हिंदी प्रेरक कहानी: रावण का पुतला
एक महात्मा से किसी ज्ञानवान मनुष्य ने पूछा- हर बरस रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है? जबकि वह तो कब का मर चुका है। महात्मा ने कहा- जिस तरह आम का कोई वृक्ष मीठे फलों की जगह जहरीले फल देना शुरू कर देता है।
एक महात्मा से किसी ज्ञानवान मनुष्य ने पूछा- हर बरस रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है? जबकि वह तो कब का मर चुका है। महात्मा ने कहा- जिस तरह आम का कोई वृक्ष मीठे फलों की जगह जहरीले फल देना शुरू कर देता है।
करीब तीन सौ वर्ष पहले की बात है। गढ़वाल के पूर्वी क्षेत्र खैरागढ़ में राजा भानशाही का शासन था। राजा सदैव प्रजा के हित का ध्यान रखता था, अत: उसकी प्रजा बहुत सुखी और प्रसन्न थी।
करीब 550 वर्ष पहले की बात है, यूरोप में उन दिनों कई छोटे-छोटे राज्य थे। प्रत्येक राज्य एक दुसरे का दुश्मन था। अक्सर उनमें युद्ध होता रहता था। सिलो और मेडोन ऐसे ही राज्य थे।
एक बार चैतन्य महाप्रभु और रघुनाथ पण्डित नौका विहार कर रहे थे। बातचीत के दौरान महाप्रभु ने कहा, मैंने न्याय शास्त्र पर एक ग्रंथ की रचना की है। मेरी इच्छा है कि उसका कुछ अंश आपको सुनाऊँ।
घटना नेपोलियन के राज्यकाल की है। पेरिस की एक जेल में जर्मन के एक सैनिक को बंदी बनाकर रखा हुआ था। सर्दी का मौसम था। कुछ देर पहले बर्फ भी पड़ चुकी थी, उस कारण शीत लहर जोरों पर थी।
एक था राजा, जिसे देश-विदेश के किस्म-किस्म के रंग-बिरंगे पक्षी पालने का बड़ा शौक था। अपने इस शौक के खातिर वह खूब दौलत खर्च किया करता। प्रजा के कई लोग रात-दिन जंगलों मे जाते और जाल बिछाकर कई पक्षियों को कैद कर लेते।
धनिया एक गरीब बच्चा था। न उसके पास रहने को घर था और न पहनने को वस्त्र। दिन भर वह कालोनी के लोगों के छोटे-मोटे काम करता था और जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था उसी से पेट भर लेता था।