हिंदी बाल कविता: पत्ता बोला

By Lotpot
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पत्ता बोला

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पत्ता बोला

टहनी पर बैठा मैं इठलाता,
पतझड़ में हूँ मैं झड़ जाता।

फिर वर्षा में हूं मैं उग आता,
पौधा मुझसे शोभा पाता।

हरियाली का मुझसे नाता,
शुद्ध हवा का मैं निर्माता।

पीकर सभी की वायु दूषित,
करता हूँ मैं भोजन निर्मित।

गोल, तिकोनी, भाले जैसी,
पतली, मोटी, ताले जैसी।

तरह-तरह की मेरी काया,
यह सारी ईश्वर की माया।

हरा रंग तोते सा पाया,
सबको देता ठण्डी छाया।

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