Moral Story: अंधा पहरेदार
रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था।
रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था।
विजय और अजय दोनों भाई कक्षा सात में पढ़ते थे। दोनों साथ साथ घर से स्कूल और स्कूल से घर आते जाते थे। विजय पढ़ने में बहुत तेज था हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आता था। विजय कमजोर छात्रों की सहायता करता था।
शोभन अपने पिता के पास गया जो काम करने के लिए निकल ही रहे थे। उसने कहा, ‘पापा, पापा’ आपके बाद जीतू चाचा मेरे सबसे प्रिय मित्र हैं।’ ‘वह ठीक है, लेकिन उन्होंने क्या किया है?’
राजा कृष्णा राय ने एक बहुत सुंदर महल बनवाया। उन्होंने अपने महल की एक दीवार पर सुंदर सुंदर चित्रकारी लगाने का फैसला किया। चित्रकारी खत्म होने के बाद चित्रकार राजा के पास गया।
एक लड़का था जिसका नाम सुरेश था, वह बहुत गरीब था। लेकिन गरीब होने के बावजूद वह बहुत उम्दा कलाकार था। उसने कई पेंटिंग्स बनाई जिसके लिए लोगों ने उसे बहुत सराहा। लेकिन एक समस्या थी।
एक दिन एक राजा शहर की तरफ जा रहा था। रास्ते में वह एक किसान से मिला और अपनी प्रजा के लिए चिंतित रहने वाले राजा ने उस किसान से पूछा कि वह कितना कमा लेता है? उस किसान ने उत्तर दिया, ‘महाराज, मैं एक दिन में चार सिक्के कमा लेता हूं।’
एक दिन आसमान में कुछ पक्षी भी उड़ रहे थे। उन्होंने अपने बीच लाल पतंग को उड़ते देखा तो दोस्ती करने उसके पास आ गए। ‘हटो-हटो, दूर हटो। मेरे नजदीक नहीं आना। वरना मैं तुम्हें गिरा दूंगी।’