हिंदी बाल कविता: घूंघट में गुड़िया

By Lotpot
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घूंघट में गुड़िया

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घूंघट में गुड़िया

हल्के से घूंघट में गुड़िया,
लगती जैसे एक परी हो। 

जो अपनी साखियों से मिलने,
सुंदर धरती पर उतरी हो। 

देख रही अचरज से दुनिया का,
यह आंगन रंग रंगीला।

सुनती है चिड़ियों की बातें,
कोयल का संगीत सुरीला।

यहीं बह रही कल कल नदियां,
ऊँचे पर्वत यहीं खड़े हैं। 

अपने हाथों से मेहनत से,
मानव ने क्या रूप गढ़े हैं। 

यहीं सजे हैं बाग बगीचे,
हरियाली के कपड़े पहने। 

स्वर्ग बहुत प्यारा है लेकिन,
धरती के सचमुच क्या कहने?

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