बच्चों की प्रेरक कहानी: समझदारी का पुल
एक बेहद समझदार व्यक्ति था, जिसे घूमने का बहुत शौक था। एक दिन वह घूमते घूमते एक ऐसे राज्य में चला गया जहां पर राजा को ढूंढने की तैयारी चल रही थी और इसका जिम्मा एक हाथी को सौंपा गया था।
एक बेहद समझदार व्यक्ति था, जिसे घूमने का बहुत शौक था। एक दिन वह घूमते घूमते एक ऐसे राज्य में चला गया जहां पर राजा को ढूंढने की तैयारी चल रही थी और इसका जिम्मा एक हाथी को सौंपा गया था।
एक साधु थे, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करते थे, “जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे”। बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।
अप्रैल की पहली तारीख थी। सुरेश सुबह-सुबह सो कर उठने पर आज जल्दी ही नहा-धोकर चाय-नाश्ता कर तैयार हो गया था। वह सोच रहा था कि अप्रैल की पहली तारीख को किसी का बेवकूफ न बनाया जाये, तो अप्रैल फूल वाले दिन का महत्व ही क्या रहा?
चुन्नू एक छोटा सा बालक था। वह बहुत ही प्यारा भी था। चुन्नू अपने मम्मी पापा का इकलौता बेटा था। घर में उन तीनों के अलावा और कोई न था, सिवाय उनके घर में काम करने वाली बाई कान्ता के।
प्रदीप की मां ने रामू को बाजार से सामान लाने के लिये रूपये और थैला पकड़ा दिया। रामू 15-16 वर्षीय किशोर था और बचपन से ही घर में काम करता था। रामू जब बाजार से खरीदारी करके लौट रहा था।
श्यामपुर के वैद्य जगन्नाथ जी एक माने हुए वैद्य थे। स्वयं की बनाई दवाईयों से वह लोगों की शारीरिक समस्याओं को बिल्कुल दूर कर देते थे और गए से गए रोगियों के रोग दूर करके उन्हें तुरन्त खड़ा कर देते थे।
डॉ. गोयबेल्स हिटलर के प्रसार मंत्री थे। एक दफा उन्होंने एक वृद्ध यहूदी पादरी से कहा "यहूदी, सुना है कि तुम लोग अपने धर्मग्रंथ 'तालमुद' पर आधारित एक विशेष तरह के तर्क का प्रयोग करते हो।