Posts Tagged "Lotpot Positive News"

22Sep2022

आधुनिकता के साथ साथ नये नये विज्ञान और तकनीक विकसित होते जा रहे है। एक समय ऐसा था जब डबल डेकर बस और डबल डेकर ट्रेन भी एक अजूबा था और आज बात हो रही है आसमान में उड़ने वाले डबल डेकर हवाई जहाज की। जरा सोचिए कि जब आसमान में डबल डेकर बस और डबल डेकर ट्रेन की तरह डबल डेकर प्लेन की सुविधा यात्रियों को मिल जाएगी तो इंसानों का जीवन और भी कितना आसान हो जाएगा और यात्रा करना आज की तुलना में कई गुना तेज और आरामदायक हो सकता है ।

17Sep2022

भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के शुभ जन्मदिवस पर उन्हें मिले साउथ अफ्रीकन चीतों के तोहफ़ो की खूब चर्चा है। नामीबिया से, 16 घन्टों की यात्रा करके भारत के कुनो पाल पुर नैशनल पार्क (केपीएनपी) पधारे इन आठ चीतों को लेकर सबकी बहुत उत्सुकता है। इसमें पाँच मादा और तीन नर चीते है जिनकी उम्र ढाई साल से बारह साल तक है। मजे की बात तो यह है कि इन नामीबियन चीतों को अफ्रीका से भारत लाने के लिए जिस विशेष चार्टर कार्गो विमान का इस्तमाल किया गया उसकी शक्ल भी चीते जैसी थी और उसपर चीते की पेंटिंग भी की गई थी।

दुनिया के किसी भी देश में चीतों को पंहुचाने का काम एयरलाइन्स कम्पनी ने पहली बार किया है जिसके कारण यह परियोजना इस विमान कम्पनी के लिए भी एतिहासिक रहा । एयर क्राफ्ट के अंदर चीतों के पिंजरे को आराम से अंदर रखा गया था और  साथ में पशु चिकित्सक की पूरी टीम भी थी।  दरअसल चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट के तहत भारत को इस वर्ष बीस अफ्रीकन चीते मिलने थे, नामीबिया से आठ, जो भारत को मिल गए और बाकी बारह बाकी है। विश्व में पहली बार ऐसा हुआ जब कोई बड़े मांसाहारी पशु को एक द्वीप से दूसरे द्वीप रिलोकेट किया गया। प्रधानमन्त्री ने हैंडल घुमाया और पिंजरे का दरवाज़ा खुलते ही चीते कुनो नैशनल पार्क में चले गए। फ़िलहाल ये इस पार्क में कवारेंटाइन के हिसाब से रहेंगे , उसके बाद जंगल में छोड़ दिया जायेगा। अब जानिए कि भारत को अफ्रीका से चीते मंगवाने की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल एक ज़माने में भारत के जंगलों में चीतों की भरमार थी। लेकिन यहाँ के कई राजाओं और बाहर से आए आक्रमणकारियों द्वारा शिकार किए जाने के कारण 1947 तक लगभग सारे चीते खत्म हो गए और 1952 में चीतों को लुप्त घोषित किया गया।

जहां भारत के जंगलों में शेर, बाघ, तेंदुए, हाथी, जंगली गाय, जीराफ, भालू, जंगली भैंस, बारहसिंगा, हिरण, चीतल वगैरह जंगली पशुओं की कोई कमी नहीं लेकिन एक भी चीता नहीं बचा। वैसे पिछले साठ सालों से चीतों को दूसरे देश से भारत लाए जाने की कोशिश और अथक प्रयास होता रहा जो आखिर 17 सितंबर 2022 को रंग लाई। दो तीन महीने लगेंगे इन चीतों को, कुनो नदी किनारे बसे जंगल में सहज होकर अपना नया जीवन शुरू करने में, उसके बाद, आज की हमारी पीढ़ी देख पाएंगे कि आखिर चीते होते कैसे है और कुनो क्षेत्र के आसपास का क्षेत्र पर्यटकों के आवाजाही से विकसित होगा।

