Moral Story: राजा महेंद्र का अद्भुत न्याय
बहुत समय पहले की बात है। काशीपुर में महेंद्र नामक एक राजा रहते थे। राजा महेंद्र की न्याय प्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी दूसरे देश के लोग भी राजा महेंद्र के पास फैसला करवाने के लिए आते थे।
बहुत समय पहले की बात है। काशीपुर में महेंद्र नामक एक राजा रहते थे। राजा महेंद्र की न्याय प्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी दूसरे देश के लोग भी राजा महेंद्र के पास फैसला करवाने के लिए आते थे।
रामपुर के सेठ रामलाल, बहुत ही समझदार दानी व नेकदिल इन्सान थे। इस कारण गाँव के सभी लोग उनको चाहते थे। एक दिन, उनके एक दरबान ने आकर, उनको यह खबर दी कि, कुछ दिन पहले, गांव में एक पहुंचे हुए महात्मा पधारे हैं।
तेरह वर्षीय काली उछलता-कूदता पाठशाला की ओर बढ़ता जा रहा था। फुटपाथ के किनारे लगी रेलिंग की छड़ को गिनते-गिनते सहसा उसका पैर पटरी पर उभरे हुए एक पत्थर से टकराया और वह संभलता-संभलता भी धड़ाम से गिरा।
रतन और रोज़ी भाई बहन थे। दोनों अपनी विधवा मां के साथ एक गांव में रहते थे। एकबार पास के ही गांव में मेला लगा हुआ था। रतन और रोज़ी के दोस्त मेला देख आए थे। इन दोनों की भी इच्छा थी कि मेला देखने जाएं।
किसी जंगल में एक पेड़ था। पेड़ का तना काफी चौड़ा था। पेड़ के तने में एक जगह खोखली थी, जिसमें पिंकू खरगोश अपने-परिवार के साथ रहता था। चूंकि पेड़ काफी पुराना था और उस पर पत्ते भी कम ही थे।
बहुत समय पहले सूरतगढ़ नाम का एक छोटा सा राज्य हुआ करता था। वहां का राजा सनक सिंह अपने नाम के अनुरूप ही अत्यंत सनकी स्वभाव का था। उसकी सनक के कारण प्रजा कई बार परेशानी में पड़ जाती थी। वह तो राज्य का सौभाग्य था।
होली का उत्साह था और विजयनगर के राजदरबारियों की उमंग का ठिकाना नहीं था क्योंकि राजा कृष्णदेव राय होली के दिन मूर्खश्रेष्ठ का पुरस्कार दिया करते थे। हर बार यही होता था।