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दिल का भ्रम
बच्चों की मजेदार हिंदी कहानी: दिल का भ्रम:- भईया लाल एक डरपोक किस्म के व्यक्ति थे। भूत-प्रेत, जादू-टोना, बस इन्ही को लेकर वह अक्सर परेशान रहते थे। क्योंकि बचपन से ही वह एक ऐसे माहौल में रहे थे जहां पर हमेशा ऐसी अन्धविश्वासी बातों का जिक्र चल जाया करता था और वह बुरी तरह डर जाया करते थे। बचपन का वह डर अभी तक उनके भीतर समाया हुआ था और उनका दिल इस तरह से कमजोर हो चुका था कि जहां कहीं भी डरावनी बातों का जिक्र चलता था तो भाईया लाल तुरंत वहां से खिसक लेते थे। वह तो समझते थे कि भूत-प्रेत शायद सच में हुआ करते हैं। भईया लाल की पत्नी सुन्दरी भी उनके इस डर की वजह से काफी परेशान थी। भईया लाल कहीं सुनसान जगहों पर जाने से तो डरते थे ही बल्कि कभी घर पर अकेले भी नहीं रूकते थे। एक दिन जब सुन्दरी ने अपने मामा रामप्रसाद जी के घर जाकर उनको सारा हाल बताया तो यह जानकर उनको कुछ अजीब सा लगा किन्तु उन्होंने उसे यह आश्वासन भी दिया कि भईया लाल का यह डर जल्द ही उसके दिल से समाप्त हो जाएगा। रामप्रसाद जी की यह बात सुनकर सुन्दरी को कुछ राहत मिली और वह घर वापिस आ गई। अभी दो दिन ही बीते थे कि रामप्रसाद जी भी वहां कुछ दिन के लिए रहने आ गए। जब उन्होंने स्वयं भईया लाल की ऐसी दशा देखी तो उन्हें पूरा यकीन हो गया कि यह और कुछ नही, सिर्फ भ्रम के शिकार हैं। (Fun Stories | Stories)
एक रात की बात है कि रामप्रसाद जी के जूते कहीं पर लापता हो गए। तब पूरे घर में ढूंढाई मच गई लेकिन जूतों का कही भी पता नहीं चला। तब एकाएक उन्हें...
एक रात की बात है कि रामप्रसाद जी के जूते कहीं पर लापता हो गए। तब पूरे घर में ढूंढाई मच गई लेकिन जूतों का कही भी पता नहीं चला। तब एकाएक उन्हें याद आया कि वह जूते तो उन्होंने बगल वाली कोठरी में रख दिए थे जो काफी दिनों से खाली पड़ी थी। तब रामप्रसाद जी बोले, "अरे बेटा भईया लाल, तुम जरा मेरे जूते उस कोठरी से उठा लाओ"। ऐसा सुनकर तो मानो, जैसे भईया लाल को चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लग गया हो, वह तुरन्त बोले, "मैं क्या पागल हूं जो इतनी रात गए उस भूतिया कोठरी में जाऊँगा? ना बाबा ना, अगर मुझे वहाँ किसी भूत ने पकड़ लिया तो मेरा तो दम ही निकल जाएगा"। तब अचानक सुन्दरी बोल पड़ी, "अरे बाबा, वहां पर बत्ती तो जल ही रही है, फिर तुम क्यों इतना डर रहे हो? तुरन्त जाओ और तुरन्त ही मामाजी के जूते उठा कर ले आओ"। लेकिन भईया लाल तो अभी भी वहां जाने को तैयार नहीं हुए और बोले, "अरे मामाजी, आपने कौन सा अभी कहीं जाना है, कल जब सुबह हो जाएगी तो आपके जूते भी आ ही जाएंगे"। (Fun Stories | Stories)
