Moral Story: अंधा पहरेदार
रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था।
रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था।
विजय और अजय दोनों भाई कक्षा सात में पढ़ते थे। दोनों साथ साथ घर से स्कूल और स्कूल से घर आते जाते थे। विजय पढ़ने में बहुत तेज था हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आता था। विजय कमजोर छात्रों की सहायता करता था।
शोभन अपने पिता के पास गया जो काम करने के लिए निकल ही रहे थे। उसने कहा, ‘पापा, पापा’ आपके बाद जीतू चाचा मेरे सबसे प्रिय मित्र हैं।’ ‘वह ठीक है, लेकिन उन्होंने क्या किया है?’
गजराज हाथीदादा को जब भी अपने दैनिक निजी कार्यों से फुरसत होती तो तुरन्त ही नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्र जपना शुरू कर देते थे। कभी किसी ने उन्हें व्यर्थ में समय गंवाते नहीं देखा था। उनका मन सदा ईश्वर में एकाग्र रहता था।
एक समय की बात है, एक द्वीप था जहां पर सारी भावनाएं- खुशी, गम, ज्ञान और प्यार एक साथ रहते थे। एक दिन इन सभी भावनाओं को बताया गया कि वह द्वीप डूबने वाला है इसलिए सभी ने नाव बनाई।
दंदकारन्य नाम के एक जंगल में एक बकरी और उसके सात मेमने रहते थे। सातों मेमने बहुत छोटे थे इसलिए वह खाने की तलाश नहीं कर सकते थे। इसलिए हर रोज़ बकरी खाने की तलाश के लिए जाती थी। वह खाना लाकर अपने मेमनों को खिलाती थी।
बहुत पहले की बात है, एक बार एक बेईमान आदमी ने भोले-भाले किसान को बातों मे फंसा कर लूट लिया। गांव के रास्ते पर वह फिर मिले तो बेईमान आदमी ने कहा- ‘‘बहुत दिनों बाद मिले हो भाई!’’