हिंदी प्रेरक कहानी: मनुष्य का प्रथम गुण
बंटी! चलो खाना खालो! अन्दर रसोई से मां ने बंटी को आवाज लगाई। नहीं, मैं खाना नहीं खाऊंगा बंटी ने अपने कमरे से ही मुंह फुलाए उत्तर दिया। क्यों! क्यों नहीं खाओगे?
बंटी! चलो खाना खालो! अन्दर रसोई से मां ने बंटी को आवाज लगाई। नहीं, मैं खाना नहीं खाऊंगा बंटी ने अपने कमरे से ही मुंह फुलाए उत्तर दिया। क्यों! क्यों नहीं खाओगे?
दीपावली के चार दिन रह गए थे लोटपोट के सभी बच्चों में उत्साह था। सबको अपने अपने घर से आतिशबाजी खरीदने के लिए पैसे मिल चुके थे। वीनू और टीनू को भी।
बगदाद देश का एक बादशाह साफ सफाई पसन्द करता था। उसको गन्दगी तनिक भी न सुहाती थी। एक दिन उसने अपने मुख्यमंत्री से कहा- "मंत्री जी! मैं आप को बड़ा बुद्धिमान समझता हूं।
एक बार एक सज्जन पुरूष दिल्ली से अम्बाला जा रहे थे। दिसम्बर का महीना था और जनाब थे भी मोटर साईकिल पर सवार। अगर एक मुसीबत हो तो भुगत ली जाये लेकिन यहाँ मुसीबतें थी।
किसी जमाने में एक राजा था, उनका नाम धर्मसेन था। धर्मसेन का जैसा नाम था, वैसा ही उनका काम भी था। वह धार्मिक होने के साथ-साथ न्यायप्रिय भी थे। उनके दरबार में लोग दूर दूर से न्याय के लिए आते थे।
बीरनचक राज्य में बहुत जोरों की बारिश हो रही थी। पांच दिनों से लगातार हो रही बारिश बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। चारों ओर पानी ही पानी भर गया। सातवें दिन बारिश बंद तो हो गई, मगर तब तक वहां बाढ़ आ गई।
दोस्तों यूं तो इस घटना को बीते अनेक साल हो चुके हैं लेकिन हर साल इम्तिहान का मौसम आते ही यह घटना याद आ जाती है और मन लोटपोट हो जाता है। उस स्कूल में जब हमने दाखिल लिया और पहले दिन क्लास में पहुंचे।