Jungle Story: साहसी की सदा विजय
एक बकरी थी और एक उसका मेमना। दोनों जंगल में चर रहे थे। चरते-चरते बकरी को प्यास लगी। मेमने को भी प्यास लगी। बकरी बोली- “चलो, पानी पी आएँ।” मेमने ने भी जोड़ी, “हाँ माँ! चलो पानी पी आएँ।”
एक बकरी थी और एक उसका मेमना। दोनों जंगल में चर रहे थे। चरते-चरते बकरी को प्यास लगी। मेमने को भी प्यास लगी। बकरी बोली- “चलो, पानी पी आएँ।” मेमने ने भी जोड़ी, “हाँ माँ! चलो पानी पी आएँ।”
टोनी अपनी कक्षा में एक नम्बर के शरारती बच्चों में गिना जाता है। पढ़ने से मन चुराना उस की आदत थी। अपने किसी सहपाठी से वह इतनी चालाकी और सावधानी से शरारत करके फिर अपनी सीट पर ऐसे जा बैठता।
संदीप सक्सेना आठवीं कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में उसके दोस्तों की संख्या काफी कम थी। उसका सबसे अच्छा दोस्त जितेन्द्र था। एक दिन जितेन्द्र स्कूल नहीं आया। कक्षा में बैठे संदीप का मन भी पढ़ाई में नहीं लग रहा था।
बहुत पुरानी बात है। हमारे गांव में एक सज्जन रहते थे, नाम था उनका मुंशी सजधज लाल, जैसा नाम था, वैसा ही काम भी था, मुंशी जी घर से बाहर जब भी निकलते, तब रेशमी कुर्ता, साफ सुथरी धोती पहनते।
एक कौवा एक वन में रहा करता था, उसे कोई कष्ट नहीं था और वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट था। आजादी से जब चाहे, जहां चाहे, उड़ता फिरता था। एक दिन उड़ते हुए वह एक सरोवर के किनारे पहुँचा।
उन दिनों बनारस नगरी में शीतल नाम के एक ज्ञानी जी रहते थे, वे शांत प्रकृति एवं नेक दिल इंसान थे। उनकी धैर्य शीलता और दयालुता के कारण कई लोग उन्हें त्याग एवं तपस्या का साक्षात देवता कहकर पुकारते थे।
एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, “अरे छोटू, कहाँ जा रहे हो तुम?” “मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ!”