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बरसो रे मेघा
हिंदी प्रेरक कहानी: बरसो रे मेघा:- कई दिनों से बारिश नहीं हो रही थी सभी परेशान थे जिनमें नंदिनी नाम की वह छोटी सी लड़की भी शामिल थी, नंदिनी ने जब घुमडते बादलों को देखा तो वह उनसे बोली- “ऐ मेघा तुम हमारे यहां क्यों नहीं बरसते देखते नहीं कितने परेशान हैं हम!”
नंदिनी की बात सुनकर एक बादल रुक गया और बोला- “हम तो वे बादल हैं, जो बरस कर वापस अपने घर आ रहे हैं। हमारे भीतर पानी नहीं है”।
बादल की बात सुनकर नंदिनी बोली- “तो जाते समय तुम यहां क्यों नहीं रुके? बरसात के बिना हम सब परेशान हो रहे हैं”।
“हमें कहीं और बरसने का आदेश मिला था, बादल ने कहा तो नंदिनी ने पूछा- “हमारे यहां कब बरसोगे तुम लोग?”
बादल ने कुछ सोचा और बोला- “पानी लेकर बरसने की मेरी बारी अब एक महीने बाद आयेगी। तब मैं तुम्हारे लिये स्पेशल आर्डर लेकर आऊंगा। तुम्हारे यहां जरूर बरसूंगा। तुम अपने घर का पता बताओ”।
नंदिनी ने कहा- “अरे, हमारा घर तो कोई भी दूर से पहचान लेगा। देखो, घर के सामने सात पेड़ हैं। घर के पीछे भी सात पेड़ हैं। घर की दाईं तरफ तीन और बाईं तरफ चार पेड़ हैं, कुल हुए इक्कीस। ऐसा नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलेगा”।
“ठीक है, एक महीने के लिये बाय बाय..”। बादल ने कहा और चला गया।
ठीक एक महीने बाद वह दिन आ गया। नंदिनी जानती थी कि जब भी बरसात आती है, उसके घर की छतें...
ठीक एक महीने बाद वह दिन आ गया। नंदिनी जानती थी कि जब भी बरसात आती है, उसके घर की छतें चूती हैं। वह छाता खोलकर बैठ गई। सारा दिन बैठी रही। रात में भी बादल के बरसने का इंतज़ार किया। कई बादल घर के ऊपर से गुज़रे, पर बरसा कोई नहीं। नंदिनी सोच रही थी हो सकता है, वह बादल अपनी ड्यूटी पर न आया हो या उसको कहीं और भेज दिया हो। बादल देखने के लिये वह घर से बाहर आई। पहले तो वह खुद बादलों को आवाज लगाती थी, अब एक बादल खुद ही उसे देखकर रुक गया। बादल बोला- “ऐ नंदिनी, तुम्हारा घर कहां है?”
नंदिनी खुश हो गई- “अरे, यह तो वही दोस्त बादल है। अब आया है बरसने। अरे भाई, जहां मैं खड़ी हूँ, वहीं तो है हमारा घर। जल्दी बरसो न हमारे घर पर”।
बादल हैरानी से बोला- “क्या कह रही हो? यह तुम्हारा घर है? एक महीने पहले तुमने मुझे घर का जो पता बताया था, यह तो वह नहीं है। तुमने बताया था कि घर के आगे सात, पीछे सात, एक तरफ तीन और दूसरी तरफ चार पेड़ हैं, कुल इक्कीस पेड़। मुझे तो यहां एक भी दिखाई नहीं दे रहा। मैंने तुम्हें बताया था कि जब हम पानी से भरे होते हैं, तब हमें बरसने की जल्दी होती है। मैंने तुम्हारा घर खूब ढूंढा। तुम्हारा घर नहीं मिला तो मैं कहीं और बरस आया हूं। अब तो मैं खाली हूं”।
नंदिनी मायूस हो गई। उदास स्वर में बोली- “मैंने तो रोका था, पर बापू नहीं माने बोले- पैसों की जरूरत है। उन्होंने सारे पेड़ एक व्यापारी को बेच दिये। वह सबको काट कर ले गया”।
बादल बोला- “इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। हम बादल तो ऊपर उड़ते हुए पेड़ों से ही जगह को पहचानते हैं। पेड़ नहीं तो बरसात नहीं। अब कुछ नहीं हो सकता है। अब तो इस वर्ष का हमारा काम पूरा हो गया। अगले वर्ष तुम या तुम्हारे बापू ज्यादा नहीं तो, उतने ही पौधे उसी जगह लगा दोगे तो मैं अगले वर्ष बरसने के लिये जरूर आऊंगा”।
जाते बादल को नंदिनी ने टा-टा किया, वह एक बार उदास हुई, पर सदा के लिये नहीं। अगले ही दिन सबने देखा कि नंदिनी पेड़ लगा रही थी और सबको पेड़ लगाने के लिए उत्साहित कर रही थी क्योंकि वह जानती थी कि अगर पेड़ होंगे तो ही बारिश होगी।