Motivational Story: दिवाली का जोश

दिवाली के दिन पटाखों की आवाज़ों की वजह से चंदन अपने कानों को हाथ से ढक रहा था ताकि पटाखों की आवाज़ उसके कानों में ना जाए। पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था। हर जगह पटाखे फूट रहे थे।

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दिवाली का जोश

Motivational Story दिवाली का जोश:- दिवाली के दिन पटाखों की आवाज़ों की वजह से चंदन अपने कानों को हाथ से ढक रहा था ताकि पटाखों की आवाज़ उसके कानों में ना जाए। पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था। हर जगह पटाखे फूट रहे थे। चंदन जिस ढाबे में काम करता था, वह वहां पर एक कोने में लकड़ी के पलंग पर लेटा हुआ था। वह पूरी दुनिया से कटकर सोने की कोशिश कर रहा था। दिवाली- रोशनी का त्योहार, हर किसी के लिए खुशियां लेकर आता है। हर किसी के लिए, सिर्फ उसे छोड़कर। उसे तीन साल पहले की दिवाली का दिन याद आया.... ‘चंदन, तुम कितने आलसी हो। खड़े हो। क्या तुम भूल गए? आज दिवाली है। तुम्हें अपने बाबूजी के साथ बाज़ार जाना है और पूजा के लिए सामान खरीदकर लाना है। सबसे ज़्यादा ज़रूरी तुम्हें तुम्हारे पसंद के पटाखे खरीदने हैं।’ चंदन की माँ सुजाता ने उस पर से रजाई उठाते हुए कहा। पटाखों का नाम सुनते ही चंदन पलंग से उठ गया और अपनी माँ के गले लग गया। उसने पटाखों की पहले से ही लंबी लिस्ट बना रखी थी- रॉकेट, लक्ष्मी बम, विष्णु बम, हाइड्रोजन बम, लड़ी और गोला बम। उसे पता था कि पटाखों की वजह से उसकी बहन अंजली से लड़ाई पक्की होगी क्योंकि उसकी बहन को पटाखे पसंद नहीं थे। उसे पटाखों से नफरत थी। उसे सिर्फ फूलझड़ी, पेंसिल हंटर, चकरी, अनार और रोशनी पंसद थी। बाबूजी हमेशा अंजली का साथ देते थे। जब वो बाज़ार से आए तो दो बज चुके थे और चंदन को भूख लगी थी। उसकी माँ ने उसका पसंदीदा खाना खीर और हलवा बनाया था। उसने माँ के हाथों बने इस खाने को पूरे स्वाद के साथ खाया। शाम के छह बजे के करीब जब वह लक्ष्मी पूजा के लिए बैठने लगे थे तभी उन्हें एक संदेशा मिला। बाबूजी के कपड़ों की दुकान के मालिक रतन शाह को दिल का दौरा पड़ा है। बाबूजी ने चंदन की माँ से कहा, ‘मैं जाता हूँ और उन्हें देखकर वापिस आता हूँ।’ माँ ने कहा, ‘मैं भी आपके साथ चलती हूँ। हम अंजली को भी ले चलते हैं। वह सुधा का साथ देगी। बेचारी बच्ची सुधा को इस समय बहुत बुरा लग रहा होगा।’ सुधा रतन शाह की छोटी बेटी थी और वह अंजलि की ही कक्षा में पढ़ती थी। (Motivational Stories | Stories)

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बाबूजी ने आखिरी बार चंदन से कहा, ‘चंदन, तुम यहां रहो। हम जितनी जल्दी हो सके वापिस आएंगे...

बाबूजी ने आखिरी बार चंदन से कहा, ‘चंदन, तुम यहां रहो। हम जितनी जल्दी हो सके वापिस आएंगे।’ अस्पताल से वापिस आते समय बाबूजी की गाड़ी ट्रक से टकरा गई। तीनों की मौके पर ही मौत हो गई। दिवाली की जगमगाती रात को चंदन की छोटी सी दुनिया में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया। दो हफ्तों बाद चंदन के चाचा बिरजू अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ चंदन के घर अपना सामान लेकर रहने आ गया। बिरजू के चाचा ने सभी आसपास के लोगों से कहा, ‘जिस दिन से मुझे इस हादसे के बारे में पता चला उसी दिन से मैंने फैसला कर लिया कि मैं गांव में सब कुछ छोड़कर शहर में चंदन की देखभाल करूंगा। बेचारे इस अनाथ का अब इस दुनिया में और कोई नहीं है। चंदन को अपने चाचा, उनकी पत्नी और बच्चे बिल्कुल पसंद नहीं थे। चाचा को परिवार में हमेशा काला भेड़िया समझा जाता था। वह किसी काम के लिए अच्छे नहीं थे। लेकिन चंदन के पास और कोई रास्ता नहीं था। बिरजू चाचा और उसके परिवार ने पूरे घर पर अपना हक जमा लिया और छह महीने के अंदर चंदन को उस घर का नौकर बना दिया। पूरे परिवार को चंदन को तंग करने में बहुत सुख मिलता था। उसके पिता के छोड़े गए पैसे और उसकी माँ के गहनों पर चाचा और चाची ने हक जमा लिया। उसके चचेरे भाई बहन उस पर हुक्म चलाते थे। चंदन को घर का सारा काम करना पड़ता था। एक दिन इस अन्याय से तंग आकर चंदन घर से भाग गया और उसने पहली रेलगाड़ी पकड़ कर अहमदाबाद को छोड़ दिया और वह बडौदा आ गया। तीन महीने तक सड़को पर भटकने के बाद उसे बख्शी के ढाबे पर एक नौकरी मिली। वह पूरे दिन काम करता था। ढाबे पर वह पानी देने के अलावा टेबल साफ करता था। एक रात उसे ढाबे में सोने की इजाज़त मिल गई। अब ढाबा उसके काम करने की जगह के साथ उसका घर भी था। उस काली दिवाली के बाद चंदन ने अब तक दो और दिवाली नहीं मनाई थी। (Motivational Stories | Stories)

