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असली खज़ाना
बच्चों की हिंदी जंगल कहानी: असली खज़ाना:- सुबह का समय था। चारों ओर चटक धूप फैली हुई थी। क्यों न हाथी के ढाबे पर चाय पी जाए। चीकू खरगोश ने सोचा और ढाबे की तरफ चल पड़ा। "नमस्ते एनी भाई" वह मुस्कुराते हुए हाथी से बोला। "नमस्ते चीकू। कैसे हो?" हाथी ने पूछा। "मैं ठीक हूं, एक कप चाय तो देना, दूर जाना है"। चीकू ने इधर-उधर देखा, फिर धीरे से बोला- "अपना खजाना लाने जा रहा हूं"। हाथी सब कुछ समझ गया और हो हो करके हंसने लगा। "अच्छा, ये अपने ताड़ के जैसे लम्बे दांत मत निकाल, देख कर डर लगता है"। चीकू ने चुटकी ली। एनी बहुत ही खुशमिजाज हाथी था इसलिए उसने बुरा नहीं माना। वैसे भी दोनों बचपन के दोस्त थे। वह चीकू के लिए चाय बनाने लगा। (Jungle Stories | Stories)
उस समय ढाबे पर ज्यादा जानवर नही थे। खजाने की बात सुनते ही वहां चाय पी रहे कानू भैसे और ननकू बंदर के कान खड़े हो गए। कानू ने आंखों से ननकू को इशारा किया। दोनों कान लगाकर सुनने लगे कि चीकू और ऐनी क्या बातचीत करते हैं।
"एनी भाई, यदि तुम 2-3 जानवरों का इंतज़ाम कर दो तो मैं तुम्हारा एहसान मानूंगा। वहां इतना खजाना पड़ा है। मैं उन्हें अकेले कैसे अपने घर तक ला पाऊँगा?" चीकू ने चिंतित स्वर में कहा।
इतनी सुबह तो किसी का मिलना मुश्किल है। हाथी अभी कह ही रहा था कि कानू और ननकू चीकू के पास जा कर खड़े हो गए।
"हम गरीब हैं"। कानू भैसा रोनी सूरत बना कर बोलने लगा- "हमें नौकरी चाहिए। यदि तुम चाहो तो हम तुम्हारा खज़ाना ढो सकते हैं"। (Jungle Stories | Stories)
चाय की चुस्की लेते हुए चीकू ने एक बार उन दोनों को गौर से देखा फिर बोला- "ठीक है, हमें बहुत दूर जाना है। इसलिए तुम लोग भी चाय पी लो। बीच रास्ते में मैं तुम्हें कुछ भी नहीं खिलाऊंगा"।
चाय पीकर तीनों वहां से चल पड़े। भैंसा और बंदर सोच रहे थे कि अकेले खरगोश को खत्म कर, वे सारा खज़ाना...
चाय पीकर तीनों वहां से चल पड़े। भैंसा और बंदर सोच रहे थे कि अकेले खरगोश को खत्म कर, वे सारा खज़ाना हड़प लेंगे। फिर कोई चिंता नहीं, बल्कि आराम ही आराम होगा। दरअसल वे दोनों ठग थे और दूसरों को उल्लू बनाकर अपना गुजारा करते थे। चलते-चलते दोपहर हो गई। कानू और ननकू तो थक कर बेहाल हो गए। लेकिन चीकू मस्त होकर चल रहा था।
"और कितनी दूर है खज़ाना?" हताश होकर ननकू ने पूछा।
"हां हां जल्दी बताओ। अब तो चला भी नहीं जा रहा है"। भैसा भी बोला। (Jungle Stories | Stories)
"बस आ ही गया समझो। वह दूर जो पीपल का पेड़ है न, उसी के पीछे"। इशारा करते हुए चीकू बोला- "घबराते क्यों हो? खजाने का कुछ हिस्सा तुम लोग भी रखा लेना"। इस पर दोनों खुश हो गए। बंदर सोच रहा था कि इस खजाने से वह हवाई जहाज में बैठ कर देश-विदेश की यात्रा करेगा। उधर भैंसा एक होटल खोलने की बात सोच रहा था।
"लो आ गए हम खजाने के पास"। अचानक एक खेत के पास रूक कर चीकू बोला।
"तो जल्दी से हम फावड़ा ढूंढते हैं, वर्ना हम खज़ाना निकालेंगे कैसे?" उतावला होकर बंदर बोला। उसकी बात सुनकर चीकू को आश्चर्य हुआ वह बोला- "फावड़े की क्या जरूरत है? वह जो खेत में बोरे पड़े हैं, उन्हीं में तो खज़ाना पड़ा है"।
"दोनों ने देखा, वास्तव में खेत में बहुत सारे बोरे पड़े थे। "तो क्या इन्हीं में हीरे, जवाहरात, मेरा मतलब खज़ाना भरा हुआ है?" कानू ने पूछा।
"नहीं, इनमें तो गेहूं भरे पड़े हैं"। चीकू ने मुस्कुराते हुए कहा। (Jungle Stories | Stories)
"आएं गेहूं? पर तुमने तो खज़ाने की बात की थी"। कानू और ननकू चौंकते हुए बोले।
"अरे अन्न भी तो खजाना ही हुआ। उन्हीं को खाकर हम जीवित रहते हैं"।
चीकू ने उन्हें समझाना चाहा परन्तु उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था। "हो न हो, तुमने असली खज़ाना कहीं और छिपा दिया है। चुपचाप हमें वह जगह बता दो नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं"। भैंसे ने उसे धमकाया। पर चीकू अपनी बात पर अडिग रहा।
भैंसा गरम हो गया और सींग उठाकर उसे मारने दौड़ा। "ऐसी भी क्या जल्दी है?" बीच में एनी हाथी आ गया और उसने भैंसे को उठाकर पटक दिया। "मुझे तो तुम दोनों की नीयत पर पहले से ही शक था इसलिए मैं तुम्हारा पीछा कर रहा था। इस बार तो केवल जमीन पर ही पटका है। अगली बार करोगे तो सींग ही, उखाड़ कर फेंकूगा"। (Jungle Stories | Stories)
जब कानू भैंसे का दिमाग ठंडा हुआ तो चीकू बोला- "सचमुच मेरे पास कोई खज़ाना नहीं है। मैं तो अन्न को ही खज़ाना मानता हूं क्योंकि इन्हें ही खाकर हम जीवित रहते आए थे"।
हमें माफ कर दो। कानू भैंसे को भी बात समझ में आ गई थी। वह बोला- "हमें अपने खेतों में काम करने का एक मौका तो दो। फिर देखना कि हम कितनी मेहनत करते हैं।
हाथी ने अपनी पारखी नज़रों से भांप लिया कि कानू और ननकू की सोच में बदलाव आ चुका है। वह चीकू से बोला- "मान भी जाओ चीकू, इन्हें सुधरने का एक मौका तो दो"। चीकू मान गया तो एनी ने घोषणा की- "अब इन अन्न की बोरियों को लाद कर चीकू के घर तो पहुंचाओ। जो पहले वहां पहुंचेगा, उसे मेरी ओर से महीने भर मुफ्त में चाय पिलायी जाएगी"।
इतना सुनना था कि कानू और ननका बोरियां लाद कर भागने लगे। "मैं क्यों पीछे रहूं? मुझे भी तो मुफ्त की चाय पीनी है"। कहकर चीकू भी एक बोरी लाद कर भागने लगा। उसकी इस हरकत पर सभी हंस पड़े। (Jungle Stories | Stories)
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