चीते और तेंदुए में फर्क

चीते और तेंदुआ लगभग एक से दिखते हैं, लेकिन उनमें कुछ बुनियादी फर्क है, जैसे तेंदुए कम से कम 100 किलो वजन के होते है और चीतों की तुलना में भारी, मांसल और मजबूत होते है। उनके सर बड़े होते है, तेंदुआ छुपकर घात लगाकर शिकार करते हैं, उनके पीले रंग के खाल में अलग अलग आकार के धब्बे होते है। वे ज्यादा ऊँचे नहीं होते। चीते ऊँचे, छरहरे और लगभग 72 किलो के आसपास होते है, उनके कंधे लंबे, चेहरा छोटा और दोनों आँखों से ठुड्डी तक काली लकीर खिंची होती है और वो 120 किलोमीटर प्रति घन्टे की रफ्तार से, हवा से ज्यादा वेग से दौड़कर शिकार करते है। उनके हल्के पीले, या क्रीम रंग के खाल में गोल और अंडाकार धब्बे होते है।

★सुलेना मजुमदार अरोरा★

8Sep2022

आईएसी विक्रांत के आ जाने से नौसेना को बाहुबली की शक्ति मिल गई। अब समुन्द्र की तरफ से आने वाली हर चुनौती का मुँह तोड़ जवाब देने के लिए भारत पूरी तरह तैयार है। यह भारतीय नौसेना का पहला स्वदेशी विमान वाहक पोत है जिसे हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के नाम किया। इस विमान वाहक पोत का निर्माण कोचीन शिपयार्ड में की गई और इसे बनाने में लगभग बीस करोड़ रुपये लगे। दरअसल भारतीय नेवी को अपना प्रथम विमान वाहक पोत (एयरक्राफ्ट कैरियर) आईएनएस विक्रांत 1961 में ब्रिटेन से मिला था।

8Aug2022

हरियाणा आज बेहतरीन रेसलर्स का गढ़ बन गया है। यहीं की रहने वाली विनेश फोगट ने वो कमाल कर दिखाया जो अब तक कोई भारतीय महिला रेसलर नहीं कर पाई । वे कॉमन वेल्थ और एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी। खबरों के अनुसार, फिल्म ‘दंगल’ जिन दो खिलाडियों गीता और बबीता फोगट पर फिल्म बनाई गई थी, उन्हीं की चचेरी बहन है विनेश फोगट।

5Jul2022

पर्यावरण की रक्षा करने का अर्थ है, अपने जीवन और आने वाली पीढ़ियों के जीवन की रक्षा करना। लेकिन आज हम ऐसे वातावरण में जी रहे हैं जहां हवा और पानी दूषित हो रहा है, साथ ही पूरे विश्व में गर्मी का स्तर बढ़ता जा रहा है जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से विश्व तूफान, बाढ़, सूखा, भयंकर बारिश और लू का खतरा बढ़ जाता है। क्यों पर्यावरण खतरे में है?

इसका जवाब है हमारी नदियों, नालों, झीलों के वॉटर कैचमेंट क्षेत्रों में वानस्पतिक सुरक्षा की कमी, विश्व के बढ़ते जनसँख्या की जरुरतों को पूरा करने के लिए, जंगलों, पहाड़ों, तटों की अन्धाधुन्ध कटाई, जानवरों द्वारा चराई और नए पेड़ों का ना लगाना है। आजादी के बाद से हमारे देश ने 410 मिलियन  हेक्टर जंगल भूमि खो दिए हैं।

भारत का वन्य क्षेत्र मुश्किल से 23 प्रतिशत है जो विश्व औसत से दस प्रतिशत कम है। गहरी जड़ों वाले खाद्य फलों या औषधीय गुणों वाले विशाल पेड़ों के जड़ों द्वारा भंडारित  मिट्टी में प्रति वर्ग किलोमीटर 5,0000 से 2,00,000 क्यूसेक पानी की भण्डारण क्षमता होती है। ध्वनि प्रदूषण को भी यह पेड़ पौधे कम करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। पचास मीटर चौड़ा पार्क भी यातायात के शोर को 20 से तीस डेसीबल तक कम कर सकता है तो सोचिए विशाल वन क्षेत्र बड़े पैमाने पर ध्वनि प्रदूषण को कितना कम कर सकती है।

एक हेक्टर के चौड़े पत्तों वाला जंगल कम से कम 30 से 50 टन वातावरण को दूषित करने वाली धूल और गन्दगी को इकट्ठा करके उसे उड़ने से रोक सकता है। जब नदी नाले या समुद्र उफान पर होते है तो अक्सर अपने बहाव के साथ किनारे के जमीन और रेत के टीले भी बहा  ले जाते हैं। विशाल पेड़ पौधे, झाड़ियां, यहां तक कि घाँस भी इस कटाव को रोकता है और साथ ही हमारे पालतू पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध कराता है। इस तरह हम देखते हैं कि पेड़ पौधे हमारे जल संरक्षण, हवा के शुद्धिकरण, पशु पालन, बिजली और औषधी उत्पादन, भूमि रक्षण, दुर्लभ वन प्राणी जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है।

