जंगल की कहानी : गजराज को मिली दोस्ती की मिसाल
बहुत समय पहले, एक घना जंगल था जिसे सभी जानवर 'मित्रवन' कहते थे। इस जंगल में हर जानवर खुशी-खुशी रहता था, क्योंकि वहाँ के राजा शेरसिंह ने सभी के बीच सच्ची दोस्ती और सहयोग का नियम बनाया था।
बहुत समय पहले, एक घना जंगल था जिसे सभी जानवर 'मित्रवन' कहते थे। इस जंगल में हर जानवर खुशी-खुशी रहता था, क्योंकि वहाँ के राजा शेरसिंह ने सभी के बीच सच्ची दोस्ती और सहयोग का नियम बनाया था।
कुत्ते का एक छोटा-सा पिल्ला अपने माता-पिता के साथ जंगल के पास रहता था। एक दिन उसके माता-पिता खाना ढूंढने के लिए निकले। शाम होने लगी लेकिन वे वापिस नहीं आए। पिल्ले को डर लगने लगा।
गर्मी का मौसम जंगल में दस्तक दे चुका था। हर जानवर पसीने से तरबतर था। उसी समय जंगल में यह खबर फैली कि सूरज का जल्द ही विवाह होने वाला है। इस खबर ने कुछ जानवरों को खुशी दी
जंगल के किनारे ऊंचे पेड़ पर कौआ अपना घोंसला बना रहा था। बनाते बनाते कौए को यह लगा कि अभी कुछ कमी है। उसने घोंसले के बीच में कुछ सूखी घास रख दी और खाली स्थानो को भी भर दिया।
जंगल में दो प्रकार के जानवर थे। शेर-चीता आदि मासांहारी थे, हिरण, नीलगाय, खरगोश, कछुआ आदि शाकाहारी वन्य प्राणी थे। दोनों वर्गों के प्राणी एक दूसरे से अलग अलग रहते थे।
दीपावली के चार दिन रह गए थे लोटपोट के सभी बच्चों में उत्साह था। सबको अपने अपने घर से आतिशबाजी खरीदने के लिए पैसे मिल चुके थे। वीनू और टीनू को भी।
हाथी दादा की दुकान पर जिराफ काका पहुंचे। यह बाल्टी कितने की है? जिराफ काका ने एक बड़ी बाल्टी को उलट पुलट कर पूछा, दो सौ रूपये की है। हाथी दादा ने कहा, बहुत मजबूत है।