हिंदी नैतिक कहानी: मेहनत का फल
रामू पढ़ाई में बहुत ही होशियार था उसके मन में बहुत उम्मीदें थीं, कि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा। पर वह हमेशा उदास रहता था परीक्षा निकट थी रामू की मां ने देखा वह हमेशा चुप उदास बैठा आसमान देखा करता है।
रामू पढ़ाई में बहुत ही होशियार था उसके मन में बहुत उम्मीदें थीं, कि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा। पर वह हमेशा उदास रहता था परीक्षा निकट थी रामू की मां ने देखा वह हमेशा चुप उदास बैठा आसमान देखा करता है।
एक महात्मा से किसी ज्ञानवान मनुष्य ने पूछा- हर बरस रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है? जबकि वह तो कब का मर चुका है। महात्मा ने कहा- जिस तरह आम का कोई वृक्ष मीठे फलों की जगह जहरीले फल देना शुरू कर देता है।
सूर्य नगर में धनंजय नाम का एक बहुरूपिया रहता था अपनी रूप बदलने की कला को प्रदर्शित कर वह लोगों को प्रसन्न करता था। और अपनी जीविका चलाता था इस कला में वह इतना दक्ष था कि कई बार लोग उसे पहचान नहीं पाते थे।
एक बार एक सज्जन पुरूष दिल्ली से अम्बाला जा रहे थे। दिसम्बर का महीना था और जनाब थे भी मोटर साईकिल पर सवार। अगर एक मुसीबत हो तो भुगत ली जाये लेकिन यहाँ मुसीबतें थी।
किसी जमाने में एक राजा था, उनका नाम धर्मसेन था। धर्मसेन का जैसा नाम था, वैसा ही उनका काम भी था। वह धार्मिक होने के साथ-साथ न्यायप्रिय भी थे। उनके दरबार में लोग दूर दूर से न्याय के लिए आते थे।
बीरनचक राज्य में बहुत जोरों की बारिश हो रही थी। पांच दिनों से लगातार हो रही बारिश बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। चारों ओर पानी ही पानी भर गया। सातवें दिन बारिश बंद तो हो गई, मगर तब तक वहां बाढ़ आ गई।
दोस्तों यूं तो इस घटना को बीते अनेक साल हो चुके हैं लेकिन हर साल इम्तिहान का मौसम आते ही यह घटना याद आ जाती है और मन लोटपोट हो जाता है। उस स्कूल में जब हमने दाखिल लिया और पहले दिन क्लास में पहुंचे।