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घड़ी की टिक-टिक में छिपा जीवन का बड़ा पाठ
समय हमारे जीवन का सबसे अनमोल संसाधन है। हम सब दिन-रात उसकी गति के अनुसार चलते हैं, लेकिन क्या कभी हमने उस घड़ी से संवाद किया है, जो हर पल टिक-टिक कर के हमें कुछ न कुछ सिखा रही होती है? यह कविता 'घड़ी हमारी बोलो ना' बच्चों की मासूम जिज्ञासाओं के माध्यम से समय की अहमियत को बेहद सरल और भावनात्मक तरीके से उजागर करती है।
बच्चा पूछता है — क्या घड़ी भी थकती है? क्या उसे नींद आती है? क्या वह कभी रुकती है? ये सवाल न केवल मासूमियत भरे हैं, बल्कि एक गहरी सीख भी देते हैं — कि घड़ी की तरह हमें भी लगातार आगे बढ़ते रहना चाहिए।
कविता के अंतिम हिस्से में जब बच्चा घड़ी से पूछता है कि क्या वह अम्मा को याद करती है, तो एक भावनात्मक जुड़ाव बनता है। यह घड़ी केवल समय बताने वाला यंत्र नहीं रह जाती, बल्कि जीवन की संगिनी बन जाती है जो हर मुस्कान, हर भावना में साथ चलती है।
यह कविता छोटे बच्चों को समय के मूल्य को समझाने का अनूठा तरीका है, जिसमें शिक्षा भी है और भावना भी।
✨ कविता: घड़ी हमारी बोलो ना
घड़ी हमारी बोलो ना,
क्या नींद तुम्हें भी आती है?
सो जाती जब दुनिया सारी,
क्या तू भी अलसाती है?
बोलो ना...
कब पीती है पानी बोलो,
कब तू खाना खाती है?
एक पल को भी रुक कर क्यूं,
तनिक नहीं सुस्ताती है?
टिक-टिक की भाषा में,
जाने क्या कह जाती है,
बढ़ते रहना जीवन में,
हम सबको सिखलाती है।
सच-सच कहना क्या तुमको,
अम्मा की याद सताती है?
जब-जब मेरी अम्मा जी,
देख तुझे मुस्काती है॥
समय का महत्व सिखाती है यह घड़ी कविता
'घड़ी हमारी बोलो ना' एक भावनात्मक और शिक्षाप्रद कविता है, जो बच्चों को समय की अहमियत (importance of time) को सरल शब्दों में समझाती है। यह कविता सिर्फ घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला संदेश है।
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