लेकिन रामप्रसाद जी भी आज जिद पे अड़े हुए थे। "नही भई मेरे जूते अगर चोरी हो गए तो?" वे बोले। तभी भईया लाल और सुन्दरी का बेटा कपिल वहां पर खेलता-खेलता आ गया जिसकी उम्र लगभग पांच छ: साल ही होगी। उसे देख रामप्रसाद जी बोले, "अरे कपिल बेटा जरा बगल वाली कोटरी में मेरे जूते रखे हैं, उसे उठा लाओ, मैं तुम्हें टॉफी खाने के पैसे दूंगा"। "टाफी के लालच में कपिल भागा-भागा जूते लाने कोठरी की तरफ लपका। भईया लाल का मुंह तो जैसे फटा का फटा ही रह गया हो। कपिल को कोठरी की तरफ जाते देख वह तपाक से बोले, "अरे मामाजी, आपने कपिल को वहां पर क्यों भेज दिया? वह बच्चा है, कोई भूत-वूत देख लिया तो वह बुरी तरह डर जाएगा"। भईया लाल की यह बात अभी पूरी हुई ही थी कि अचानक कपिल वहां आ-गया। उसके हाथ में रामप्रसाद जी के जूते थे। कपिल के चेहरे पर खुशी की एक मुस्कान दौड़ रही थी, क्योंकि उसको अभी टॉफी खाने के लिए पैसे मिलने वाले थे। "लाओ पैसे टॉफी खाने के लिए"। कपिल बड़ी मासूमियत से बोला। रामप्रसाद जी ने अपने कुर्ते की जेब में से पैसे निकाल कर कपिल को दिए, पैसे पाकर कपिल खुशी-खुशी बाहर की ओर चला गया।
तब रामप्रसाद जी मन्द-मन्द मुस्कुराने लगे और फिर बोले, "क्यों भईया लाल, अभी भी कुछ तुम्हारे समझ में आया या नहीं?" भईया लाल बजाय कोई जवाब देने के आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे। तब रामप्रसाद ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, "जब एक छोटा सा बच्चा उस कोठरी में से होकर आ सकता है, जिसे तुम भूतिया कोठरी बता रहे थे और जहां पर जाने से तुम डर रहे थे, तो भला तुम्हें वहां पर जाने में क्या हो जाता? दरअसल तुम्हारे दिल के भ्रम ने तुम्हें बुरी तरह से डरा रखा है जिसके कारण तुम सदैव डरते रहते हो। कपिल एक छोटा सा बालक है, जिसे खाने-पीने और खेलने-कूदने के सिवाय कुछ और सूझ नहीं सकता, जिसे यह पता नहीं कि भूत क्या होता है और डर किसे कहते हैं। मेरे एक बार बोलने पर वह भागा-भागा गया और मेरे जूते उठा लाया। उसे न तो किसी भूत ने पकड़ा और न कोई उसे डर लगा, क्योंकि उसके दिमाग में उस समय कोई भूत-प्रेत की बात ही नहीं थी। वह तो सिर्फ यही सोच रहा होगा कि वापिस जाकर उसे टॉफी खाने के पैसे मिलेंगे"। (Fun Stories | Stories)
रामप्रसाद जी की बातों को भईया लाल बड़े ध्यान से सुन रहे थे। रामप्रसाद जी फिर बोले, "यह सब हमारे दिमाग की-उपज होती है। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही अपने आप को बना लेते हैं। तुम हमेशा भूत-प्रेतों के बारे में सोचते हो इसलिए उनसे बेकार में ही डरते हो जबकि भूत-प्रेत होते ही नहीं। तुम यदि अपना ध्यान कहीं और या फिर किसी और अच्छे काम में लगाओ तो यह डर एकाएक तुम्हारे दिल से गायब हो जाएगा, और तुम फिर कभी ऐसी डरावनी बातों से डरोगे भी नहीं"। रामप्रसाद जी बोले।
"आप बिल्कुल ठीक कह रहे हो मामाजी, यह सब मेरे दिल का एक भ्रम था, जिसे लेकर मैं बेकार में ही डरता रहता था। अब मेरे दिमाग में सारी बात आ चुकी है, इसलिए मैं आप से वायदा करता हूं कि आगे से मैं बिल्कुल नही डरूँगा"। ऐसा सुनकर रामप्रसाद जी मन ही मन काफी प्रसन्न हुए और फिर अविश्वसनीय ढंग से बोले, "अब हमें कैसे मालूम पड़ेगा कि तुम आगे से बिल्कुल भी नहीं डरोगे?" तब भईया लाल खड़े होकर, एक दम से बोले, "आप कहो तो मामाजी, मैं आपके जूते वापस उस कोठरी में ही रख आऊँ?" भईया लाल की यह बात सुनकर सुन्दरी और रामप्रसाद जी जोर-जोर से हंसने लगे। (Fun Stories | Stories)
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