Motivational Story: घाव-घाव में फर्क
एक सेनापति था, नाम था दुर्जन सिंह सेनापति दुर्जन सिंह बहुत वीर और साहसी व्यक्ति थे। युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं को पछाड़ने के लिए वे स्वंय हाथ में भाला और धनुष बाण लेकर कूद पड़ते थे।
एक सेनापति था, नाम था दुर्जन सिंह सेनापति दुर्जन सिंह बहुत वीर और साहसी व्यक्ति थे। युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं को पछाड़ने के लिए वे स्वंय हाथ में भाला और धनुष बाण लेकर कूद पड़ते थे।
पुराने समय की बात है रत्नपुर राज्य में रामसिंह नामक एक राजा राज करता था। उसकी रानी का नाम रूपवती था। वह बहुत सुन्दर थी राजा उसे इस कदर चाहता था कि गंभीर मामलों में भी अपनी रानी की सलाह लिए बिना काम नहीं करता था।
कई वर्ष पूर्व सर्दियों की एक शाम इंगलैंड के पश्चिमी तट पर किसी जगह मछुआरों के एक छोटे से गांव को तूफान का प्रकोप झेलना पड़ा। वर्षा और आंधी में जैसे मुकाबला छिड़ा हुआ हो।
देखने में तो कविता लापरवाह और बुद्धू सी लगती थी परन्तु थी बहुत होशियार। चलते-फिरते उठते-बैठते यहां तक कि सोते में भी वह बहुत चैकन्नी रहती थी। छोटी से छोटी बात पर भी उसका ध्यान अनायास ही चला जाता था।
राजू आज भी नित्य की भांति स्कूल से घर की ओर अकेला चल पड़ा था। पहले तो उसके पापा स्कूल छोड़ने जाते थे। छुट्टी हो जाने पर ले आते थे। किन्तु जब से वह कक्षा दस में गया, तब से वह अकेला ही स्कूल से घर और घर से स्कूल आता-जाता था।
चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस की कीर्ति चारों ओर फैली थी। लोग उनसे मिलने दूर-दूर से आते थे। उनसे मिलने की उत्कंठा में एक दिन एक राजा उनके पास पहुँचे।
महान दार्शनिक सुकरात के पास एक बार एक नौजवान लड़का आया। इस लड़के ने सुकरात से पूछा, ‘कृपया बताएं, सफलता का रहस्य क्या है? वह लड़के की बात सुनकर थोड़ी देर चुप रहे फिर उन्होंने कहा, ‘मैं तुम्हें इसका उत्तर कल दूँगा।