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हिंदी बाल कहानी : सुधार की राह- अंकित बहुत ही शरारती और झगड़ालू लड़का था। पढ़ाई-लिखाई में उसका जरा भी मन नहीं लगता था। जब देखो, तब वह सबके साथ लड़ता-झगड़ता रहता। आए दिन उसकी शैतानियों और झगड़ों की शिकायतें सुनकर उसके मम्मी-पापा तंग आ चुके थे। कई बार उन्होंने उसे समझाया कि वह यह सब शरारतें बंद कर दे और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, लेकिन उस पर किसी भी बात का कोई असर नहीं होता था।
इसी बीच अंकित के पापा का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में हो गया। नया शहर होने के कारण वे अकेले ही गए, किसी और को साथ नहीं ले गए। जाते वक्त उन्होंने अंकित को समझा-बुझाकर कहा, "घर में मम्मी अकेली हैं, उनका ख्याल रखना, उन्हें ज्यादा तंग मत करना और इधर-उधर मत घूमना।"
उस समय तो अंकित ने पापा की बातों पर हां में हां मिलाई, लेकिन जैसे ही पापा गए, उसका डर भी चला गया। अब वह पहले से भी अधिक आवारा और लापरवाह हो गया। मम्मी से डर तो वह पहले ही कम रखता था, लेकिन अब तो उसने उन्हें बिल्कुल ही नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया। इसके अलावा, उसकी दोस्ती भी शहर के कुछ ऐसे लड़कों से हो गई जो धनी और आवारा किस्म के थे। उन्हीं के साथ वह दिन भर इधर-उधर घूमता और मस्ती मारता।
एक दिन, अंकित की मम्मी ने देखा कि वह पहले से भी अधिक बिगड़ गया है, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने अंकित को समझाते हुए कहा, "बेटा, तेरे पापा तुझसे कितनी उम्मीदें रखते हैं कि तू पढ़-लिखकर एक काबिल इंसान बनेगा, और तू है कि उनकी उम्मीदों को मिट्टी में मिलाने पर तुला है। दोस्ती सिर्फ सुख के साथी होते हैं, ना कि दुख के।" उन्होंने आगे कहा, "इससे पहले कि तू किसी मुसीबत में पड़े और तेरे पापा की इज्जत खराब हो, यह सब छोड़ दे।"
मम्मी के इतना समझाने के बाद भी अंकित पर कोई असर नहीं पड़ा। तंग आकर मम्मी ने उसे समझाना ही छोड़ दिया और सोचा कि जब उसके पापा घर आएंगे तो शिकायत करेंगे। लेकिन जब भी उसके पापा घर आते, अंकित एकदम सीधा बन जाता और शरारत छोड़ देता, इसलिए पापा को कभी उसकी हरकतों का पता नहीं चला।
लेकिन बुराई का अंत हमेशा बुरा ही होता है। एक दिन अंकित अपने दोस्तों के साथ पान के खोखे पर खड़ा था। उसी समय दो लड़के मोपेड पर आए और उनकी मोपेड अंकित के दोस्त के पैर से हल्की-सी टकरा गई। इस पर अंकित का दोस्त गुस्से में चिल्लाया, "क्या देख नहीं सकता? मेरी चप्पल गंदी कर दी। इसे धुएगा कौन, तेरा बाप?"
बाप का नाम सुनते ही मोपेड वाले लड़के को गुस्सा आ गया। उसने कहा, "हम तो इंसानियत से बात कर रहे थे, लेकिन तुम तो बाप तक पहुंच गए।"
अंकित को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने लड़के को घूंसा मार दिया। इसके बाद अंकित ने पान के खोखे में रखी लोहे की रॉड उठाई और मोपेड वाले लड़के के सिर पर मार दी। रॉड लगते ही लड़का बेहोश होकर गिर पड़ा। यह सब देखकर अंकित के सारे दोस्त वहां से खिसक गए। अंकित घबराया और चुपचाप वहां से निकलने की कोशिश करने लगा, लेकिन तभी पुलिस आ गई और उसे पकड़कर थाने ले गई।
जब मम्मी को पता चला कि अंकित को पुलिस पकड़कर ले गई है, तो उनके होश उड़ गए। उन्होंने अपने पड़ोसी मिस्टर गुप्ता से मदद मांगी और थाने पहुंचीं। वहां उन्होंने देखा कि अंकित को पुलिस ने इस कदर पीटा था कि वह बेहोश पड़ा था। गुप्ता अंकल की मदद से मम्मी ने उसे थाने से छुड़वाया और अस्पताल में भर्ती करवाया।
अगले दिन सुबह जब अंकित को होश आया, तो उसने मम्मी और गुप्ता अंकल को अपने पास चिंतित मुद्रा में खड़ा देखा। अंकित को कल की घटना याद आ गई, और वह शर्म से पानी-पानी हो गया। गुप्ता अंकल ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, जो हुआ उसे भूल जाओ। मुझे मालूम है कि तुम्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा है, लेकिन अब पछतावे का क्या फायदा?"
गुप्ता जी की बातें सुनकर अंकित की आंखें भर आईं। उसने रुंधे गले से कहा, "आप सही कह रहे हैं, अंकल। दोस्तों के चक्कर में अच्छाई-बुराई का फर्क भूल गया था। अब मुझे समझ आ गया है कि दोस्ती सिर्फ सुख में साथ होती है, दुख में नहीं।"
अंकित की बातें सुनकर उसकी मम्मी ने उसे सीने से लगा लिया और कहा, "बेटा, सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते।"
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