कितनी बड़ी दिखती होंगी – एक रोचक कल्पना

"कितनी बड़ी दिखती होंगी" एक रोचक और कल्पनात्मक कविता है, जो हमें दुनिया को एक छोटे जीव की नजर से देखने की कोशिश कराती है। इसमें एक मक्खी की दृष्टि से चीजों के आकार का वर्णन किया गया है।

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"कितनी बड़ी दिखती होंगी" एक रोचक और कल्पनात्मक कविता है, जो हमें दुनिया को एक छोटे जीव की नजर से देखने की कोशिश कराती है। इसमें एक मक्खी की दृष्टि से चीजों के आकार का वर्णन किया गया है।

👉 मक्खी को एक प्याले का पानी किसी सागर की तरह विशाल लगता होगा, और एक छोटी रोटी किसी पर्वत जैसी बड़ी दिखती होगी।
👉 फूल एक नर्म गद्दे जैसा प्रतीत होता होगा, जबकि एक नुकीला काँटा किसी भारी भाले के समान डरावना लगता होगा।
👉 एक छोटे पेड़ का पत्ता मक्खी को किसी हरे-भरे मैदान के समान विशाल लगता होगा।
👉 थाली में बचा हुआ खाना किसी भेड़ों के झुंड जैसा दिखता होगा।
👉 ओस की बूंदें दर्पण जैसी चमकती होंगी और सरसों के छोटे-छोटे दाने किसी लंबी बेल के समान प्रतीत होते होंगे।
👉 जब इंसान सांस लेता होगा, तो मक्खी को यह किसी आंधी जैसी तेज़ लगती होगी।

कविता: 

🔹 कितनी बड़ी दिखती होंगी,
मक्खी को चीजें छोटी।
सागर-सा प्याला भर जल,
पर्वत-सी एक कौर रोटी।

🔹 खिला फूल गुलगुल गद्दा-सा,
काँटा भारी भाला-सा।
ताला का सूराख उसे,
होगा बैरगिया नाला-सा।

🔹 हरे-भरे मैदान की तरह,
होगा इक पीपल का पात।
भेड़ों के समूह-सा होगा,
बचा-खुचा थाली का भात।

🔹 ओस बूँद दर्पण-सी होगी,
सरसों होगी बेल समान।
साँस मनुज की आँधी-सी,
करती होगी उसको हैरान।

यह कविता हमें दृष्टिकोण (Perspective) की महत्ता को समझाती है। हम जिस दुनिया को सामान्य मानते हैं, वह किसी छोटे जीव के लिए अत्यधिक विशाल और भव्य हो सकती है। यह कविता बच्चों को सोचने और कल्पना करने के लिए प्रेरित करती है।

🔹 इस कविता से क्या सीख मिलती है?

✔ हर जीव की दुनिया अलग हो सकती है, हमें सभी के नजरिए को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
✔ छोटी चीजें भी किसी के लिए बहुत बड़ी हो सकती हैं।
✔ कल्पना हमें दुनिया को नए ढंग से देखने की शक्ति देती है।

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