Motivational Story: दिमाग लगाया त्योहार मनाया
दिवाली आने वाली थी विजयनगर राज्य में दीवाली को मनाने की तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही थी। हर तरफ मिठाइयों की दुकानें सज गई थीं। ऐसे में एक समस्या आन खड़ी हुई।
दिवाली आने वाली थी विजयनगर राज्य में दीवाली को मनाने की तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही थी। हर तरफ मिठाइयों की दुकानें सज गई थीं। ऐसे में एक समस्या आन खड़ी हुई।
शिमला के पास पालमपुर नाम का एक छोटा गांव था। उस गांव के लोग साधारण काम करने वाले लोग थे जो अपनी रोज़मर्रा के खर्चे को बहुत मुश्किल से कमाते थे।उस गांव के पास एक छोटा गांव था, जहां पर थोड़े समय में एक छोटा बाज़ार बन गया था।
उस दिन बाज़ार जाने का दिन था और राजू किसान सड़क पर अपनी घोड़ागाड़ी चला रहा था। उसे बाज़ार जल्दी पहुँचना था ताकि वह अपना सामान बेच सके। घोड़ों के लिए कीचड़ में इतना सामान खींचना मुश्किल हो रहा था।
एक शाम दो लड़के खेल रहे थे तभी अचानक उनके सामने परी आ गई और बोली, ‘मुझे तुम लोगों को नए साल का तोहफा देने के लिए भेजा गया है।’उस परी ने जल्दी से दोनों बच्चों को तोहफा दिया और वहाँ से चली गई।
चेयरमैन के बारे में यह मशहूर था कि वे एक बहुत साधारण परिवार से थे और सभी विद्यार्थी उनकी कहानी सुनने को उत्सुक थे। रंगारंग समारोह के बाद पढ़ाई, कला और खेल में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को इनाम बाँटा गया।
महाकवि कालिदास : हमें कैैसा बनना चाहिए? : कहानी राजा भोज के काल की है। उनके दरबार में एक से एक विद्वान दरबारी के रूप में आदर पाते थे। महाकवि कालिदास जैसे विद्वान और कुशल कवि उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। एक बार की बात है। राजा भोज ने अपने विद्वान दरबारियों से एक प्रश्न किया। प्रश्न था हमें कैसा बनना चाहिए?
शिक्षाप्रद बाल कहानी (Moral Stories) : मूर्खता की सजा- एक गांव में भगवान दास नाम का एक आलसी और अंधविश्वासी आदमी रहता था। वह अपने आप को भगवान का सबसे बड़ा भक्त मानता था और यही कहता फिरता कि किसी को कोई काम करने की जरूरत नहीं, सिर्फ भगवान का नाम लेने से सब कुछ मिल जाएगा। गांव वाले उसे कितना समझाते कि इस तरह निठल्ले बैठे रहना बुरी बात है, लेकिन भगवान दास किसी की नहीं सुनता था और दिनरात घर बैठा इंतजार करता कि ईश्वर कब आकर उसका भाग्य बदल देंगे।
चित्रानगरी के राजा के पास धन-दौलत के कोई कमी नहीं थी। उनके द्वार पर जो भी याचक आता। भरी झोली लेकर जाया करता। एक दिन कोई फकीर उनके द्वार आया तो राजा स्वयं उठकर उसे दक्षिणा देने पहुँचे। उन्होंने जैसे ही फकीर के पात्र में दक्षिणा भेंट की तो फकीर ने एक नजर राजा के चेहरे को देखा और बोला। महाराज आपके चेहरे पर उदासी क्यों?