Moral Story: उधार की रकम

नेहरूजी एक राजकुमार से कम नहीं थे, उनके पास दौलत की भी कोई कमी नहीं थी। उनके दर पे जो भी याचक आता कुछ न कुछ लेकर ही जाया करता। वैसे वे प्रतिदिन दान भी खूब दिया करते।

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उधार की रकम

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Moral Story उधार की रकम:- नेहरूजी एक राजकुमार से कम नहीं थे, उनके पास दौलत की भी कोई कमी नहीं थी। उनके दर पे जो भी याचक आता कुछ न कुछ लेकर ही जाया करता। वैसे वे प्रतिदिन दान भी खूब दिया करते। बच्चों के शौक के खातिर तो दौलत को पानी की तरह बहाया करते क्योंकि वे हर बच्चे के चेहरे पर एक ताज़गी भरी मधु मुस्कान देखना चाहते थे। नेहरूजी के जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उनकी जेब में एक पैसा भी नहीं था, ऐसी स्थिति में उन्होंने दो आने उधार लेकर अपने निश्चय का पालन किया था। (Moral Stories | Stories)

ये उन दिनों की बात है, जब वे युवा अवस्था में थे तथा प्रधान मंत्री नहीं बने थे। वे अपने कुछ मित्रों के साथ घूमते घामते काकीड़ाड़ा पहुंचे उन्हें वहां विदित हुआ कि खादी प्रदर्शनी लगी हुई है। इस प्रदर्शनी में दर्शकों के लिए टिकट लगाया गया था, टिकट सिर्फ दो आनें रखा गया था। हर द्वार पर टिकट संग्रह कर्ता स्वयं सेवक मौजूद थे, उनकी मुख्य टिकट निरीक्षका एक स्वयं सेविका थीं, वह बड़ी मुस्तैदी से अपना कर्तव्य पालन कर रही थी।

तभी नेहरू जी अपने कुछ साथियों के साथ प्रदर्शनी देखने द्वार के अंदर जाने लगे। मुख्य टिकट निरीक्षिका स्वयं सेविका ने बड़े आदर से...

तभी नेहरू जी अपने कुछ साथियों के साथ प्रदर्शनी देखने द्वार के अंदर जाने लगे। मुख्य टिकट निरीक्षिका स्वयं सेविका ने बड़े आदर से उनसे टिकट मांगा। जिनके पास टिकट नहीं था। उन्होंने तुरंत अपनी लखनऊ जेकिट की जेब टटोली और बुदबुदाए आप लोग प्रदर्शनी देख आइए, इस वक्‍त मेरी जेब में पैसे नहीं हैं, मैं प्रदर्शनी का टिकट खरीद कर ही देखूंगा। समीप ही एक वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता खड़े थे। उन्होनें स्वयं सेविका से पूछा- “तुम जानती हो ये कौन हैं?" (Moral Stories | Stories)

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उसने उत्तर दिया- “हां, ये पंडित जवाहर लाल नेहरू हैं, पर मुझे कहा गया है कि किसी को भी बिना टिकट अन्दर प्रवेश न करने दूं, मैं तो नियम का पालन कर रही हूं"।

यह सुनकर नेहरू जी उस स्वयं सेविका के पास गये और स्नेह से उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले- “वाह, बहिनजी। आपका भी कोई जवाब नहीं। यदि इस देश में आप जैसी लड़कियों की तादाद बढ़ जाए तो हम निश्चित अंग्रेजों की गुलामी से निजात भी पा सकते हैं। फिर उन्होंने उसे बधाई देते हुए कहा- "हां तुम इसी तरह नियम का पालन करती रहो.."। (Moral Stories | Stories)

इसके बाद नेहरूजी अपने समीप खड़े उस वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता से बोले- "यह लड़की तो ठीक कह रही है, हां, यदि आपकी जेब में दो आने हों तो मुझे उधार दीजिए, आपकी उधार की राशि कल लौटा दूंगा"।

फिर नेहरूजी ने दो आने उधार लेकर टिकट ख़रीदकर बड़े चाव के साथ प्रदर्शनी देखी। (Moral Stories | Stories)

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