता रहे हैं। इस पृथ्वी पर सब चीज़े एक आदमी की नहीं होती। क्योंकि हर मनुष्य इस पृथ्वी पर आकर कुछ समय बाद चला जाता है। हर मनुष्य को चाहे वह बादशाह हो एक दिन मरना ही होता है।’ (Moral Stories | Stories)
अकबर की बात को सुनकर साधु ने सिर हिलाया। फिर ज़मीन पर झुककर उस साधु ने अपनी सफेद दाढ़ी उतारी और अपना झोला उतारकर अपनी आवाज़ बदलकर कहा, ‘जहाँपनाह, मुझे माफ कर दीजिए।’ बीरबल ने अपनी आवाज़ में कहा, ‘यह आपकी सोच बदलने का मेरा अपना तरीका था।’ (Moral Stories | Stories)
अकबर ने कहा, ‘बीरबल, ओह बीरबल। तुम मेरे से ज़्यादा समझदार और होशियार हो। आओ, महल में चलें और हम इस बात पर और चर्चा करेंगे। यहां तक जीवन के पथ पर सम्राटों को भी सलाह की ज़रूरत पड़ती है।’ (Moral Stories | Stories)
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