Moral Story ऐसे गुरु ऐसा शिष्य:- एक बार सिकंदर और उसके गुरू अरस्तु कहीं जा रहे थे रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता था। कुछ दूर उफनता हुआ बरसाती नाला था। उसे पार किए बिना आगे बढ़ना संभव नहीं था। सिकंदर ने अरस्तु से कहा- मैं आगे चलकर नाले की गहराई नापता हूं। आप मेरे पीछे चले आएं आसानी होगी। (Moral Stories | Stories)
अरस्तु ने यह बात नहीं मानी और कहा- "मैं तुम्हारा गुरू हूं तुम्हें रास्ता बताने का...
अरस्तु ने यह बात नहीं मानी और कहा- "मैं तुम्हारा गुरू हूं तुम्हें रास्ता बताने का काम है। मैं तुम्हारे बताये रास्ते पर नहीं चलूँगा"।
सिकंदर ने विनम्रता से कहा- "ठीक है आपने मुझे हमेशा ही रास्ता दिखाया है किंतु क्षमा करें आज मैं ही आगे चलूंगा कुछ भी हो आपको आगे नहीं जाने दूंगा"। (Moral Stories | Stories)
अरस्तु अपने शिष्य को बहुत मानते थे। उन्होंने उसकी बात स्वीकार कर ली। सिंकदर ने नाला पार कर लिया बाद में अरस्तु ने भी उसी रास्ते से नाले को पार किया।
उस पार पहुंच कर अरस्तु ने पूछा- "क्या तुम्हारे इस काम से मेरा अपमान नहीं हुआ?"
सिकंदर ने अरस्तु के चरण छूकर कहा- "गुरूदेव मुझे क्षमा करें ऐसा करने में मुझे ख़तरा था। आपको जानबूझ कर खतरे में कैसे डालता? मैं जानता हूं कि जीवित रहते, आप सौ सिकंदर पैदा कर सकते हैं। किंतु सिकंदर एक भी अरस्तु नहीं बना सकता"।
यह सुनकर अरस्तु ने सिकंदर को गले से लगा लिया। (Moral Stories | Stories)
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