यह तीसरी दिवाली थी। जहां पूरी दुनिया रोशनी के इस त्यौहार को मना रही थी, चंदन अपने परिवार को खोने और अपनी खुशियों के चले जाने का गम मना रहा था। ‘आह’ चंदन यह आवाज़ सुनकर खड़ा हुआ। क्या उसने वाकई किसी के दर्द की आवाज़ सुनी थी या फिर वह उसका भ्रम था। ‘आह’, उसने वह आवाज़ दोबारा सुनी। वह उठा और बाहर गया। एक बूढ़ा आदमी सड़क पर लेटा हुआ था। वह करीब सत्तर वर्ष का होगा। उसके सफेद बाल थे और सफेद दाढ़ी थी। उसने सफेद कुर्ता पायजामा पहना हुआ था। चंदन ने उस बुज़ुर्ग की मदद करके उसे लकड़ी के मेज पर बिठाया। बूढ़े आदमी ने कहा, ‘शुक्रिया बेटा।’ उस बुजुर्ग की बहुत धीमी और हल्की आवाज़ थी। ढाबे के सामने विमल सिनेमा था जो पूरी तरह रोशनी से जगमगा रहा था। जब रोशनी बूढ़े बुजुर्ग के चेहरे पर पड़ी तो चंदन को पता चला कि वह बुजुर्ग नेत्रहीन है। चंदन ने कहा, ‘बाबा, आप रात के इस समय अकेले क्या कर रहे हैं?‘ ‘बेटा मैं अकेला हूँ।’ ‘क्यों?’ ‘आपके बच्चे और पत्नी कहां हैं?’ ‘मेरा कोई नहीं है? मेरे दो बच्चों ने मेरी पत्नी के निधन के बाद मुझे घर से बाहर निकाल दिया है।’ ‘तुम कहां रहते हो?’ ‘क्या, तुम्हें जैन मंदिर के पास वाला बाज़ार पता है?’ हां, ‘वहां एक आश्रम है। मैं वहां पर मेरे जैसे कई लोगों के साथ रहता हूँ जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है।’ ‘लेकिन आप इस समय अपने आश्रम से दूर यहां क्या कर रहे हैं? ‘बेटा, आज दिवाली है। खुशियों और रोशनी का त्यौहार। मैं कैसे एक कमरे के अंदर बंद होकर रह सकता था। मैं बाहर खुशियां मनाने आया हूँ।’ (Motivational Stories | Stories)

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‘लेकिन बाबा, आप तो देख भी नहीं सकते। आप क्या मज़े करेंगे? ‘बेटा, किसने कहा कि मैं मज़े नहीं कर सकता। मैं बेशक अपनी आँखों से नहीं देख सकता लेकिन मैं सुन सकता हूँ, महसूस कर सकता हूँ और मैं सांस ले सकता हूँ। सबसे ज़्यादा मैं इन खुशियों को महसूस कर सकता हूँ। पटाखे फूटने की आवाज़, मिठाईयों की खुशबू, बच्चों का चिल्लाना और शोर मचाना और जगमगाते दीप और रोशनी से भरा सारा माहौल.... तुम क्या सोचते हो कि मैं यह सब खुद से अलग होने दूंगा? दिवाली त्योहारों का त्योहार है। यह हमें दूसरों के साथ खुशियां बांटना सिखाता है। इसलिए मैं सड़क पर निकला। देखो मेरी जेब में छोटे पैकेट हैं, इनमें  मिठाई है। हर साल मैं थोड़े पैसे बचाने की कोशिश करता हूँ और दिवाली के दिन अपनी सारी बचत से मैं मिठाइयां खरीदता हूँ और अपने से गरीब लोगों को मिठाईयां बांटता हूँ जिन्हें खुशियां नहीं मिल पाती।’ चंदन ने हैरानी से बूढ़े आदमी की तरफ देखा। पिछले तीन साल से वह खुद को दोष देते हुए दिवाली और भगवान को कोसता था। वह युवा और स्वस्थ था और उसके आगे उसकी पूरी ज़िंदगी थी। फिर भी वह अपने बीते हुए कल की वजह से अपने आज का मज़ा नहीं ले पा रहा था। उसके बिल्कुल अलग एक बूढ़ा आदमी जो नेत्रहीन था और अपनी ज़िंदगी के लगभग आखिरी पड़ाव पर था। लेकिन वह खुशियां मनाने के लिए हर छोटी छोटी चीज़ करता था। बूढ़ा आदमी उठा और उसने कहा, ‘अच्छा बेटा, तुम्हारी मदद के लिए शुक्रिया। ये मिठाई का पैकेट ले लो। मां लक्ष्मी तुम्हें आर्शीवाद दें।’ बूढ़ा आदमी यह कहकर वहां से चला गया। उसके कहे हुए शब्द चंदन के दिमाग में घूमते रहे। उस दिवाली की अकेली रात में जब भी चंदन ने नीचे देखा तो उसे वह बूढ़ा आदमी याद आया। उसका भोला चेहरा चंदन की आंखों के आगे घूमता रहा और उसकी आवाज़ उसके कानों में पड़ती रही। इसके बाद चंदन के मन में एक नई उम्मीद जागी और उसने इस दुनिया को नए ढंग से जीने का निश्चय किया। (Motivational Stories | Stories)

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