बाल कविता : गुड़िया की आंखों में सपने

कविता “गुड़िया की आंखों में सपने” एक मासूम बचपन की भावनाओं और उसके अंतर्मन में बसे छोटे-बड़े सपनों को उजागर करती है। यह कविता नन्ही गुड़िया यानी एक छोटी बच्ची की कल्पनाओं, इच्छाओं और सपनों की उस दुनिया में ले जाती है

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Kid Poem- Dreams in Doll eyes

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कविता का परिचय

कविता “गुड़िया की आंखों में सपने” एक मासूम बचपन की भावनाओं और उसके अंतर्मन में बसे छोटे-बड़े सपनों को उजागर करती है। यह कविता नन्ही गुड़िया यानी एक छोटी बच्ची की कल्पनाओं, इच्छाओं और सपनों की उस दुनिया में ले जाती है, जो सरल होते हुए भी बेहद गहन होती है। बच्ची की आंखों में नए और पुराने, दोनों तरह के सपने पल रहे हैं। कुछ सपने किताबों में छुपे हुए हैं, तो कुछ उसके सिरहाने रखे हुए हैं, जैसे हर रात सोने से पहले वो उनके बारे में सोचती हो।

कविता आगे बताती है कि सपने केवल स्थिर नहीं होते — वे दौड़ते हैं, खिलखिलाते हैं, शोर मचाते हैं। कुछ सपने ऐसे हैं जिनका चेहरा गुड़िया भूल गई है, लेकिन कुछ आज भी उसे याद हैं और उसके अपने हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि समय के साथ बचपन के कुछ सपने धुंधले हो जाते हैं और कुछ हमेशा याद रह जाते हैं।

कविता यह भी बताती है कि हर सपना समान नहीं होता। कुछ सपने अब भी मासूम बच्चे जैसे हैं, जबकि कुछ बड़े होकर सयाने हो गए हैं। यह बचपन से जवानी तक के सपनों के बदलाव को बहुत ही सुंदर तरीके से बयान करता है।

यह कविता न केवल बचपन की कोमल भावनाओं को दर्शाती है, बल्कि हमें यह एहसास भी कराती है कि सपने ही जीवन की दिशा और ऊर्जा होते हैं। यह एक सरल, लेकिन दिल को छू जाने वाली रचना है, जो हमें भी अपने बचपन के उन मासूम सपनों की याद दिलाती है।

गुड़िया की आंखों में सपने

नन्ही गुड़िया की आंखों में
सपने नए पुराने हैं,
कुछ रखे किताबों में
कुछ रखे सिरहाने हैं।

शोर मचाते देखो सपने,
दौड़ लगाते देखो सपने,
कुछ के चेहरे भूल गई हूं
पर कुछ तो पहचाने हैं।

नन्ही गुड़िया की आंखों में
सपने नए पुराने हैं।

सपने भीतर झांक रहे हैं,
मूल्य अपना आंक रहे हैं,
कुछ सपने हैं बिल्कुल बच्चे,
पर कुछ बड़े सयाने हैं।

नन्ही गुड़िया की आंखों में
सपने नए पुराने हैं।

थोड़ा सा तो हो ना बचपन।

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