गांधी जी ने कहा था, “प्रकृति के पास सभी की जरूरतों के लिए पर्याप्त है लेकिन हर किसी के लालच के लिए नहीं”। हमारे देश में 1894 से वन नीति है, 1952 और फिर 1988 में इसे संशोधित भी किया गया। नीति का उद्देश्य वनों का संरक्षण, बंजर भूमि का विकास, पुनर्वनिकरण, वृक्षों का पुनर्रोपण, वन बंदोबस्त, प्राकृतिक विरासत का संरक्षण, नदियों, झीलों, कैच मेंट एरिया की जाँच वगैरह है। हम सबको भी चाहिए कि देश के अच्छे नागरिक होने के नाते वनों के संरक्षण, वृक्षारोपण और प्रकृति के विकास में अपना योगदान दें।

सुलेना मजुमदार अरोरा

21Jun2022

पाँच साल की उम्र में ज्यादातर बच्चें खेलने में लगे रहते हैं या ए बी सी सीख रहे होते हैं लेकिन कभी कभी कुछ बच्चे इसी उम्र में वो काम कर जाते हैं जो बड़ी उम्र के लोगों को करते देखा गया है। माउथ डोर सेट की रहने वाली पाँच वर्षीय नन्ही ब्रिटिश बच्ची बेला जे डार्क ने इस छोटी सी उम्र में ना सिर्फ एक किताब लिखी, बल्कि कहानी के अनुसार उसमें खुद चित्र भी बनाए और आज वो किताब धड़ल्ले से बिक रही है। ऐसे में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में बेला का नाम दर्ज होना स्वाभाविक है। लेकिन ये सब हुआ कैसे? दरअसल शुरू से ही बेला को लिखने और चित्रकारी का शौक था।

8Jun2022

एक जमाना था जब हम अपने घरों के आसपास बहुत सारे चिड़िया देखा करते थे, लेकिन जैसे जैसे बिल्डिंगे, पक्की सड़कें, फैक्ट्री, इंडस्ट्री बनाने के लिए जंगल, बाग बगीचे काटे जाने लगे, गौरैया जैसे कितनी छोटी पंछियां हमसे दूर होने  लगी। जिस तरह से पेड़ पौधे हमारे पर्यावरण के लिए जरूरी है वैसे ही हमारे ये प्राकृतिक निवासी भी पर्यावरण के संतुलन के लिए जरूरी है। दिल्ली के रहने वाले राकेश खत्री को यही बात, बीस वर्ष पहले समझ में आ गई थी जब वे दिल्ली में रहने  आए थे।

24May2022

आज दुनिया में नित नए आविष्कार होते जा रहे हैं जिससे इंसानों को नई नई सुविधाएं मिलती जा रही है। हाल ही में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शैवाल (Algae) का इस्तमाल करते हुए एक ऐसी बैट्री का निर्माण किया जो स्व चालित यानी अपने आप चलती हो और जब इस बैट्री को एक कम्पुटर प्रोसेसर से जोड़ा गया तो वो लगातार, दिन रात छह महीने तक चलता रहा।

24May2022

भारत का नाम रौशन करने वाले बच्चों में सोलह साल का किशोर आर प्रज्ञानंद (रमेश बाबू प्रज्ञानंद) का इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। इस किशोर ने पिछले तीन महीनों में दूसरी बार वर्ल्ड के नंबर वन चेस मास्टर मैगनस कार्लसन को हरा दिया। इससे पहले इस चेस ग्रांडमास्टर प्रज्ञानंद ने 21 फ़रवरी को ऑनलाइन रैपिड शतरंज टूर्नामेंट एयरथिंग्स मास्टर्स के आठवें दौर में कार्लसन को 39 चाल में मात दे दी थी।

23May2022

दिन पहले यूके के सफ़ोल्क स्थित बाउडसा समुन्दर तट पर, सीपियाँ ढूँढते हुए एक छह साल के बच्चे  सैम्मी शेल्टन को तीन मिलियन वर्ष पहले का एक मेगालोडन शार्क का विशालकाय दांत मिला और यह खबर दुनिया में आग की तरह फैल गई।