Moral Story: कहानी मूर्खा की
तेंदुआ गांव में एक लड़का रहता था। उसका नाम था मूर्खा। वह बिल्कुल मूर्ख था। हमेशा मूर्खतापूर्ण काम करता था। इस कारण लोग उसे 'मूर्खा' कहकर पुकारते थे। उसकी मां मूर्ख के व्यवहार और बुद्धि से बहुत दुःखी रहा करती थी।
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तेंदुआ गांव में एक लड़का रहता था। उसका नाम था मूर्खा। वह बिल्कुल मूर्ख था। हमेशा मूर्खतापूर्ण काम करता था। इस कारण लोग उसे 'मूर्खा' कहकर पुकारते थे। उसकी मां मूर्ख के व्यवहार और बुद्धि से बहुत दुःखी रहा करती थी।
किसी गाँव मे एक साधु रहा करता था, वो जब भी नाचता तो बारिश होती थी। अतः गाँव के लोगों को जब भी बारिश की जरूरत होती थी, तो वे लोग साधु के पास जाते और उनसे अनुरोध करते कि वे नांचें।
मुल्ला नसीरूद्दीन ने एक आदमी से कुछ उधार लिया था। मुल्ला नसीरूद्दीन समय पर उधार चुका नहीं पाया और उस आदमी ने इसकी शिकायत बादशाह से कर दी। बादशाह ने मुल्ला को दरबार में बुलाया।
एक राजा ने राज्य में क्रूरता से बहुत दौलत इकट्ठा करके आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर तहखाना बनवाकर उसमें छुपा दिया। खजाने की सिर्फ दो चाबियां थीं। एक चाबी राजा के पास और एक खास मंत्री के पास।
एक जंगल में एक हाथी और एक बकरी रहते थे। दोनों बहुत पक्के दोस्त थे। दोनों साथ में मिलकर हर दिन खाने की तलाश करते और साथ में ही खाते थे। एक दिन दोनों खाने की तलाश में अपने जंगल से बहुत दूर निकल गए।
रोमा गिलहरी जाते-जाते अपने नटखट बेटे चुन्नू से बोली, “मैं भोजन की तलाश में बाहर जा रही हूं। तुम घर में ही रहना, बाहर मत निकलना झाड़ी के उस पार इंसानों की बस्ती है। वे हमारे लिए खतरनाक हैं"।
एक थे पंडित जी नाम था अकलूराम जब तक उनके पिताजी थे, उन्हें रोजी-रोटी सम्बन्धि जरा भी चिंता नहीं हुई क्योकि पिताजी को जजमानों के यहां से अच्छी खासी-आमदनी हो जाया करती थी। अकलू राम भरपेट खाते और गप्पे हांका करते थे।