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"माँ की ममता" कविता में एक छोटे बच्चे के नजरिए से माँ के प्यार और देखभाल को बहुत ही प्यारे अंदाज में बताया गया है। बच्चा याद करता है कि जब वह छोटा था, माँ उसे गोद में सुलाती, दूध पिलाती और मक्खन-मिश्री खिलाती थीं। माँ की सरलता, ममता और स्नेह से भरी दुनिया को यह कविता बहुत ही दिल छूने वाले शब्दों में दर्शाती है। बच्चा मानता है कि माँ ही उसकी पूरी दुनिया हैं।
"चंदामामा" कविता में बच्चे की मासूम शरारत और कल्पना झलकती है। बच्चा चंदामामा से खेलना चाहता है। वह चंदा से कहता है कि वह बादलों में आँख-मिचौली क्यों खेल रहे हो, मुझे भी अपने खेल में शामिल करो। बच्चा खुद को तेज और फुर्तीला मानते हुए चंदामामा को पकड़ने का मज़ाकिया दावा करता है। यह कविता बच्चों के खेल-खेल में कल्पना और चंचलता को दर्शाती है।
माँ की ममता
जब मैं छोटी बच्ची थी
माँ की प्यारी दुलारी थी
माँ तो हमको दूध पिलाती,
माँ भी कितनी भोली भाली।
मक्खन मिश्री घोल खिलाती
बड़े मजे से गोद में सुलाती,
माँ तो कितनी अच्छी है
सारी दुनिया उसमें है।
चंदामामा
चंदामामा ठहरो थोड़ा,
कहाँ चले तुम जाते हो?
खेल रहे क्या आंख मिचैली
बादल में छिप जाते हो?
मुझे बुला लो मैं देखूंगा
कितने हो छिपने में तेज़
नहीं पकड़ पाओगे मुझको
मैं दौडूंगा तुमसे तेज़।
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