बच्चों की हिंदी जंगल कहानी: भालू भाई क्यों पूंछ गंवाई
बहुत समय पहले भालू की लंबी एवं चमकदार पूंछ हुआ करती थी। भालू को इस पर बड़ा घमंड था। वह सभी से पूछता था कि आज मेरी पूंछ कैसी लग रही है? अब कोई भालू से पंगा लेता क्या भला?
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बहुत समय पहले भालू की लंबी एवं चमकदार पूंछ हुआ करती थी। भालू को इस पर बड़ा घमंड था। वह सभी से पूछता था कि आज मेरी पूंछ कैसी लग रही है? अब कोई भालू से पंगा लेता क्या भला?
एक बेहद समझदार व्यक्ति था, जिसे घूमने का बहुत शौक था। एक दिन वह घूमते घूमते एक ऐसे राज्य में चला गया जहां पर राजा को ढूंढने की तैयारी चल रही थी और इसका जिम्मा एक हाथी को सौंपा गया था।
एक साधु थे, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करते थे, “जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे”। बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।
एक किसान था, वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था। उस खेत के बीचों-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था।
एक गांव में एक किसान रहता था। उसके पास दो बैल और दो कुत्ते भी थे। एक बार उसे किसी काम से गांव से बाहर जाना था और उसकी समस्या यह थी कि खेत जोतने का भी समय हो गया था।
कुछ दिनों पहले की बात है। दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला मेरा बेटा अपने कुछ दोस्तों के साथ सामान्य ज्ञान पर बातें कर रहा था। जहां सारे लड़के खूब बढ़-चढ़ कर अपना सामान्य-ज्ञान बहार रहे थे, वहीं एक ऐसा लड़का भी था जो चुपचाप बैठा हुआ था।
हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। काली घटाएं पूरी तरह छा गई थीं। मेढ़क आनंद से उछल-कूद रहे थे। प्रयोगशाला में जीवविज्ञान के विद्यार्थियों को मेढ़क के बाहय एवं आंतरिक भाग की ठोस जानकारी देने के लिए अध्यापक ने एक मेढ़क मंगवाया।