बाल कविता -कोयल

बाल कविता -कोयल:-  वसंत ऋतु का मौसम हो और पेड़ों पर नए-नए पत्ते खिलें, तो जंगल और बग़ीचों में एक खास आवाज़ गूंजने लगती है – कूऊ-कूऊ। यह होती है कोयल की मधुर पुकार। काले रंग की यह नन्हीं सी चिड़िया हरे पत्तों में छुपकर

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बाल कविता -कोयल:-  वसंत ऋतु का मौसम हो और पेड़ों पर नए-नए पत्ते खिलें, तो जंगल और बग़ीचों में एक खास आवाज़ गूंजने लगती है – कूऊ-कूऊ। यह होती है कोयल की मधुर पुकार। काले रंग की यह नन्हीं सी चिड़िया हरे पत्तों में छुपकर अपने मीठे गीत से सबका मन मोह लेती है। इस कविता में हम कोयल की प्यारी आवाज़ और उसके चंचल स्वभाव को महसूस करेंगे।

कोयल

पात पुराने जब झड़ जाते,
निकल नए पत्ते जब आते,
हरी-भरी डाली के ऊपर
बैठी कोयल गाती है –
कूऊ-कूल-कूऊ-कूऊ

कोयल तन की काली है,
पर मन की मतवाली है,
हरे-भरे पत्तों में छिपकर
मीठे बोल सुनाती है –
कूल-कूऊ-कू-कूऊ

इस फुनगी से उस फुनगी पर
तेज़ी से उड़ जाती फर-फर,
नकल करो उसकी बोली की,
तो वह सुनकर अपनी बोली
फिर-फिर से दुहराती है –
कूल-कूऊ-कू-कूऊ

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