कविता : रसोईघर- चकला-बेलन की मस्ती

कविता "रसोईघर की बातें" एक मजेदार और जीवंत चित्रण है जो रसोईघर में इस्तेमाल होने वाले सामानों को मानवीय रूप देती है। इसमें चकला, बेलन, चाकू, छलनी, और थाली जैसे पात्रों के माध्यम से उनके रोजमर्रा के कामों का वर्णन किया गया है।

By Lotpot
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कविता : रसोईघर- चकला-बेलन की मस्ती
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कविता : रसोईघर- चकला-बेलन की मस्ती- कविता "रसोईघर की बातें" एक मजेदार और जीवंत चित्रण है जो रसोईघर में इस्तेमाल होने वाले सामानों को मानवीय रूप देती है। इसमें चकला, बेलन, चाकू, छलनी, और थाली जैसे पात्रों के माध्यम से उनके रोजमर्रा के कामों का वर्णन किया गया है। कविता बच्चों के लिए खासतौर पर आकर्षक है क्योंकि यह हर रोज देखे जाने वाले रसोईघर के सामानों को मजेदार तरीके से प्रस्तुत करती है।

चकला और बेलन मिलकर बातचीत करते हैं और काम की मस्ती में लगे रहते हैं। चाकू अपनी धार दिखाते हुए सब्जियों को टुकड़ों में काटता है और उन्हें सजाने की जिम्मेदारी निभाता है। थाली अपने गोल आकार और बजने की क्षमता को गर्व से दर्शाती है। अंत में, थाली में परोसी गई रोटी और सब्जी को परिवार वाले आनंद के साथ खाते हैं, जिससे रसोईघर की उपयोगिता और महत्व का एक खूबसूरत संदेश मिलता है।

यह कविता बच्चों को रसोईघर में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों और उपकरणों के प्रति जिज्ञासा और सम्मान पैदा करने का काम करती है। कविता में छिपा संदेश यह है कि हर वस्तु का अपना महत्व है, चाहे वह कितनी भी साधारण क्यों न हो। साथ ही, यह बच्चों को सिखाती है कि रसोईघर का हर सामान एक टीम की तरह काम करता है, जिससे हमें स्वादिष्ट भोजन मिलता है।

कविता:

आज रसोईघर की खिड़की,
मुन्ना-मुन्नी खोल रहे हैं।
अंदर देखा, चकला-बेलन,
चाकू-छलनी बोल रहे हैं।

मैं चाकू, सब्जी-फल काटूं,
टुकड़ा-टुकड़ा सबको बांटूं।
गाजर-मूली, प्याज-टमाटर,
छीलो-काटो रखो सजा कर।

गोल चांद-सी हूं मैं थाली,
बज सकती हूं बनकर ताली।
मुझमें रोटी-सब्जी डाली,
और सभी ने झटपट खा ली।

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